प्रदेश में दो साइबर थाने और हर जिले में साइबर सेल होने के बावजूद साइबर क्राइम के लंबित मुकदमों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हर रोज साइबर क्राइम की शिकायतें तो दर्ज होती हैं, मगर इनका पर्दाफाश करने और आरोपितों को पकडऩे में पुलिस असफल साबित हो रही है।वजह है प्रशिक्षण और संसाधनों का अभाव। यही वजह है कि मुख्यमंत्री भी पुलिसकर्मियों को साइबर क्राइम से जुड़े मामलों की जांच के लिए विशेष प्रशिक्षण देने की बात कह चुके हैं।

एक जनवरी 2021 से 31 मार्च 2022 तक प्रदेश में साइबर क्राइम के 810 मुकदमे दर्ज हुए हैं। इनमें से 342 का ही पुलिस निस्तारण कर पाई, जबकि 478 मामले लंबित पड़े हैं। साइबर क्राइम में सबसे ज्यादा ठगी के मामले सामने आते हैं। साइबर ठगी करने वाले अधिकतर जालसाजों ने अपना अड्डा हरियाणा, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ में ऐसी जगहों पर बना रखा है, जहां पुलिस दबिश देने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।

एक पहलू यह भी है कि जिन निरीक्षकों (इंस्पेक्टर) को इन मामलों की विवेचना दी जाती है, उनके पास न तो ऐसे मामलों की जांच का प्रशिक्षण है और न ही अनुभव। ऐसे में साइबर क्राइम के लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। पंजाब और उत्तर प्रदेश में साइबर क्राइम के मुकदमों की विवेचना के लिए अलग सेल है। इस सेल में तैनात इंस्पेक्टर से लेकर कांस्टेबल तक साइबर ठगी समेत अन्य साइबर क्राइम की जांच में निपुण हैं। उत्तराखंड में जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर कार्रवाई करनी है, उन्हें आइटी एक्ट की जानकारी तक नहीं। साइबर क्राइम के सबसे ज्यादा मामले देहरादून और ऊधमसिंह नगर जिले में लंबित हैं।

देहरादून की बात करें तो यहां नेहरू कालोनी, पटेलनगर, वसंत विहार व रायपुर ऐसे थाना/कोतवाली हैं, जिनमें 25 से 30 केस लंबित चल रहे हैं। यही हाल ऊधमसिंह नगर जिले में भी है। राज्य में पुलिस अधिकारी, चिकित्सक, विज्ञानी आदि भी ठगी के शिकार हो रहे हैं। साइबर ठगों की हिम्मत इतनी बढ़ चुकी है कि वह प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के नाम से भी ठगी की कोशिश कर चुके हैं। साइबर ठगी से जुड़े केसों की विवेचना इंस्पेक्टरों के साथ-साथ दारोगा स्तर से करवाने का भी प्रवधान होना चाहिए। इसके लिए सरकार को पत्र भी लिखा है। एक थाने व कोतवाली में एक ही इंस्पेक्टर होता है, ऐसे में बढ़ रहे साइबर केस के चलते उनके ऊपर बोझ बढ़ रहा है। इंटरनेट की वजह से आज की दुनिया जिस तेजी से आगे बढ़ रही है है उतनी ही तेजी से चुनौतियां भी बढ़ रहीं हैं। मगर ऐसी ही चुनौतियों का हल निकाल लेना ही इंसानी दिमाग को सर्वश्रेष्ठ बनाता है। इसीलिए उत्तराखंड पुलिस अब आइटी सेक्टर से जुड़े छात्रों और युवा उघमियों की मदद से पुलिसिंग की तकनीकी चुनौतियों से पार पाएगी।

पिछले 4 साल में उत्तराखण्ड में साइबर क्राइम का ग्राफ़ 33 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ा है जिसके चलते वह पुरे देश में पांचवे नंबर आ चुका है ऐसे में, देहरादून में संयुक्त साइबर अपराध समन्वय यानी Joint Cyber Crime Co-ordination की दूसरी कान्फ्रेन्स में बाहरी राज्यों के साथ कॉर्डिनेशन से लेकर एक्शन प्लान पर मंथन हुआ, जिससे साइबर क्राइम का ग्राफ़ घट सके हालांकि लगातार बढ़ते केस पुलिस की भी चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं उत्तराखण्ड में क्राइम का ग्राफ 2018 से 2022 के बीच 33 फीसदी तक बढ़ गया है आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में उत्तराखंड में 100 केस 2020 में 243 केस सामने आए थे इस साल के पहले छह महीनों यानी जून तक 253 केस सामने आ चुके हैं यानी इस साल के आंकड़े पिछली साल की तुलना में दोगुने तक हो सकते हैं. साइबर केस के ग्राफ़ को देखते हुए अब पुलिस को चिन्ता सताने लगी 

ये लेखक के निजी विचार हैं ।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय)

#CyberThane #Cyber​​Cell #CyberCrime #Dehradun #JointCyberCrimeCoordination #Internet #UdhamSinghNagar #NehruColony #Patelnagar #VasantVihar #Raipur