आज हमला देश के संविधान और उसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर है। यदि देश नहीं बचेगा, तो कुछ नहीं बचेगा। हम जाति, धर्म या भाषा के आधार पर भारत के नागरिक नहीं है। हमारी नागरिकता का आधार अंग्रेजों के खिलाफ चलाया गया आज़ादी का वह संघर्ष है, जिसके लिए हमारे पुरखों ने अपनी शहादत दी और उनकी हड्डियों से बने खाद पर आज़ादी का यह महल खड़ा हुआ। हमारे भारतीय राष्ट्रवाद के इसी आधार पर हिन्दुत्व के नाम पर हमला किया जा रहा है, जिसे बचाने के लिए देश की महिलाएं और नौजवान सड़कों पर है। बिंदी और बुरका की यह एकता ही अंग्रेजों की गुलामी करने वाले आरएसएस और मोदी-शाह के राजनैतिक कुचक्र को मात देगी।
उक्ताशय के विचार कल यहां माकपा पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने बांकी मोंगरा में पार्टी द्वारा आयोजित *संघर्ष सभा* को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। इस सभा में उन्होंने भाजपा और आरएसएस पर कड़े हमले किये। उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ जिस हिन्दू राष्ट्रवाद की बात करती है, वह नकली राष्ट्रवाद है और उसका भारत की जनता और उसकी समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। हमारी भारत माता अपने खेतों में काम करने वाली, खुद भूखे रहकर देश का पेट भरने वाली महिला है, जबकि उनकी भारत माता मनुवाद के आधार पर चलने वाली और अडानी-अम्बानी की तिजोरी भरने वाली माता है। वे तिरंगा हाथ में लेकर बलात्कारियों को बचाने के लिए जुलूस निकाल रहे हैं, हमारे हाथ का तिरंगा देश की एकता-अखंडता को बचाने का नारा बुलंद कर रहा है।
माकपा नेता ने मोदी सरकार द्वारा पेश बजट में समाज कल्याणकारी मदों में आबंटन में हुई कटौतियों और कार्पोरेटों को टैक्स में दी गई छूट का भी विस्तार से जिक्र किया और कहा कि इस बजट से न युवाओं को रोजगार मिलने वाला है, न किसानों को लाभकारी समर्थन मूल्य और न ही आम जनता को मंहगाई के राक्षस से छुटकारा मिलने वाला। वे एलआईसी, एयर इंडिया, कोल, स्टील, बीएसएनएल को कौड़ियों के मोल कार्पोरेटों को सौंप रहे हैं, वे बैंकों को बर्बाद करने वाले पूंजीपतियों को देश से भागने का मौका दे रहे हैं और आम जनता पर करों का बोझ लाद रहे हैं। इन्हीं नीतियों के कारण पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी और भुखमरी फैली हुई है, जिसके खिलाफ माकपा नीतिगत विकल्प के साथ संघर्ष कर रही है। उल्लेखनीय है कि कल वाम पार्टियों के बजट विरोधी अभियान का अंतिम दिन भी था।
माकपा द्वारा गरीबों पर बकाया संपत्ति कर को माफ करने के लिए कोरबा निगम क्षेत्र में चलाए जा रहे अभियान का समर्थन करते हुए बृंदा करात ने कहा कि शहरीकरण के नाम पर गांवों को जबरन निगम क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है। इससे वे मनरेगा से वंचित हो गए। वे पेसा कानून के दायरे से बाहर हो गए। उनकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई, इसके बावजूद उन पर करों का बोझ लाद दिया गया। उन्होंने कहा कि यह विकास नहीं, विनाश है और लाल झंडा इसके खिलाफ संघर्ष करेगा। जन समस्याओं पर माकपा का समर्थन लेते हुए कांग्रेस ने जो सार्वजनिक वादा आम जनता से किया है, उसे उन्हें पूरा करना होगा। माकपा नेत्री ने कहा कि आम जनता ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की नीतियों के खिलाफ जनादेश दिया है और कांग्रेस सरकार को आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर उनके अधिकार को सुनिश्चित-सुरक्षित करना चाहिए और भाजपा राज में किसानों की हड़पी गई जमीन को पूरे प्रदेश में वापस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्य विपक्ष शासित राज्यों की तरह ही यहां की सरकार को भी एनपीआर लागू न करने की घोषणा करनी चाहिए और इसके लिए अधिसूचना जारी करनी चाहिए।
इस संघर्ष सभा को माकपा राज्य सचिव संजय पराते, जिला सचिव प्रशांत झा और माकपा पार्षद सुरती कुलदीप ने भी संबोधित किया। सभा की अध्यक्षता धनबाई कुलदीप और संचालन वी एम मनोहर ने किया। पार्टी की इस क्षेत्र में यह पहली राजनैतिक सभा थी, जिसे सुनने इस क्षेत्र की जनता अप्रत्याशित रूप से उमड़ी। माकपा के संघर्षों से प्रभावित होकर कोरबा ब्लॉक के जनपद सदस्य शिवकुमार कर्ष और चुईयां पंचायत के सरपंच शिवराम कंवर ने माकपा में प्रवेश की घोषणा की।
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