8 संस्थाओं की बनाई गई भूगर्भीय रिपोर्ट को किया जाए सार्वजनिकः यूथ फॉर हिमालय
गोपेश्वर, 15 अप्रैल: जोशीमठ में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने आए यूथ फॉर हिमालय समूह के सदस्यों ने गोपेश्वर में प्रेस वार्ता कर जोशीमठ व समूचे हिमालय की स्थिति पर अपनी चिंताएं और मांगे रखी। यूथ फॉर हिमालय हिमालयी राज्यों के पर्यावरण प्रेमी युवाओं का समूह है जो हिमालीय क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट के मुद्दों पर कार्य करता है। युवाओं के इस 8 सदस्यी दल ने 13 से 14 अप्रैल तक जोशीमठ के आपदाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया, प्रभावित लोगों से बातचीत की और उनकी समस्याओं को जाना। साथ ही 13 अप्रैल को जोशमीठ बचाओ संघर्ष समिति द्वारा चलाए जा रहे धरने के सौवें दिन पर उनके संघर्ष के प्रति अपना समर्थन प्रकट किया।
समूह की सदस्य रितिका ठाकुर (मंडी, हिमाचल प्रदेश) ने कहा कि हमने जोशीमठ में सिंहधार, सुनिल, मनोहर बाग, स्वी आदि का दौरा करते हुए पाया कि अधिक्तर प्रभावित गरीब और दलित परिवारों से हैं, जिनके घर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। सरकार द्वारा प्रभावितों को जो राहत दी गयी है वह प्रयाप्त नहीं हैं। इस घटनाक्रम में बच्चों, बुजर्गों और महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है। साथ ही प्रशासन ने मुआवजे की जो प्रक्रिया तय की गयी है वह आम जनता के लिए बहुत जटिल है। बार-बार लोगों को कागज बनवाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इससे न केवल उनकी दिहाड़ी छूट रही है सथा ही समय भी बहुत बर्बाद हो रहा है। अभी तक प्रभावितों को जिन होटलों में ठहराया गया है उसकी मियाद भी अप्रैल आखिरी में खत्म हो रही है, लोगों को लग रहा है इसके बाद कहां जाएंगे। सरकार को राष्ट्रीय पुनर्वास नीति 2007 के तहत इनके लिए प्रबंध करना चाहिए। हमारी मांग है कि जोशीमठ के प्रभावितों को साथ लेते हुए एक अधिकार प्राप्त कमेटी का गठन किया जाए जो पुनर्वास, मुआवजा, विस्थापन व मूलभूत जरुरतों की निगरानी रखने का कार्य करे। साथ ही भविष्य में आने वाली आपदाओं पर रोकथाम के लिए उपाय करे।
समूह के सदस्य सुमित (पिथोरागढ़, उतराखंड) ने भविष्य में आने वाले मानसून के खतरे को भांपते हुए कहा कि तमाम हिमालयी राज्य मानसून के समय भारी तबाही के साक्षी बनते हैं, हमने 2013 जून में उतराखंड त्रासदी, केदारनाथ की तबाही को देखा है। पूरा हिमालयी क्षेत्र सरकारी गलत नीतियों के चलते अति आपदा संवेदनशील बन गया है। पूरे जोशीमठ की वर्तमान स्थिति को जब हमने अपनी आंखों से देखा, और स्वतंत्र भूगर्भ वैग्यानिकों ने बार-बार आगह किया है कि पूरे जोशीमठ को ही खतरा है। अभी मानसून आने वाला है, घरों में आई दरारें बरसात के समय में और गंभीर संकट पैदा करने वाली हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री ने अपने दौरे में ‘सुरक्षित’ जोशीमठ का जो संदेश दिया है इसके बावजूद स्थानीय लोगों में डर और शंकाएं बरकरार है। जोशीमठ अगर असल में सुरक्षित है तो सरकार को उन आठ संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिन्होंने जोशीमठ का भूगर्भीय अध्ययन किया है ताकि स्थानीय लोगों की शंकाओं का समाधान हो सके और चारधाम यात्रियों को सुरक्षित महसूस हो। उतराखंड से लेकर जम्मू, कश्मीर, हिमाचल, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल आदि तमाम हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध विकास परियोजनाओं से (जल विद्युत परियोजनाओं, सड़क परियोजनाओं, खनन) आदि से भंयकर पर्यावरण संकट पैदा हुआ है। इस संकट के चलते न केवल पर्यावरण प्रभावित हुआ है बल्कि हिमालय के लोगों की जिंदगी व आजिविका भी प्रभावित हुई है।
प्रैस वार्ता में संबोधित करते हुए समूह के सदस्य मुहम्मद ईशाक वन गुज्जर (भूड़ा खत्ता, हल्दवानी, उतराखंड) ने कहा कि यह आपदा कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है बल्कि यह सरकारी नीतियों से उपजी हुई आपदा है। प्रशासन ने घरों को देखकर जिस तरह से चिन्हित कर खतरनाक घोषित किया गया है इससे स्थनीय जनता में डर का माहौल है। हमारा मानना है कि पूरा जोशीमठ ही खतरे की जद में है। अतः हम राज्य सरकार से मांग करते हैं कि पूरे जोशीमठ इलाके को ही पूर्ण आपदाग्रस्त घोषित किया जाए।
यूथ ऑर हिमालय के अनमोल (जम्मू) ने प्रैस को बताया हमारे समूह जोशीमठ की जनता के धरने के सौ दिन पूरे होने के समर्थन में अखिल भारतीय स्तर पर नौजवानों को अपील की थी कि वह जोशीमठ बचाओ, हिमालय बचाओं के नारे के साथ अपना समर्थन जताएं। इसके तहत हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पिति, किन्नौर, जम्मू शहर, उतराखंड के ऋषिकेश, सिक्किम की तिस्ता घाटी, आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम, तेलंगाना के हैदराबाद, उतर प्रदेश के गाजियाबाद, राजस्थान के जौधपुर समेत अन्य स्थानों पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं।