देहरादून, 27 मार्च : विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य मे धरातल संस्था द्वारा बंजारा वाला मोनाल एन्क्लेव स्थित जनकवि डा0 अतुल शर्मा के निवास स्थान पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी के विषय “उत्तराखंड आन्दोलन मे जन गीतों और नाटको की भूमिका” पर डा अतुल शर्मा ने 1994 के अपने संस्मरणों को साझा करते हुए बताया कि किस तरह से उनका “लड़के लेगे छीन के लेगे उत्तराखंड” जन गीत लोगों की जुबान पर चढ़ गया था। इसके अलावा “पर्वतों के गांव से आवाज उठ रही संभल, औरतों की मुट्ठियाँ मशाल बन गयी संभल” किस तरह यह जनगीत आन्दोलन के समय हर नुक्कड़ नाटक में गाया जाने लगा था। इस अवसर उन्होंने उत्तराखंड सांस्कृतिक मोर्चा के योगदान को याद करते हुए कहा उनके द्वारा निकली जाने वाली प्रभात फेरियां व नुक्कड़ नाटकों का अपना विशेष महत्व है। देहरादून के सैकड़ों रंगकर्मीयों व साहित्यकार इस माध्यम से आंदोलन में अपनी भूमिका निभाते थे।
राज्य आन्दोलनकारी रविन्द्र जुगरान ने कहा कि उस पूरे दौर मे रंगमंच और जन-गीतो ने आन्दोलन की अलख को जगाये रखा। मशाल जुलूसों में सबसे आगे संस्कृति कर्मी रहते थे, जिसके पीछे विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग समर्पित भाव से चलते थे। आन्दोलन के प्रति लोगों का समर्पण देखते ही बनता था। वह दृष्य अपने आप में बेहद अद्भुत हुआ करता था। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश एक बार फिर इस को उसी तरह के रंगमंच की जरूरत है।
आन्दोलनकारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन नेगी ने बताया कि उस समय देहरादून सहित पूरे उत्तराखंड मे नाटको की बेहद अहम भूमिका रही है। वरिष्ठ रंगकर्मी स्व0 सुरेंद्र भंडारी द्वारा लिखित/निर्देशित नाटक “केन्द्र से छुड़ाना है” लोगों के भीतर जोश पैदा करने के सफल रहा। इसके अतिरिक्त नाटक “नई सड़क” ने भी दौर में चर्चाओं का विषय रहा।
वरिष्ठ कवयित्री रंजना शर्मा ने बताया कि किस तरह से आन्दोलन के दौरान वह लोगों द्वारा लायी गई खाली कैसेटो पर जन-गीत “दो सही का साथ” को कापी करके लोगों के बीच मुफ्त में वितरित करने का काम करतीं थी। उस कैसेट का नाम था “जनकवि डा0 अतुल शर्मा के जनगीत” था।
गोष्ठी मे राज्य आन्दोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने रंगमंच दिवस पर सबक़ बधाई देते हुए कहा कि उस समय रंगमंच ने जो जन-जागृति पैदा की थी वह इतिहास रच गयी। धरातल संस्था की अध्यक्षा कहानीकार रेखा शर्मा ने आंदोलन के दौर के समय लिखी अपनी कहानी पढ कर सुनाई। गोष्ठी मे गिर्दा, नरेंद्र सिंह नेगी, बल्लीसिह चीमा, जहूर आलम आदि के लिखे जन-गीतो की भूमिका व उनके योगदान पर भी चर्चा करते हुए उन्हें सराहा गया।
कार्यक्रम के अंत में प्रसिद्ध रंगकर्मी सुशील यादव ने ढपली की थाप पर डा0 अतुल शर्मा का लिखा जन गीत “एक उठता हुआ बस चरण चाहिए” गा कर आन्दोलन की याद ताजा कर दी। रंगमंच दिवस पर आयोजित इस गोष्ठी मे उत्तराखंड आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सुरेश नेगी, पुष्पलता मंहगाई, देवेन्द्र कांडपाल आदि उपस्थित रहे।
यह भी पढ़ें वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी प्रकाश सुमन ध्यानी की पुस्तक ‘सनातन प्रज्ञा-प्रवाह’ पाठकों के लिए उपलब्ध