डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

यमुना के शीतकालीन प्रवास स्थल खरसाली में शनि देवता का आठ सौ वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए हर दिसंबर माह में बंद होते हैं और बैशाखी के पर्व पर हर वर्ष श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। समुद्र तल से 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित खरसाली गांव के बीच में शनि मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह मंदिर अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने बनाया था। उस दौरान पांडव खरसाली के निकट लाखामंडल तक भी आए थे। यह चार मंजिला मंदिर पत्थर, लकड़ी से बना हुआ है। यह मंदिर कई भूकंप और आपदाएं भी झेल चुका है।

खरसाली गांव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय 140 किलोमीटर दूर यमुनोत्री धाम के निकट स्थित है। यह गांव सड़क से जुड़ा हुआ है । खरसाली गांव की पहचान यमुना का मायका होने के साथ यमुना के भाई शनि देव के मंदिर से भी है। शनि देवता मंदिर परिसर में धरया चोंरी देव स्थल है। धरया चोंरी की मान्यता है कि इसी स्थान पर बेखल के पेड़ के नीचे शनि देव प्रकट हुए थे। स्कन्दपुराण के केदार खंड में इसका उल्लेख है।

शनि देव के मंदिर में दो बड़े पात्र रखे गए हैं। जो आकार में एक छोटा है और एक बड़ा है। जिनके बारे में कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या और कार्तिक पूर्णिमा की रात को वे अपने आप ही पश्चिम से पूरब और पूरब से पश्चिम को दिशा बदल देते हैं। इन पात्रों को रिखोला और पिखोला कहा जाता है। ये पात्र मंदिर में सदियों से जंजीर से बांधे हैं। पुराणों के अनुसार शनि और यमुना दोनों सूर्य की संताने हैं। यमुना संज्ञा की पुत्री और शनि देव छाया के पुत्र हैं। दोनों भाई बहन हैं। इसीलिए जब भी यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते हैं तो शनि देवता की देव डोली अक्षय तृतीय पर अपनी बहन यमुना को विदा करने के लिए यमुनोत्री धाम तक जाती है और जब भइया दूज यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होते हैं तो खरसाली से शनि देव की डोली अपनी बहन यमुना को लेने के लिए यमुनोत्री धाम पहुंचती है। जिसके बाद शनि देव अपनी बहन यमुना को लेकर खरसाली पहुंचते हैं। फिर शीतकाल के दौरान भाई बहन खरसाली गांव में अपने-अपने मंदिरों में विराजमान रहते हैं।

गीठ पट्टी के ग्रामीण शनि देव को अपना ईष्ट देवता मानते हैं और पूजते हैं। साथ ही शनिदेव न्यायाधीश भी मानते हैं। हर कार्य करने से पहले, किसी कष्ट विपदा में श्रद्धालु शनि देव की डोली से कारण और उपाय पूछते हैं, शनि देवता की डोली सांकेतिक भाषा में आदेश देती है। जिसके बाद श्रद्धालु उसी के अनुरूप कार्य करते हैं। जुलाई माह में गीठ पट्टी के गांवों में शनि देवता का उत्सव होता है। यह उत्सव 12 दिनों तक चलता है। यह उत्सव गीठ पट्टी के दुर्बिल, कुठार, बाडिया, पिंडकी, मदेश, दगुणगांव, निषणी, बनास, नरायणपुरी और खरसाली गांव में होता है। जिसमें पूरे दिन पूजा अर्चना और स्थानीय ग्रामीण शनि देवता के पारंपरिक लोक गीत गाते हैं तथा आशीर्वाद लेते हैं।

नौ ग्रहों में शनि देवता प्रतिष्ठित हैं। ज्योतिष पर विश्वास करने वाले शनि देवता को खास महत्व देते हैं। इसलिए दूर-दूर से श्रद्धालु खरसाली के शनि मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंचते। इस मंदिर में पूजा करने से शनि की साढ़े साती दूर होती है।  यहां मंदिर के दर्शन कर और शनि देवता की अखंड ज्योति में तेल दान करते हैं और शनिदेव की कांस्य मूर्ति के दर्शन करते हैं। मान्यता है कि खरसाली के शनि मंदिर के दर्शन करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। गीठ पट्टी के ग्रामीणों का मानना है कि उन पर शनि देव की हमेशा कृपा बनी रहती है। जुलाई माह में जब 12 दिनों तक शनि देवता की विशेष पूजा अर्चना होती है तो पूजा की खास पद्धति है। शनि देव के पुजारी जब यमुना नदी में जल लेने को जाते और आते हैं तो उस समय पुजारी से कुछ दूरी बनाकर दो ग्रामीण अन्य राहगीरों को रास्ते हटने के लिए कहते हैं। इस बीच पुजारी किसी से भी बात नहीं करता है फिर विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। सावन की सक्रांति में खरसाली में दो दिवसीय शनि देव के मेला का आयोजिन भी होता है। दो दिन तक चलने वाला यह उत्सव बेहद खास और दर्शनीय होता है। इस मेले में यमुना घाटी की लोक परंपराएं और संस्कृति के दीदार भी होते हैं इस दौरान मंदिर भी विशेष पूजा अर्चना होती है ।

  लेखक के निजी विचार हैं।

#कहाँ पर है शनि देव का आठ सौ साल पुराना मंदिर#शनि_मंदिर #शनि_देवता #शनि_देव #स्कन्दपुराण #केदार_खंड #खरसाली_गांव #उत्तरकाशी #पांडव #यमुना #यमुनोत्री_धाम #यमुना_के_भाई_शनि_देव #लाखामंडल #Shani_Temple #Shani_Deity #Shani_Dev #Skandpuran #Kedar_Khand #Kharsali_Gaon #Uttarkashi #Pandava #Yamuna #Yamunotri_Dham #Yamuna_K_Bhai_Shani_Dev #Lakha_Mandal #Where is the eight hundred year old temple of Shani Dev