उत्तराखंड के चारों धामों में सबसे कठिन यात्रा बाबा केदारनाथ की है । करीब 18 से 20 किमी की कठिन रास्तों की इस यात्रा में घोड़े खच्चर एक रीढ़ की हड्डी हैं, लेकिन प्रशासन की लापरवाई से इन घोड़े खच्चरों की दुर्गति होने लगी है। इस सीजन में करीब 400 से अधिक घोड़े खच्चरों की मौत भी हो चुकी है, जिस पर अब ये लोग भी प्रशासन पर आरोप लगा रहे हैं। वैसे तो हेलीकाप्टर, डंडी-कंडी और पालखी का उपयोग कर श्रद्धालु केदारनाथ पहुंच सकते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा धाम में पहुंचने के लिए श्रद्धालु घोड़े खच्चर का उपयोग करते हैं। साथ ही धाम में सामान ढोने का भी काम यही करते हैं, जो गौरीकुंड, सोनप्रयाग से अलग अलग रेट 2200 से 2500 तक आसानी से मिल जाते हैं। अब प्रशासन की बेरुखी से घोड़े खच्चर स्वामी नाराज हैं। उनका कहना है कि प्रसाशन को ये लोग हर एक चक्कर का 300 रुपये टैक्स देते हें लेकिन इस टैक्स का उनको किसी भी प्रकार का लाभ नही मिलता। न तो प्रशासन ने उनके घोड़े खच्चर के लिए कोई पशु डाक्टर रखा है और न ही किसी घोड़े खच्चर के लिए सरकारी चारे और पीने के पानी की व्यवस्था है।
केदारनाथ यात्रा में घोड़ा-खच्चरों को नियमित आराम मिले और पैदल मार्ग पर आवाजाही सुलभ हो, इसके लिए जिलाधिकारी ने नई व्यवस्था बनाई है। अब, गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर रोटेशन के हिसाब से प्रतिदिन 4500 से 5000 घोड़ा-खच्चरों का संचालन होगा। जिला प्रशासन ने बीते सप्ताह 16 घोड़ा-खच्चरों की मौत का संज्ञान लेकर यह व्यवस्था बनाई है। साथ ही संचालकों व हॉकर को भी जरूरी निर्देश जारी किए हैं। केदारनाथ यात्रा में इस वर्ष 8516 घोड़ा-खच्चरों का पंजीकरण हुआ है जबकि, बिना पंजीकरण के भी हजारों घोड़ा-खच्चर पैदल मार्ग पर आवाजाही कर रहे हैं। घोड़ा-खच्चर संचालकों द्वारा इनसे अत्यधिक काम लिया जा रहा है, जिससे इन्हें आराम नहीं मिलने से बीते 10 से 16 मई के बीच तीन दिनों में घोड़ा-खच्चरों की मौत हो गई है। घटना का संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी ने तत्काल प्रभाव से गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चरों का संचालन रोटेशन के आधार पर करने के निर्देश दिए हैं।
उच्च हिमालय में स्थित केदारपुरी का विषम भूगोल श्रद्धालुओं की सांस ही नहीं अटका रहा, पैदल मार्ग पर बड़ी संख्या में घोड़ा-खच्चर की मौत का कारण भी बन रहा है। जांच में पता चला है कि घोड़ा-खच्चर की मौत तीव्र पेट दर्द (शूल), पानी की कमी, बर्फीला पानी पीने और अधिक कार्य लिए जाने से हो रही है। कपाट खुलने के बाद से अब तक महज 23 दिन में 400 से अधिक घोड़ा-खच्चर की मौत हो चुकी है। दरअसल, उच्च हिमालयी क्षेत्र में घोड़ा-खच्चर को सिर्फ गर्म पानी ही पिलाया जाता है, लेकिन इस बार पैदल मार्ग के पड़ावों पर गीजर की व्यवस्था न होने से उनके लिए गर्म पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा। इससे शरीर में पानी की कमी होने से घोड़ा-खच्चर मौत के मुंह में चले जा रहे हैं। जबकि, यमुनोत्री धाम में पांच किमी पैदल मार्ग पर दो जगह गीजर की व्यवस्था है। इससे वहां घोड़ा-खच्चर को पर्याप्त गर्म पानी मिल जा रहा है। वहां तीन मई से अब तक सिर्फ 25 घोड़ा-खच्चर ने ही जान गंवाई।
केदारनाथ जाने के लिए गौरीकुंड से 16 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। पूर्व में पैदल मार्ग के पड़ावों पर प्रशासन की ओर से गर्म पानी के टैंक बनाए गए थे। लेकिन, रखरखाव न होने के कारण अब वह अनुपयोगी हो गए हैं, जिससे घोड़ा-खच्चर बिना पानी के ही या थोड़ा-बहुत बर्फीला पानी पीकर इतना लंबा सफर तय कर रहे हैं। इससे शरीर में पानी की कमी व असहनीय दर्द उनकी मौत का कारण बन रहा है। जबकि, घोड़ा-खच्चर को रोजाना कम से कम 30 लीटर पानी पिलाया जाना जरूरी है। हैरत देखिए कि पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चर के लिए न तो पर्याप्त पौष्टिक आहार की व्यवस्था है, न नियमित स्वास्थ्य जांच की ही। केदारनाथ पैदल मार्ग पर प्रतिदिन पांच से छह हजार घोड़ा-खच्चर की आवाजाही होती है। लगभग 40 प्रतिशत श्रद्धालु घोड़ा-खच्चर से ही केदारनाथ पहुंचते हैं। इसके अलावा सामान ढोने का कार्य भी घोड़ा-खच्चर से ही होता है। कि गर्म पानी की व्यवस्था न होने के कारण पैदल मार्ग पर संचालक ग्लेशियर का पानी ही घोड़ा-खच्चर को पिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, वह इस बर्फीले पानी को नहीं पीते, जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। वहीं, घोड़ा-खच्चर के खाने के लिए हरी घास भी उपलब्ध नहीं है, जिससे उन्हें भूसा, चना व गुड़ दिया जाता है। इससे उनकी आंतों में गांठ बन जाती है और मूत्र भी बंद हो जाता है। यही घोड़ा-खच्चर की मौत की मुख्य वजह है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार अब तक सिर्फ 86 घोड़ा-खच्चर की ही जान गई है। दरअसल, रिकार्ड में सिर्फ उन्हीं घोड़ा-खच्चर की मौत दर्ज की जा रही है, जिनका पंजीकरण हुआ है। घोड़ा संचालक कहते हैं कि प्रशासन की ओर से पंजीकरण बंद कर दिया गया था, जिस कारण हजारों घोड़ा-खच्चर बिना पंजीकरण के रह गए। ऐसे में घोड़ा-खच्चर के मरने पर उनका पोस्टमार्टम भी नहीं हो पा रहा। इसलिए विभाग के पास मृत घोड़ा-खच्चर का आकड़ा उपलब्ध नहीं है।
लेखक के निजी विचार हैं।
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय
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