सरकारी स्तर पर भले ही युवाओं को रोजगार देने को लेकर लाख दावे किए जाएं, लेकिन आंकड़े कुछ और हकीकत बयां कर रहे हैं। प्रदेश में आठ लाख से अधिक बेरोजगारों की तुलना में बीते पांच वर्षों में एक प्रतिशत युवाओं को भी रोजगार नहीं मिल पाया। यही नहीं, इन पांच वर्षों में छह गुना रोजगार मेले भी कम हो गए हैं चुनाव से पहले युवाओं को रिझाने के लिए खूब घोषणाएं की जाती हैं। भर्ती निकाली जाती हैं, लेकिन लेटलतीफी, धांधली, कोर्ट में मामला जाने से भर्तियां कभी भी समय से पूरा नहीं हो पाती है। दूसरी ओर सेवायोजन विभाग के माध्यम से लगाए जाने वाले रोजगार मेलों का हाल तो इससे भी चिंताजनक है।

पांच साल पहले जहां पंजीकृत युवाओं में से 0.84 को रोजगार मिलता था।वहीं, यह आंकड़ा पिछले वर्ष सिर्फ 0.04 रह गया। सेवायोजन की ओर से कराई जाने वाली भर्तियों को लेकर सरकार अपनी पीठ थपथपाती है। पर शायद ही वर्षभर के आंकड़ों को लेकर समीक्षा होती हो। हालांकि यह आंकड़ा सिर्फ पंजीकृत बेरोजगारों का है। यदि उन युवाओं की बात करें जो पंजीकृत नहीं है तो आंकड़ा प्रदेश में इससे भी अधिक होगा।सेवायोजन विभाग के निदेशक ने बताया कि कंपनियों की आवश्यकता के अनुसार रोजगार मेले सेवायोजन विभाग के माध्यम से कराए जा रहे हैं। आउटसोर्सिंग एजेंसी को लेकर कवायद चल रही है। इसका प्रस्ताव कैबिनेट में पास होने पर सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकृत युवाओं को सरकारी विभागों में नौकरी मिलेगी। राजनीतिक दलों के एजेंडे में भी स्वरोजगार व रोजगार का विषय प्राथमिकता में शामिल किया गया है। यह बात अलग है कि पर्वतीय क्षेत्रों में गुणवत्तापरक शिक्षा की जरूरत महसूस हो रही है।

राज्य गठन के बाद प्रदेश में युवाओं को रोजगार देने की दिशा में बहुत अधिक काम नहीं हो पाया है। सरकारी विभागों में 20 हजार से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं। प्रदेश में रोजगार के अधिक अवसर न मिलने के कारण युवा वर्ग तेजी से पलायन भी कर रहा है। बेरोजगारी प्रदेश में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है। प्रदेश में जो भी सरकारी नौकरियां दी जाएं, उनमें पारदर्शिता हो। इससे मेहनती व ईमानदार युवाओं को लाभ मिलेगा। प्रदेश में परीक्षाओं का समयबद्ध कैलेंडर जारी होना चाहिए। स्वरोजगार के लिए जो योजनाएं बनें, उनमें भी पूरी पारदर्शिता रखी जाए, तभी युवा स्वावलंबी बन सकेगा।

भाजपा के दृष्टि पत्र के मुताबिक, बेरोजगारी की समस्या को हल करने क लिए मुख्यमंत्री प्रशिक्षु योजना शुरू की जाएगी। भाजपा के दृष्टि पत्र के मुताबिक, बेरोजगारी की समस्या को हल करने क लिए मुख्यमंत्री प्रशिक्षु योजना शुरू की जाएगी, जिसके तहत एक साल तक बेरोजगार युवाओं को तीन हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाएगा जो कि केंद्र से मिलने वाली राशि से अलग होगी। प्रदेश के युवाओं को भाजपा ने 50 हजार सरकारी नौकरी देने का वादा किया है साथ ही 24 हजार नौकरी सत्ता में लौटते ही तुरंत उपलब्ध कराने का भी वादा किया।भाजपा ने सभी जिला मुख्यालयों में व्यापार प्रसंस्करण आउटसोर्सिंग (बीपीओ) परिसर बनाने का ऐलान किया है साथ ही प्रदेश में ग्राम सेवा समिति की स्थापना कर 50 घरों के लिए उचित मानदेय पर एक स्थानीय ग्राम प्रबंधक नियुक्त करने का वादा किया।

वैसे तो पूरा देश ही बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, लेकिन उत्तराखंड में रोजगार का मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है. हालांकि हकीकत में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा भी हो सकता है. उत्तराखंड में बेरोजगारी की हालत यह है कि साल 2020-21 में करीब 8 लाख युवाओं के रजिस्ट्रेशन सेवायोजन कार्यालय में थे. इसमें से इस वित्तीय वर्ष में डेढ़ हजार लोगों को ही नौकरी मिल पाई. हालत यह है कि अब युवा आउट सोर्स पर नौकरी करने के लिए भी भागा दौड़ी में जुटे हुए हैं. इसका ताजा उदाहरण ऊर्जा विभाग में जेई और एई के पद पर 11 महीने की नौकरी को लेकर जुटा युवाओं का वह हुजूम है जो बीटेक और पॉलिटेक्निक करने के बाद 8 से 12 हजार की नौकरी के लिए भी धक्के खाते हुए दिखाई दिए थे..

उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों से पलायन का मामला सामने आया है। जिसने न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। उत्तराखंड देश का ऐसा प्रदेश है, जो दो देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छूता है। पहला नेपाल तथा दूसरा चीन के साथ मिलकर 625 किमी सीमा साझा करता है। चीन के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध न होने के नाते सीमावर्ती गांवों से पलायन की वजह से घुसपैठ का खतरा बढ़ता जा रहा है। बताया जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास स्थित गांवों के लोग पलायन कर कहीं दूसरी जगह जाकर बस रहे हैं।इन लोगों के पलायन की असल वजह क्या हो सकती है, अगर सरकार समय रहते इस पर समीक्षा नहीं करती तो आने वाले समय में जम्मू कश्मीर जैसे हालात से इनकार नहीं किया जा सकता है। उत्तराखंड के पहाड़ी गांव जो चीन व नेपाल सीमा से सटे हैं, उनकी वजह से वहां स्थानीय लोगों द्वारा ही निगरानी होती रहती थी।

अब जब पलायन नहीं रूकेगा तो घुसपैठ बढ़ना तय माना जा रहा है फिर सरकार के पास एक ही विकल्प बचेगा वो है सेना जिसके कंधे पर पूरी जिम्मेदारी आ जाएगी। जो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की निगरानी करेगी। पहाड़ों में वोट मांगने में भाजपा, कांग्रेस हो या यूकेडी सबका एक ही नारा होता है कि जनता के कष्ट मिटाएंगे, भ्रष्टाचार करने वालों को सजा दिलाएंगे. पहाड़ों की जवानी को रोजगार देकर यहीं के विकास में लगाएंगे. लेकिन सत्ता में आने पर क्या होता है हर बार. तकदीर बदलने की आस में लोग टकटकी लगाकर अगली सुबह का इंतजार करते हैं.’लेकिन इसके बावजूद उस घोषणा और संबंधित शासनादेश पर अमल नहीं हो पाया है। सेंटर फोर मानीटङ्क्षरग इंडियन इकोनामी के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड में बेरोजगारी दर 5.3 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। यशपाल के मुताबिक उत्तराखंड को प्रकृति ने हर मामले में समृद्ध बनाया है। हिमालय, पहाड़, नदियां, फल-फूल के अलावा विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल होने के बावजूद युवा बेरोजगारी के संकट से जूझ रहे हैं। इससे पता चलता है कि कौशल विकास योजना और सेवायोजन विभाग भी महज जुमला बनकर रह गए हैं।

ये लेखक के निजी विचार हैं।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला ( दून विश्वविद्यालय )

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