औरंगजे़ब भी लोगों को जबरन मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था। औरंगजे़ब ने यहीं आकर भूल की। उसने इंसान की दशा बलदने को ही उसकी दिशा बदलना समझ लिया। बाह्य लिबास व संप्रदाय बदलने के लिए वह लोगों पर अन्याय व अमानवीय अत्याचार करने लगा।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पावन नाम हमारे गौरवशाली इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आज भी उन्हें सरबंसदानी, दानवीर, क्रांतिवीर एवं संत−सिपाही के रूप में याद किया जाता है। यों तो हमारे देश में अनेकों दानवीर हुए हैं जिन्होंने मानवता को त्रास मुक्त करने के लिए अनेकों बलिदान दिए। जैसे महर्षि शिबि ने इस संसार को राक्षसों के आतंक से बचाने के लिए जीते जी अपनी हडि्डयों का दान तक दे डाला। लेकिन दुनिया के इतिहास को बांचने पर कोई भी ऐसा उद्धरण नहीं मिलता जहाँ पर किसी ने अपने माता−पिता, पुत्रों एवं अपने सर्वस्व का दान दिया हो। मानवता की रक्षा हेतु गुरु जी अपने 7 और 9 साल के बच्चों का बलिदान देने से भी नहीं घबराए।हमारे विद्वतजनों का कथन है कि पूत के पैर पालने में ही पहचाने जाते हैं। जिस समय उनका जन्म हुआ तो पीर भीखण शाह जी ने पश्चिम दिशा में सिजदा करने की बजाय पूर्व दिशा में सिजदा किया। जब उनके शिष्यों ने उनकी इस उल्टी रीति का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इस संसार के दुःख, संताप हरने वाला अवतार धरण कर चुका है। मैंने पूर्व दिशा से उठ रहे उसी इलाही नूर को सिजदा किया है। आप सब देखेंगे कि वो अपने दिव्य बल−शौर्य, कुर्बानी और संतत्व से इस संसार का काया कल्प करके रख देगा। और उनकी इस बात को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 9 साल की छोटी-सी अवस्था में ही सिद्ध कर दिया था। जिस समय कश्मीरी पंडित श्री गुरु तेग बहादुर जी के पास आकर उन्हें औरंगज़ेब द्वारा उन पर किए जा रहे अत्याचारों से अवगत कराते हैं। तो उनकी बात सुनकर श्री गुरु तेग बहादुर जी अत्यंत गंभीर होकर वचन करते हैं कि इसके लिए तो किसी महापुरुष को अपनी कुर्बानी देनी पड़ेगी। उस समय बाल गोबिंद भी श्री गुरु तेग बहादुर जी के पास ही बैठे थे, कहने लगे−पिता जी आप से बड़ा महापुरुष इस संसार में भला और कौन हो सकता है? वह जानते थे कि महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुर्बानियां भी महान ही देनी पड़ती हैं। इसलिए बाल गोबिंद 9 साल की अल्प आयु में ही मानवता की रक्षा हेतु अपने गुरु पिता का बलिदान देकर क्रांति का आगाज़ करते हैं। वे इस बात से भलीभांति परिचित थे कि समाज में फैले अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार की जड़ें जमा चुकी गहरी मलीनता को साफ करने लिए किसी महान क्रांति की ही आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि क्रांति ही वह मशाल है जो जुल्म और जालिमों द्वारा फैलाई कालिमा को दूर कर सकती है। महान कवि नामधरी सिंह दिनकर भी क्रांति की परिभाषा देते हुए कहते हैं− ‘जब अचानक से आई कोई परिवर्तन की लहर इस संसार की दशा व दिशा को तेजी से बदल दे उसे क्रांति कहा जाता है। क्रांति वह धधकती ज्वाला है जो मानव के अंदर पल रहे अन्याय के भय को समाप्त कर इसके खिलाफ लड़ने की शक्ति प्रदान करती है।’ और गुरु गोबिंद सिंह जी ने ऐसी ही क्रांति का आगाज़ करते हुए कहा−’चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊं। तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।।
क्रांति को अंग्रेजी में Revolution कहा जाता है जो लैटिन भाषा के शब्द revolutio से निकला है जिसका अर्थ होता है a turn around अर्थात् किसी अवस्था का बिलकुल ही पलट जाना। अगर हम अवस्था की बात करें तो संसार में रहने वाले जीवों की मुख्यतः दो अवस्थाएं होती हैं। एक है बाह्य और दूसरी है आंतरिक। बाह्य अवस्था में व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक आदि कारण आते हैं। परंतु आंतरिक कारणों में मानव का चिंतन, नैतिकता, चरित्र आदि जैसे गुण आते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हम क्रांति के द्वारा किसी की बाह्य अवस्था तो बदल सकते हैं लेकिन किसी की आंतरिक अवस्था को बदलना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। जैसे आप किसी को रहने के लिए अच्छा घर, अच्छे कपड़े व खाना तो दे सकते हैं लेकिन उसे मानसिक तृप्ति देना आप के वश में नहीं है। वस्तुतः यह व्यक्ति की आंतरिक अवस्था है जो उसके अंदर से उत्पन्न होती है। गुरु गोबिंद सिंह जी इस बात से भिज्ञ थे कि बाह्य क्रांति के द्वारा आप लोगों पर कुछ समय तक शासन तो कर सकते हैं लेकिन उनके अंदर आंतरिक परिवर्तन नहीं ला सकते। एवं किसी में अंदरूनी परिवर्तन लाए बिना उसे बदलना सिर्फ उसका लिबास बदलने के समान है। जिन्हें कुछ समय पश्चात फिर से बदलना पड़ सकता है। इसलिए वही क्रांति सफल मानी जाती है जिससे लोगों की सोच में भी अंतर आ जाए। इसलिए वे खालसा पंथ की सृजना करके एक आध्यात्मिक क्रांति का आगाज़ करते हैं। क्योंकि इसी के द्वारा ही समाज के बिगड़े चेहरे को फिर से संवारा जा सकता है। जिससे जालिम हुकमरानों के पैरों तले रौंदी मानवता को फिर से खुले आसमान में उड़ने के लिए पंख मिलते हैं, परिणाम स्वरूप बिचित्र सिंह जैसे डरे, सहमे, भीरु लोगों में शौर्य का संचार हो जाता है।
परिवार के सदस्यों की मृत्यु – गुरुद्वारा परिवार विचौरा साहिब, माजरी, रूपनगर, पंजाब जहां माता गुजरी दो सबसे कम उम्र के साहिबजादों (फतेह सिंह और जोरावर सिंह) के साथ गुरु की रेजीमेंट से अलग हो गए थे। इसके तुरंत बाद मुगल सेना द्वारा उन्हें मार दिया गया। गोबिंद सिंह की माता माता गुजरी और उनके दो छोटे पुत्रों को सरहिंद के मुगल गवर्नर वज़ीर खान ने पकड़ लिया था। 5 और 8 वर्ष की आयु के उनके सबसे छोटे बेटों को प्रताड़ित किया गया और फिर उन्हें दीवार में जिंदा दफन कर उनकी हत्या कर दी गई, जब उन्होंने इस्लाम धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया, और माता गुजरी उनके पोते की मौत की खबर सुनकर गिर गईं और कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। मुगल सेना के खिलाफ चामकौर की लड़ाई में 13 और 17 साल की उम्र में दो बड़े बेटे मारे गए।
उस समय औरंगजे़ब भी लोगों को जबरन मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था। औरंगजे़ब ने यहीं आकर भूल की। उसने इंसान की दशा बलदने को ही उसकी दिशा बदलना समझ लिया। बाह्य लिबास व संप्रदाय बदलने के लिए वह लोगों पर अन्याय व अमानवीय अत्याचार करने लगा। परिणामतः वह न तो लोगों की दशा बदल सका एवं न ही दिशा। अपितु लोगों के अंदर एक डर, भय व सहम पैदा कर दिया।
लेकिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने जब खालसे का सृजन किया तो वह उनसे शीश भी मांगते हैं। परंतु गुरु जी को बिना कोई प्रश्न पूछे उनके सेवक अपने शीश कुर्बान करने को तैयार हो जाते हैं। आइए देखते हैं अंतर कहाँ पर है? किसी की सोच बदलने या उसे अपनी सोच छोड़ने के लिए उसे नए एवं श्रेष्ठ विचार प्रदान करने पड़ते हैं। जिस पगडंडी को लोग मार्ग समझ लेते हैं उसकी बजाय उन्हें विशाल मार्ग देना पड़ता है। और इस पगडंडी से विशाल मार्ग पर आगे बढ़ना ही क्रांति से आध्यात्मिक क्रांति का सफर है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी वाले दिन इसी विशाल आध्यात्मिक क्रांति की स्थापना की एवं लोगों के अंदर नवचेतना का संचार किया। हम इस बात को भलीभांति जानते हैं कि श्री गुरु जी एक महान योद्धा व तलवार के धनी थे। वह तलवार के जोर पर लोगों को खालसा बना सकते थे। लेकिन उन्होंने पहले लोगों की आंतरिक अवस्था को बदलकर आध्यात्मिक क्रांति को पहल दी एवं लोगों के अंदर भक्ति एवं शक्ति के सच्चे सुमेल की स्थापना की और वे संत सिपाही कहलाए। एवं दबे कुचले लोगों धर्म, जाति, देश और खुद की रक्षा के लिए शौर्य पैदा किया। समाज पर भारी पड़ रही आतंकी शक्तियों का समूल नाश किया। सज्जनों इतिहास में ऐसे महान पन्ने किसी आध्यात्मिक पुरुष द्वारा ही लिखे जा सकते हैं। जो विश्व पटल पर संपूर्ण क्रांति का शंखनाद करते हैं।
आज सदियां बीत जाने के बाद भी मानव श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दर्शाए मार्ग पर चलकर अपना जीवन धन्य कर रहा है। महापुरुष व उनकी शिक्षाएं किसी खास काल के लिए होती अपितु वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तंभ का काम करती हैं।
इसलिए सज्जनों अगर आज हम भी समाज से भ्रष्टाचार, आतंकवाद, चरित्रहीनता, जाति−पाति, ईर्ष्या, द्वेष का समूल नाश करना चाहते हैं तो हमें भी अपने अंदर एक संपूर्ण क्रांति अर्थात आध्यात्मिक क्रांति की मशाल जगानी पड़ेगी। क्योंकि यदि हर एक व्यक्ति अपने अंदर से दूषित विचारों का नाश कर दे तो फिर समाज को सुंदर, आनंदमयी एकता के सूत्र में बंधने से कोई भी अमानवीय ताक्त नहीं रोक सकती। इसलिए आओ हम सब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दानवीरता को याद करते हुए उनके श्री चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें।
‘यमुनोत्री धाम : जिसके दर्शन से दूर होता है आकाल मृत्यु का भय
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