राफेल विमान सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवां ओलान्द के बयान ने इस सौदे में हुए घोटाले की आशंका को नया मोड़ दे दिया. ओलान्द का कहना है कि सौदे के लिए भारतीय पार्टनर के रूप में रिलायंस डिफेंस प्राइवेट लिमिटेड का नाम भारत सरकार ने सुझाया था.
इस बात पर कुछ साल पहले उत्तराखंड में हुए एक घोटाले की याद ताजा हो गयी. राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और निशंक जी मुख्यमंत्री थे. उनके शासन काल में 56 बिजली परियोजनाओं के निर्माण के ठेकों के आवंटन में घोटाला हुआ. परियोजना निर्माण के ठेकों के आवंटन के लिए यह अनिवार्य शर्त थी कि कंपनी के पास पूर्व में बिजली परियोजना निर्माण का अनुभव होना चाहिए. इस शर्त की बांह अपने चहेतों के लिए कैसे मरोड़ी गयी,इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ. कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कतिपय कंपनियों के जेनरेटर इन्स्टाल करने के अनुभव को भी बिजली निर्माण का अनुभव मान लिया गया.
यही हाल अनिल अंबानी की कंपनी-रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का भी है. जिस दिन इस कंपनी को फ्रांस में डील में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हिस्सेदारी मिली,यह कंपनी उससे कुल 12 दिन पहले ही अस्तित्व में आई थी.
यह आश्चर्यजनक है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल डील के संदर्भ में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की कार्यक्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा कि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास राफेल जेट को बनाने के लिए वांछित क्षमता नहीं है. हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की मूल कंपनी हिंदुस्तान ऐयरक्राफ्ट लिमिटेड आज से 77 साल पहले स्थापित हुई. 1951 में इसे रक्षा मंत्रालय के अधीन लाया गया. 1963 में पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड स्थापित की गयी और उसे मिग-21 विमान बनाने का काम सौंपा गया. 1964 में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड का विलय हुआ और एक नयी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड अस्तित्व में आई. यह कंपनी मिग,जैगुआर जैसे लड़ाकू विमान बनाने से लेकर चीता और चेतक जैसे हेलीकाप्टर तक बनाती है. अन्तरिक्ष यानों के लिए क्रायोजेनिक इंजन तक यह सरकारी कंपनी बनाती है. मिग,जैगुआर जैसे विमान भी यह विदेशी कंपनियों से लाइसेन्स ले कर ही बनाती है,जैसा राफेल के मामले में भी होना था. इतने लंबे इतिहास और इतने सारे उत्पाद बनाने वाली कंपनी के पास रक्षा मंत्री जी राफेल विमान बनाने की योग्यता नहीं पाती हैं ! लेकिन सौदे से मात्र 12 दिन पहले बनी कंपनी जिसकी शेयर कैपिटल कुल 5 लाख रुपया है,उसमें उन्हें और उनकी सरकार को सारी योग्यता नजर आती है. यह अपने आप में इशारा करता है कि विमान निर्माण में योग्यता से ज्यादा जोड़तोड़ और जुगाड़ की योग्यता को महत्व दिया गया.
ओलान्द का बयान तो अनिल अंबानी को पहुंचाई गयी मदद की पुष्टि मात्र कर रहा है. अन्यथा तो 12 दिन पहले अस्तित्व में आई कंपनी को कई हजार करोड़ रुपए के सौदे में निर्माण का ठेका ईमानदारी से मिला होगा,इस पर कौन भरोसा करेगा ? जिस तरह अनिल अंबानी को ठेका मिलने को जायज ठहराने के लिए सरकारी कंपनी को सरकार के मंत्री ही नीचा दिखा रहे हैं,उससे साफ है कि इस सरकार,उसके मंत्रियों और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की भी प्रतिबद्धता देश से ज्यादा अंबानी के प्रति है. कई हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे अनिल अंबानी को उबारने के लिए इस रक्षा सौदे का इस्तेमाल किया जा रहा है. चूंकि सौदा सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में किया गया,इसलिए संदेह की अंगुली भी उन्हीं पर उठेगी.
आखिरकार स्वयं को चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री बताएं कि यदि देश के बनिस्बत अंबानी की तिजोरी भरना, यदि चौकीदारी है तो फिर डाकेजनी किसे कहा जाएगा ?