कहा गया है कि सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा ने अपनी देह को दो भागों में बांट दिया था। पहला हिस्सा ‘का’ हुआ और दूसरा ‘या’। दोनों मिलकर काया बने। पुरुष हिस्से का नाम स्वयंभुव मनु था और स्त्री हिस्से का नाम शतरूपा। उन्हीं दोनों के मेल से पृथ्वी पर हम मनुष्यों की उत्पति हुई। अपने आप में संपूर्ण न तो पुरुष है और न ही स्त्री। अपनी रचना के बाद पुरुष अबतक अपने आधे हिस्से की तलाश में भटक रहा है। टुकड़ों में उस आधे हिस्से की उपलब्धि का सुख कभी मां में मिलता है, कभी बहन में, कभी प्रेमिका में, कभी स्त्री मित्रों में और कभी पत्नी में। चैन फिर भी नहीं। अधूरेपन का अहसास तब भी नहीं जाता। संपूर्णता की यह तलाश अगर कभी पूरी होगी तो उसके अपने भीतर ही पूरी होगी। सही अर्थों में पुरुष के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नहीं, अपने भीतर के स्त्रीत्व से साक्षात्कार है। जिस दिन पुरुष अपने भीतर की स्त्री को उसके तमाम प्रेम, ममत्व, कोमलता और करुणा सहित पहचान और अपने जीवन में उतार लेगा, उसकी तलाश स्वतः पूरी हो जाएगी। तब पृथ्वी से इतर किसी स्वर्ग की खोज नहीं करनी होगी, यह पृथ्वी खुद स्वर्ग बन जाएगी। हमारी भारतीय संस्कृति में अर्द्धनारीश्वर की कल्पना यूं ही नहीं की गई थी।
सभी मित्रों को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की शुभकामनाएं !
#International_Men’s_Day #अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस