उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष माननीय दिवाकर भट्ट जी ने श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी,माननीय मुख्यमंत्री से शिफन कोर्ट से बेघर हुए 300 से अधिक मूल निवासियों के पुनर्वासन के संबंध में भेंट की और ज्ञापन दिया।
जिंसमे मुख्य बिंदु ये थे-
1.प्रभावित मजदूर परिवार इसी राज्य के मूल निवासी है, जिनमे अधिकतर टेहरी व चमोली जिलो से रोजगार कि तलाश में आए थे तथा 5 पीडियो से रिक्शा चलाना व भवन निर्माण आदि में मजदूरी करके अपने परिवार वालो का पालन पोषण कर रहे थे। इनके राशन कार्ड, गैस कनेक्शन, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पालिका का मजदुर लाइसेंस ,स्थाई प्रमाण पत्र आदि सभी दस्तावेज में शिफनकोर्ट का पता है।
2.वर्ष 2013 में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग और नगर पालिका परिषद, मसूरी के मध्य यह सहमती बनी थी कि मजदूरो के आवास तोड़ने से पूर्व उनके रहने की व्यवस्था सुनिश्चित की जायगी। परन्तु प्रशासन द्वारा बिना उनकी अन्यत्र रहने कि व्यवस्था किये, भारी पुलिस बल के साथ उनके घरो को तोडकर मजदूरो को बेघर कर दिया गया, जो कि बहुत ही निंदनीय व अमानवीय कृत्य है। कोरोना महामारी और मसूरी जैसे ठन्डे स्थान में बिना उचित संसाधन,दरवाजो के हवाघर व पार्किंग स्थल में रहना मानवाधिकार का हनन है।
3.माननीय उच्च न्यायालय द्वारा देहरादून की रिस्पना नदी के किनारे हुए अतिक्रमण को हटाने के निर्देश पर आप की सरकार दूसरे राज्यों से आकर बसे अवेध बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश ले कर आई जबकी दूसरी ओर इसी राज्य के मूल निवासियों को बिना अन्यंत्र जगह स्थापित किये जबरन बेघर कर दिया गया ये सरकार कि दोहरी नीति है जो अन्यापूर्ण है। वर्तमान में प्रभावित लोगों में कई बच्चे, बुजुर्ग ठंड से, महामारी से बीमार हो रहे है तथा उनके प्राणों को भी संकट है।
श्री दिवाकर भट्ट जी ने मुख्यमंत्री जी से अनुरोध किया, कि इन 84 मूल निवासी परिवारों कि परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग परिषद और नगर पालिका मसूरी को सख्त निर्देश दे जिसमे –
1.शिफनकोर्ट से जबरन हटाए गए मजदूर परिवारों को अन्यंत्र सुरक्षित स्थान पर पुर्नस्थापित
करने की व्यवस्था में निशुल्क भूमि और मकान बनाने के लिय उचित राशी दी जाए।
2.जब तक उनके रहने कि व्यवस्था सुनिश्चित नहीं होती तब तक उन्हें बाज़ार दर के
अनुसार मकान किराया दिया जाए।
3.उनके प्राणों कि रक्षा हेतु (ठंड,भूख आदि) राशन व अन्य आवश्यक संसाधन मुहया कराया
जाए।
उनके शिघ्र पुनर्वासन न किये जाने कि स्थिति में राज्य सरकार के विरुध आन्दोलन करने की हमारी बाध्यता होगी।
इसके अतरिक्त वर्तमान में राज्य के युवाओ के रोजगार से जुड़े हुए 2 अहम बिंदु पर भी चर्चा हुई जिसमे –
1. इस महामारी में उपनल में लम्बे समय से कार्यरत संविदा कर्मियों को सेवा से हटाना और 6 माह से वेतन न देना अमानवीय है।
2. कोरोना महामारी के चलते 4 लाख से अधिक प्रवासी उत्तराखंडी अपने मूल गाँव को वापस आए थे। उनके आने के कई माह बीत जाने के बावजूद उन्हें उत्तराखंड में ही रोजगार /स्वरोजगार प्रदान किये जाने के दिशा में कोई भी उलेखनीय प्रगति नहीं हुई है, जिस कारण प्रवासी युवा पुनः राज्य से बहार रोजगार की तलाश में जाने को विवश हो रहे है। उत्तराखंड क्रांति दल कि मांग है कि शीघ्र अतिशीघ्र कोई ठोस निती बना कर प्रवासी उत्तराखंडियो को राज्य में ही रोजगार/स्वरोजगार उपलब्ध कराया जाए ताकि सरकार का रिवर्स पलायन का नारा भी सार्थक सिद्ध हो सके।