हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश राज्यों के समाज कल्याण विभाग के कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल

देहरादून 21 फरवरी:  वर्ष 2010 से 2018 तक छात्रवृत्ति घोटाला समाज कल्याण विभाग में नौकरशाहों की नाक के नीचे चलता रहा। साल 2011 से लेकर साल 2016-17 तक निजी कॉलेज संचालकों ने खूब लूट  मचायी। सरकारी धन का दुरप्रयोग किया। पैंसों की चकाचौंध में अंधे हो चुके इन कॉलेज संचालकों ने कानून की खूब धज्जियां उडाई। जिसका नतीजा ये रहा कि उत्तराखंड में करीब पांच सौ करोड़ का फर्जीबाड़ा तस्दीक होना पाया गया। जिसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर एसआईटी गठित की गई। 50 हजार से शुरू हुआ घोटा का तकरीबन 500 करोड़ तक पहुंच गया। घोटाले के तार बेशक उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में स्थित शिक्षण संस्थानों से जुड़े हों, लेकिन घोटाले की बड़ी रकम हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर में ही ठिकाने लगाई गई। आशंका है कि उत्तराखंड में हुआ ये छात्रवृत्ति घोटाला 500 करोड रुपये़ से भी अधिक का हो सकता है। छात्रवृत्ति घोटाले में न केवल उत्तराखंड बल्कि अन्य राज्यों के शिक्षा संस्थान भी शामिल थे।

यह मामला साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्रित्व काल में सामने आया था यदि हाईकोर्ट एसआइटी जांच के आदेश नहीं देते तो संभावतः यह घोटाला भी सचिवालय की फाइलों में ही दफन हो कर रह जाता। साल 2019 में इस मामले की जांच एसआईटी को दी गई थी और लगभग 80 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे। नैनीताल में गठित एसआइटी अपनी जांच पूरी कर रिपोर्ट मुख्यालय को दे चुकी है। हालांकि हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में हुए घोटालों की जांच एसआइटी अभी तक कर रही है।

हैरानी की बात ये है कि इस छात्रवृत्ति घोटाले में न केवल उत्तराखंड बल्कि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के समाज कल्याण विभाग के कर्मचारी और अधिकारी भी शामिल हैं। शुरुआती जांच में आईपीएस मंजूनाथ टीसी ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए कई शिक्षा संस्थानों के मालिकों और अधिकारियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा था। शुरुआती जांच में 100 से अधिक अधिकारियों के नाम आए थे और 112 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। बताया जा रहा है कि अभी 101 अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है, जबकि 10 से अधिक अधिकारियों के खिलाफ अभी भी जांच चल रही है। एसआईटी प्रभारी अमित श्रीवास्तव ने बताया कि इन तमाम लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 409, 420 और भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

वर्ष 2019 से चल रही जांच के बावजूद विभागीय जांच नहीं हो सकी है। जिससे तमाम तरह के सवाल सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। चर्चाएं यह भी थीं कि घोटाले का रुपया मंत्री व निदेशकों तक भी पहुंचा। इसके कोई प्रमाण अभी तक एसआइटी के हाथ भी नहीं लगे हैं।

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जिस वक्त इस मामले का खुलासा हुआ था तब समाज कल्याण के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते 100 करोड़ रुपये से अधिक का सीधा-सीधा गबन सामने आया था। एसआईटी ने इस पूरे मामले पर 161 शिक्षा संस्थानों के मालिकों के खिलाफ भी आरोप-पत्र दायर किए हैं, जिसमें से देहरादून के 78 और हरिद्वार के 57 शिक्षा संस्थान शामिल हैं। एसआईटी प्रभारी अमित श्रीवास्तव का कहना है कि इस पूरे मामले पर जांच पूरी हो गई थी और अब सभी के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी गई है। ये फाइनल चार्जशीट नहीं है, अभी लगभग 12 लोगों के खिलाफ और जांच चल रही है। इनमें से कुछ अधिकारी दूसरे राज्यों के हैं। ऐसे में दूसरे राज्यों से भी समन्वय बनाकर इनके खिलाफ कार्रवाई करने की संस्तुति मांगी जा रही है।

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