पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के 75 वें वर्ष में पिंडारी ग्लेशियर के अंतिम गांव खाती के लिए सड़क बन रही है। यह अच्छी बात है और सड़क बनने से साहसिक पर्यटन को पंख लगेंगे। विश्व प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर ट्रैक को इस वर्ष ट्रैक आफ दी ईयर घोषित किया गया है। बागेश्वर के विश्व प्रसिद्ध ट्रैकिंग रूट पिंडारी ग्लेशियर को राज्य सरकार की ओर से ट्रैक ईयर ऑफ द इयर घोषित किए जाने के बाद क्षेत्रवासियों व पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगो की उम्मीदें बढ़ गई हैं। पर्यटन रोजगार से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि अब क्षेत्र का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा और ट्रैकिंग पर आने वाले व रोमांच के शौकीनों की संख्या में इजाफा होगा। साथ ही लंबे समय से बदहाली की मार झेल रहे ट्रैकिंग रूटों के अब बेहतर होने की उम्मीद भी लोग करने लगे हैं।

पिंडारी ग्लेशियर की खोज ब्रिटिश शासन में कुमाऊ कमिश्नर सर जार्ज विलियम ट्रेल को जाता है। उन्होंने वर्ष 1830 में सूपी गांव के मलक सिंह के साथ पिंडारी ट्रैक की खोज की थी। जिसके चलते ही पिंडारी ग्लेशियर के एक दर्रे को विलयम ट्रेल के नाम पर ट्रेल दर्रा कहा जाता है। जो उस वक्त व्यापार के लिए मुख्य दर्रा था। पिंडारी ग्लेशियर के जीरों प्वाइंटर की दूरी बागेश्वर जिला मुख्यालय से 84 किमी है। खाती तक 70 किमी की दूरी वाहन से तय होती है, बाकी दूरी पैदल तय की जाती है। पिंडारी ट्रैकिंग रूट की सैर करने के लिए देश-विदेश से हर साल ट्रैकर ‌आते हैं। ट्रैकरों और पर्यटकों की आवाजाही से खाती, वाछम आदि गांवों के 200 से अधिक गाइड, पोर्टर, होम स्टे, हट संचालकों की आजीविका चलती है। कोरोना के कारण पिछले दो वर्षों में ट्रैकिंग रूट पर सुनसानी रही, जिसका असर यहां के लोगों की रोजी-रोटी पर भी पड़ा। वही लंबे समय से ट्रैकिंग कराते आए गाइड संजय परिहार ने बताया की पिंडारी को ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित होने से पिंडारी का नाम आगे बडेगा व क्षेत्र का विकास होगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार बड़ने के साथ पिंडारी,कफनी व सुंदरढुंगा ग्लेशियरो को नई पहचान मिलेगी लोगो तक इनकी पहुंच बड़ने से आस पास के क्षेत्र भी विकसित होंगे। बागेश्वर जनपद ट्रैकिंग का मुख्य केंद्र भी बनेगा।

वही सीनियर गाइड ने बताया की ट्रैक ऑफ द ईयर बनने पर रोजगार बड़ने की संभावना है स्थानीय गाइड पोटरो घोड़े खच्चर वालो के साथ साथ होम स्टे व होटल व्यवसाय से जुड़े लोग भी इससे फायदे में रहेंगे। सबसे पहले जिला प्रशासन को क्षेत्र की बदहाली को दूर भी करना होगा। उन्होंने बताया की ट्रैकिंग के शौकीन ट्रेकर पिंडारी,कफनी व सुंदर ढुंगा ग्लेशियर आना तो चाहते हैं लेकिन ट्रैक रूट की बदहाली के कारण लोगों का यहां से मोह भंग हो रहा है। वर्ष 2013 के दौरान आई आपदा के बाद रास्ते और अन्य नुकसान की आज तक भरपाई नहीं होने से काफी दिक्कते है जिसे जल्द दूर करने की जरूरत है। ग्लेशियर के रूटो पर कई स्थानों पर हुए भूस्खलन के कारण ट्रैक रूट आज भी सही नही किए गए है। जिसे जल्द दुरुस्त किए जाने की सख्त जरुरत है।

हालांकि ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित होने के बाद फिर से क्षेत्र के पर्यटन से जुड़े लोगों को नई उड़ान मिलने की उम्मीद बड़ गई है। बागेश्वर जिले में 114 होमस्टे हैं। कौसानी के अलावा हिमालय के तलहटी पर घरों को लोगों ने सैलानियों के लिए संवार भी लिया है। पर्यटन विभाग के अनुसार अभी तक कौसानी में पांच हजार और पूरे जिले में आठ हजार से अधिक पर्यटक पहुंच गए हैं। ऐसे में इस बार पर्यटन व्यवसाय से अच्छी आमदनी की उम्मीद जगी है। उधर, पिंडारी ग्लेशियर की तरफ लगभग दस दल गए हैं। वहीं सुंदरढूंगा घाटी में कुमाऊं रेजीमेंट का दल वहां की प्रकृति की खोज में जुटा हुआ है। कौसानी में जून माह में पर्यटन व्यवसाय बढ़ने की उम्मीद है। स्थानीय निवासी बीडी जोशी ने कहा कि सीजन अभी चढ़ा नहीं है। होमस्टे का रुख अधिक पर्यटक कर रहे हैं। बंगाली भी इस बार कम आ रहा है। कश्मीर की तरफ पर्यटकों का अधिक रुख है। उत्तराखंड में अभी तक पर्यटक सलाहकार समिति का गठन नहीं हो सका है। होमस्टे बनाए जा रहे हैं। लेकिन व्यवस्थाएं अभी भी दुरुस्त नहीं हैं। इस सीजन में अभी तक ग्लेशियरों की साहसिक यात्रा पर 850 से अधिक ट्रैकर गए हैं, जिसमें चार विदेशी ट्रैकर भी शामिल हैं। इन्हें वन विभाग की चौकी कपकोट, खाती, जैकुनी में पंजीकरण करना होता है। वहां देशी को 100 और विदेशी को 200 रुपये शुल्क देना होता है। लेकिन पर्यटन विभाग पंजीकरण के लिए अब आनलाइन एप्लीकेशन है। जिससे ट्रैकरों को वन विभाग की चौकी पर पंजीकरण के लिए इंतजार नहीं करना होगा।

पिंडारी की यात्रा जिला मुख्यालय से लगभग 94 किमी दूर है, जिसमें लगभग 23 किमी पैदल चलना होता है। कपकोट के वि फुरकिया से पिंडारी ग्लेशियर से ड़ेढ़ किमी. पहले कुटिया बना तीस सालों से रह रहे स्वामी धर्मानंदजी की कुटिया तक का रास्ता भी जोखिम भरा है। इस पैदल मार्ग में कई नाले अभी बर्फ से पटे पड़े हैं, जो कि जानलेवा हो सकते हैं। इस यात्रा सीजन में एक विदेशी समेत कई लोग यहां घायल हो चुके हैं। बावजूद इसके इस पैदल मार्ग की देखरेख के लिए पीडब्लूडी का कोई भी कारिंदा इस मार्ग में मौजूद नहीं है। कई जगहों में रास्ते बहुत संकीर्ण हैं और वहां पर ऊपर से हमेशा पत्थर गिरते रहते हैं। पथारोहण और पर्वतारोहण से गुजर-बसर करने वाले गाईड और पोर्टर कहते हैं कि विश्वप्रसिद्व पिंडारी ग्लेशियर को देखने के लिए हर साल सैकड़ों ट्रैकर इस ओर आते हैं, लेकिन मार्ग की हालत देख ज्यादातर वापस लौट जाते हैं। धायक ने कहा कि द्ववाली के समीप पुल बनने से पिंडारी की साहसिक यात्रा सुगम हो गई है। पिंडारी को लेडीज ट्रैक भी कहा जाता है। इसके अलावा 28 स्थानीय पोर्टर, गाइड को पहली बार स्पेशल प्रशिक्षण निम उत्तरकाशी से दिया गया है। पांच किमी के पांच ट्रैक बनाने का भी प्रस्ताव है। वन विभाग द्वावली में 15 कमरों का गेस्ट आउस और चौकी भी है।

पिंडारी ग्लेशियर यात्रा मार्ग पर स्वास्थ्य सेवाएं चौपट हैं। यात्रा मार्ग के अंतिम गांव खाती में राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय है, लेकिन इसमें डॉक्टर का पद लंबे समय से खाली है। दुर्भाग्य से किसी पर्यटक का अचानक स्वास्थ्य बिगड़ गया तो उसे तहसील मुख्यालय लाना पड़ता है। पिंडारी ट्रैक खुला हुुआ है। पिछले वर्ष की आपदा में ध्वस्त रास्ते के ट्रीटमेंट का काम एडीबी की ओर से हो रहा है, जबकि मॉनीटरिंग लोनिवि कर रहा है। मार्ग में हट्स, खड़ंजा और बेंच निर्माण के लिए ठेकेदारों से अनुबंध हो गया है। लकड़ी के पैदल पुलों का जीर्णोद्धार का काम भी जल्दी से शुरू होगा। कुछ गधेेरों में लकड़ी के पुलों के स्थान पर स्टील के फोल्डिंग पुलों के निर्माण के लिए उच्चाधिकारियों के माध्यम से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे गए हैं। बजट अवमुक्त होते ही काम भी शुरू हो जाएगा। कुदरत ने इस क्षेत्र को काफी कुछ दिया है, लेकिन सरकारों ने उन्हें संवारने के लिए आज तक कुछ खास नहीं किया। वहां रहने खाने की व्यवस्था तो छोड़ो चलने के लिए पगडंडी भी ढंग की नहीं हैं, जबकि यात्रा मार्ग के गधेरों की हालत भी कम बरी नहीं है। जिसमें इसके लिए आज शनिवार को रवाना होंगे। पिंडारी ग्लेशियर को इस वर्ष ट्रैक आफ ईयर घोषित किया है। बताया जा रहा है कि इसी के मद्देनजर कुमाऊं कमिश्नर ने इस ग्लेशियर के प्रचार प्रसार और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय )

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