सामान्य रूप से मैं मिलिट्री मामलों पर लिखने या टिप्पणी करने से बचा  करता हूँ ,पर आज उन तीन अवसरों का जिक्र करना चाहूँगा जब हमने पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने और उसके और टुकड़े करने का मौका हाथ से जाने दिया I ये तीनो अवसर ऐसे थे हमारी सेनायें दुश्मन की छाती पर चढ़ उसका खून पीने को तैयार  थी I
१. आपरेशन ब्रासटैक्स ( Operation Brass-tacks) –  सन १९८७ में फरवरी के माह में जरनल मोबलाइजेशन का आदेश हुआ (जरनल मोबलाइजेशन में हर सैनिक को अपनी ड्यटी पर तुरंत वापिस आना होता है ) I देश में कई ट्रेन रद्द कर दी गयी , बड़ी संख्या में नागरिक वाहन (ट्रक आदि ) फ़ौज द्वारा किराए पर ले लिए गए और उन्हें माल गाड़ियाँ के साथ देश की उत्तरी सीमा पर फौजी साजो-सामान ढोने पर लगा दिया गया था I
कुछ ही दिनों में लगभग साढ़े छः लाख जवान पाक सीमा से कुछ ही दूर तैनात हो गए I यह युद्धाभ्यास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का सबसे बड़ा अभ्यास कहा गया और नाटो या वारसा देशों के अभ्यास के भी बड़ा था I
तकनीकी रूप से इसे एक सामान्य युद्धाभ्यास  ही कहा गया  था , किन्तु जानकार लोगों का मानना है कि यह अभ्यास अचानक हमले (सरप्राइज हमले ) के रूप में बदलने की तैयारी थी I तत्कालीन पश्चिमी कमांड के कमान अधिकारी लेफ्टिनेंट जरनल पी एन हून के अनुसार –
Brasstacks was no military exercise. It was a plan to build up a situation for a fourth war with Pakistan. And, what is even more shocking is that the Prime Minister, Mr. Rajiv Gandhi, was not aware of these plans.
— Lieutenant General P.N. Hoon, Commander Western Command
पाकिस्तान इस अभ्यास से घबरा गया था और उसने अपनी सेना को सीमाओं पर तैनात कर हाई अलर्ट पर रख दिया था I इसी समय पाकिस्तान के अब्दुल कादिर खान  ने भारत पर आणविक हमले की चेतावनी भी दी थी I
तब भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरनल जिया उल हक थे I जरनल जिया एक प्रवीण  सैनिक होने के साथ –साथ शातिर राजनेता भी थे I वे जानते थे कि उकी सेना भारतीय सेना के सामने टिक नहीं सकती I उन्होंने युद्ध से बचने के लिए जो चाल खेली उसे कूटनीति के इतिहास में “ क्रिकेट डिप्लोमेसी “ का नाम दिया गया था I
उन दिनों पाकिस्तानी क्रिकेट टीम भारत में खेलने आई हुई थी I सामान्य शिष्टाचार के तहत उन्हें भी मैच देखने का न्योता दिया ही गया था ,उन्होंने इसी का फायदा उठाया और जब भारतीय सेना सरप्राइज हमला करने के इरादे में थी जरनल जिया ऐन उसी वक्त ( २१ फरवरी १९८७ ) जयपुर चल रहे भारत-पाक मैच को देखने के बहाने भारत पंहुच गए I अब किसी देश का राष्ट्रपति हमारे देश में मैच देख रहा हो और हम उस देश पर हमला कर दें तो कूटनीति के हिसाब से अंतर्राष्ट्रीय राजनय में हमारी हार होती I
मिलिट्री मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर उस समय पाकिस्तान पर हमला हो जाता तो अगले तीन दिन में सिंध हमारे कब्जे में होता ,पंजाब और जम्मू-कश्मीर सीमा पर लगभग यथास्थिति बनी रहती I यहाँ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये उन दिनों की बात है जब पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा (अफगानिस्तान ) पर तत्कालीन सोवियत संघ की सेना की मौजदगी भी बनी हुई थी और सन १९८६ में भारत –चीन समझौते की वजह से चीनी सीमा से फौजी दस्तों की संख्या कम कर दी गयी थी (ये फौजी दस्ते पाकिस्तान सीमा पर लगा दिए गए थे ) I
( मैं इन दिनों पंजाब में पोस्टेड था और अतिरिक्त बल तैनाती के रूप में सूरतगढ़ (राजस्थान सेक्टर ) में तैनात था )
२. कारगिल संघर्ष – पाकिस्तान को सबक सिखाने का दूसरा मौका आया था सन १९९९ में I स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी तब प्रधानमंत्री थे I मई के प्रथम सप्ताह में ज्ञात हो गया था कि पाकिस्तान ने कारगिल सेक्टर में हमारी कुछ चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया है I २६ मई १९९९ को हमारी सेना ने जरनल मोबलाइजेशन के साथ जबाबी कार्यवाही शुरू कर दी I अगले चार-पांच दिनों में हमारी फ़ौज पूरी पश्चिमी सीमा पर रेडीनेस –वन (युद्ध की फाइनल तैयारी ) की स्थिति में आ चुकी थी I लगता था कि कभी भी –किसी भी क्षण पूर्ण युद्ध शुरू हो सकता है I किन्तु पूर्णयुद्ध की बजाय सीमित संघर्ष ( केवल कारगिल सेक्टर में ही ,वह भी अपनी सीमा के अंदर ) तक ही कार्यवाही ख़त्म हो गयी I तब पूर्ण युद्ध इसलिए नहीं हुआ क्योंकि अमेरिका नहीं चाहता कि पाकिस्तान तबाह हो जाय (आज भी नहीं चाहता ) I
२६ जुलाई १९९९ को कारगिल संघर्ष ( आपरेशन विजय ) समाप्त हो गया ,किन्तु पाकिस्तान की नापाक हरकतें जारी रहीं , उसके ख़ुफ़िया विमान टोह लेने के लिए हमारी सीमा के पास मंडराते रहे I १० अगस्त १९९९ को उसका एक जासूसी जहाज हमारी सीमा (कच्छ के रन ) में घुस आया ,जिसे मिग-२१ पायलट स्क्वाड्रन लीडर पी के बुंदेला ने मार गिराया I
यह दूसरा मौका था जो हमने हाथ से जाने दिया I
( कारगिल संघर्ष के  दिनों कच्छ-पाकिस्तान सीमा पर डिटैचमेंट कमांडर के रूप में तैनात था ,और बाद में हमारे बेस ने ही पाकिस्तानी जहाज को मार गिराया था )
३. संसद पर हमला –  पाकिस्तान को सबक सिखाने का तीसरा मौका मिला था जब उसके द्वारा प्रशिक्षित पाक आतंकवादियों ने संसद पर हमला बोला था I यह हमला किसी इमारत या चाँद व्यक्तियों पर नहीं था , यह हमला था भारतीय लोकतंत्र के सर्वोच्च प्रतीक पर ,यह हमला था भारतीय राज्य की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था पर ,यह हमला करोड़ों भारतीयों के प्रतिनिधियों पर I
१३ दिसंबर २००१ को जैसे ही संसद पर हमला हुआ , भारतीय सेनाओं को पुनः जरनल मोबलाइजेशन का आदेश मिला ,और कुछ ही घंटों में फौजे सीमा पर तैनात हो गयी I सेनाओं को रेडीनेस –वन की स्थिति में डाल दिया गया I निरंतर चौकसी के बीच दो –तीन ऐसे भी अवसर जब लगा कि अगले दो-चार मिनट में हमला शुरू हो सकता है I युद्ध की यह स्थिति कई सप्ताह तक बनी रही ,किन्तु बिना एक भी गोली चलाये फौजे वापिस लौट गयीं I अमेरिका ने इस बार भी युद्ध को रोकने ( दूसरे शब्दों में –अपनी कठपुतली को बचाने ) की पूरी कोशिश की ,जिसमें वह सफल भी रहा I
यह तीसरा मौका था जो हमने गँवा दिया I
(मैं इन दिनों कच्छ-पाकिस्तान सीमा पर ही डिटैचमेंट कमांडर के रूप में तैनात था )
अंत में चन्दबरदाई की एक कविता –
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।”
जो चूक गया, वो नेता नहीं होता... Pull the bloody trigger, this time.
स्मृति लेखन   –
पूर्व वायुसैनिक मुकेश प्रसाद बहुगुणा