कोरोना के टीके को 15 अगस्त से पहले जिल्लेइलाही के हुजूर में हाजिर होने का हुकुम दे दिया गया है, ताकि वे उस दिन लालकिले की प्राचीर पर खड़े होकर उसे खोज लिए जाने का एलान कर सकें और अपनी कामयाबी की पताका फहरा सकें। उनकी यह इच्छा इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा कोरोना वैक्सीन की खोज में लगी सभी प्रयोगशालाओं को निर्देश के रूप में सामने आयी, जिसमें उनसे कहा गया है कि वे हर हालत में लालकिले के भाषण से पहले टीका तैयार कर लें।
इस तरह बाकी सारे संस्थानों और संवैधानिक संस्थाओं की साख को मिट्टी में मिलाकर उन्हें अपने प्रचार और प्रसार का औजार बना लेने के बाद अब मोदी गिरोह की सूची में चिकित्सा विज्ञान की खोज करने, उसकी देखरेख करने वाली देश की सम्मानित संस्था भी जुड़ गयी है और उसे देश और दुनिया में मखौल का पात्र बना कर रख दिया है।इस सप्ताह के पहले ही दिन कोरोना प्रसार के मामलो में दुनिया में तीसरे नंबर पर आ जाने वाले और निकट समय में उसकी बेतहाशा तेजी से बढ़ने की आशंकाओं से घिरे देश की जनता के साथ इससे ज्यादा बड़ा कोई और बेहूदा मजाक नहीं हो सकता। वैज्ञानिकों ने ठीक ही ये चिंता जाहिर की है कि वैक्सीन की समय सीमा तय करने और हड़बड़ी मचाने से टीके की गुणवत्ता खराब होने सहित अनेक जोखिम हैं।
वैक्सीन, जिसे लोकप्रिय भाषा में टीका कहा जाता है, के विकास की एक निर्धारित वैज्ञानिक प्रक्रिया है। सेंटर फॉर डिसीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन (सी डी सी) के मुताबिक़ वैक्सीन बनाने का काम 6 चरणों में पूरा होता है और आम इस्तेमाल के लायक पुष्टि होने में वर्षो लग जाते हैं – महीनो तो पक्के से लगते हैं। मगर कोविद-19 (जिसे वैज्ञानिकों ने सार्स-कोव 2 कहा है) की वैक्सीन तैयार होने का काम इसलिए फ़टाफ़ट हो पा रहा है, क्योंकि वुहान में इसके पहली बार सामने आते ही चीन ने तुरंत इसकी जेनेटिक जन्मकुंडली बना ली थी और दुनिया की सारी प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों के लिए भेज भी दी थी।
कोविद-19 के वैश्विक प्रसार की संहारक गति को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) ने इन 6 चरणों को घटाकर 4 किया है, किन्तु उसमे भी समय तो लगेगा ही। ताजी खबरों के मुताबिक़ चीन वैक्सीन बनाने के तीन चरणों को पूरा कर चुका है और अब आख़िरी – हजारों मनुष्यों पर इसके परीक्षण – के चरण में हैं। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने मनुष्यों पर इसके परीक्षण – ह्यूमन ट्रायल – के लिए अपने को प्रस्तुत किया है। इसके बाद भी चीन के चिकित्सा विज्ञानियों का कहना है कि टीके के आम प्रयोग के लायक तैयार होने में करीब एक वर्ष लग सकता है।
चीन के अलावा कोविद-19 के टीके की खोज इस समय दुनिया की 125 प्रयोगशालाओं में की जा रही है। इनमें से 10 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खासतौर से उच्च स्तर के मानक अनुसंधानों के रूप में शिनाख्त की है। भारत में 30 से ज्यादा कोशिशें हुयी हैं। इनमे पुणे की नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ किया जा रहा काफी महत्वपूर्ण काम शामिल है।
इन पंक्तियों के लिखते समय तक वैक्सीन की 7 खोजें पहले चरण में थी। मतलब टीका खोजा जा चुका है – प्रयोग करना बाकी है। दूसरे चरण में भी 7 थीं – मतलब वैक्सीन की कई लोगों पर ट्रायल की जा चुकी है और वह सफल है। इसी के साथ दो स्थानों पर यह तीसरे चरण के पहले अध्याय तक पहुँच चुकी थी। मतलब सैकड़ों लोगों पर आजमाई जा चुकी है – अब फाइनल टच और सब के लिए जारी करना बाकी है। इन सभी के बीच समन्वय करने के लिए भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसे मई में भंग कर दिया गया था। यह समिति इसकी मुखिया डॉ. गगनदीप कांग के इस्तीफे की घोषणा के बाद हाल ही में चर्चा में आयी है।
टीके को हाजिर होने का हुकुम देने का यह कारनामा न पहला है, न आख़िरी। यह प्रधानमंत्री मोदी की आत्मप्रचार लिप्सा का एक और नमूना है और अपने विचार आराध्य कुनबे के नवरत्न पॉल जोसफ गोयबल्स को कुछ ज्यादा ही भक्तिभाव से अमल में लाना है।
गुजरे सप्ताह इसी की एक झांकी लेह में एक कथित अस्पताल का मंच सजाकर उसमे भर्ती कथित रूप से घायल सैनिकों से मुलाकात के फूहड़ मंचन में दिखी थी, जहां न कोई डॉक्टर था, न नर्स, न ग्लूकोज की बॉटल थी, न दवा की शीशियाँ! सारे “घायल” सैनिक अटेंशन की मुद्रा में अपने-अपने बेड्स पर बैठे थे और खुद अकेले ब्रह्मा उनका मुआयना करते हुए फोटो खिंचा रहे थे। प्रचार लिप्सा की वह हवस चिंताजनक है, जो इसमें विजिटर मोदी की फोटो-खिंचाऊं आतुरता में टपकी पड़ रही है। वे जिन्हें (संभवतः घायल सैनिकों को) देखने गए हैं, उन्हें नहीं देख रहे, कैमरे को देख रहे हैं। एक फोटो के लिए इतना आतुर होना अस्वास्थ्यकर है, वह भी उनका –जिनके फ़ोटो पिछली 70 वर्षों में किसी भी राजनेता के सबसे ज्यादा खिंचे-छपे-लटकाए-चिपकाए-दिखाए फ़ोटो है : सारी संभव-असंभव मुद्राओं में, सारे देशज गणवेशों-परिधानों में दुनिया के हर कोने में उतरे फ़ोटो हैं। फिर भी इतनी आतुरता, सचमुच चिंताजनक है।
यह नार्सिसिज्म – आत्मग्रस्तता – जिसके लिए उर्दू में ज्यादा सटीक शब्द है ; नर्गिसियत, की बीमारी के चरम पर पहुँच जाने का लक्षण है। जब यह रुग्णता भारी मुश्किलों में फंसे देश के सबसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति में दिखाई देती है, तो संबंधित व्यक्ति की सेहत के प्रति चिंता से आगे बढकर पूरे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय बन जाती है। दुनिया में ऐसे मामलों की नियमित सार्वजनिक समीक्षा का रिवाज है। अमरीका में कई मनोचिकित्सक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मानसिक स्वास्थ्य पर कई रिपोर्ट जारी कर चुके हैं, उसके द्वारा बोले गए झूठों की गिनती करते रहते हैं। भारत में कार्पोरेटी हिंदुत्व के आगे शरणागत और भागीदार मीडिया से इसकी उम्मीद करना व्यर्थ होगा। हालांकि इस बीच एक अच्छी खबर आयी है : स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविद महामारी के समय में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर दिशा निर्देश जारी किये हैं, हालांकि इसका कोई मतलब तभी निकलेगा जब इनकी शुरुआत शीर्ष से हो।
इधर 32 देशों के 239 विशेषज्ञ चिकित्सा विज्ञानी कोरोना वायरस के हवा से भी संक्रमित होने की गंभीर चेतावनियां जारी कर रहे हैं। कोविद-19 का संक्रमण तेजी से छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों को अपनी चपेट में लेते हुए छलांग मारते हुए बढ़ रहा है, उधर हुक्मरान, नर्गिसियत में डूबे-डूबे हुक्मरान, अपनी नारद स्वयंवरी छवि को निहारे जा रहे हैं। एक मशहूर शायर की रुबाई से उधार लें तो “डर के सो जाएँ या औरों को जगा लें हम लोग” के इस दुस्समय में जागते और जगाते रहना ही एकमात्र विकल्प है। इसी से हुक्मरानो का आत्मसम्मोहन भी टूटेगा और जीत के प्रति अवाम का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
आलेख : बादल सरोज (सयुंक्त सचिव )
अ.भा.कि.सभा