सिडकुल में यूपी निर्माण निगम के कार्यों की मॉनिटरिंग अब आईआईटी रुड़की करेगी लम्बे समय से रुके इनके निर्माण कार्यों को सिडकुल ने यूपी निर्माण निगम को 6 महीने का समय दिया है दरअसल,सिडकुल में यूपी निर्माण निगम के द्वारा किये गये कामों में करोड़ों रूपये के अनियमितता सामने आई थी जिस की जांच एसआईटी कर रही है जिसके चलते सिडकुल में करोड़ों के काम ठप्प पड़ गए लेकिन जांच एजेंसी से मंजूरी मिलने के बाद अब रुके हुए निर्माण कार्यों को शुरू करवा दिया गया है लेकिन कामो की गुणवत्ता व् रेट के बीच किसी तरह की कोई भी गड़बड़ी न रह जाये , इसके लिए सिडकुल ने थर्ड पार्टी से जांच कराए जाने का फैसला लिया है इसके तहत सिडकुल निर्माण कार्यों की जांच के लिए आईआईटी रुड़की से संपर्क कर चुका है . अब आईआईटी रुड़की द्वारा मौके पर जाकर स्थलीय निरीक्षण करने के , निर्माण कार्यो की रिपोर्ट व् उसकी अनुमानित लागत बताने के बाद ही सिडकुल निर्माण एजेंसी को भुगतान करेगा . आपको बता दें कि त्रिवेंद्र सरकार ने 2012 से 2017 तक के 100 से अधिक निर्माण कार्यों में गड़बड़ी होने के चलते सभी कार्यों पर एसआईटी जांच कराने के आदेश दिए हैं और इस मामले में अब तक एसआईटी द्वारा कई अनियमितताएं पकड़ी जा चुकी है।
जानिये कि क्या था ये पूरा मामला ?
ऑडिट रिपोर्ट में निकला था यूपीआरएनएन में 800 करोड़ का घपला
उत्तरप्रदेश राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) में 800 करोड़ से ज्यादा के घपले के रूप में सामने आया है। ऑडिट ने पांच वर्षों (2012-2017 ) यूपी निर्माण निगम पर बरसी मेहर को बेपर्दा कर दिया है।
विकास कार्यों के लिए पाई-पाई को तरस रहे और कर्ज लेकर कर्मचारियों के वेतन-भत्ते और पेंशन देने को मजबूर उत्तराखंड में सरकार के जिम्मेदार लोग नियमों को ताक पर रखकर उत्तरप्रदेश की कार्यदायी संस्था उत्तरप्रदेश राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) पर मेहरबान रहे हैं। नतीजा 800 करोड़ से ज्यादा के घपले के रूप में सामने आया है। ऑडिट ने पिछले पांच वर्षों में यूपीआरएनएन पर बरसी मेहर को बेपर्दा कर दिया है।
संस्था ने अच्छे प्रोक्योरमेंट नियमों का दंभ भरने वाले उत्तराखंड राज्य में ही इन नियमों के साथ ही अपने वर्क मैनुअल की धज्जियां उड़ाते हुए सिडकुल में करीब 650 करोड़ से अधिक की वित्तीय अनियमितता की, जबकि सेंटेज के रूप में 100 करोड़ से ज्यादा धनराशि वसूल की। संस्था की हिम्मत देखिए ब्याज और अवशेष बची करीब 50 करोड़ की राशि को सरकार को वापस करने के बजाए खुद ही दबा लिए।
ऑडिट रिपोर्ट की समीक्षा के दौरान यह सत्य सामने आने पर मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह सकते में आ गए। उन्होंने सभी संबंधित महकमों को अवशेष ब्याज और पूर्ण योजनाओं की धनराशि की गणना विभागीय स्तर पर करने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद यूपीआरएनएन से उक्त धनराशि की वसूली की कार्रवाई होगी।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चहलकदमी कर रही भाजपा सरकार ने यूपीआरएनएन के कारनामों से नाखुश होकर बीते मई माह में उसे नए कार्यों को देने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद सरकार ने निगम को बड़ा झटका देते हुए बीते पांच वर्ष 2012 से 2017 की अवधि में उसे विभिन्न महकमों और उत्तराखंड राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (सिडकुल) की ओर से सौंपे गए सभी निर्माण परियोजनाओं का स्पेशल ऑडिट कराने के आदेश दिए थे।
सिडकुल में विस्तृत स्पेशल ऑडिट अभी जारी है, लेकिन सरकार को जो ऑडिट रिपोर्ट मिली है, उसने यूपीआरएनएन में बड़े स्तर पर वित्तीय अनियमितताएं पकड़ में आई हैं। इससे खुद सरकार भी हैरान है। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने विभागीय आला अधिकारियों के साथ बैठक में इस रिपोर्ट की समीक्षा की।
यह मामला सीएजी के संज्ञान में भी है। बैठक में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के आला अधिकारी भी मौजूद थे। मुख्य सचिव ने उन्होंने ऑडिट में पकड़ी गई अनियमितता को लेकर संबंधित महकमों को तकनीकी जांच कराने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद यूपीआरएनएन की ओर से अनियमित रूप से प्रयुक्त धनराशि पर नियमों के मुताबिक कार्यवाही की जाएगी।
सिडकुल में बरसी खास मेहर
यूपीआरएनएन ने सिडकुल में प्रोक्योरमेंट नियमों के साथ ही अपने वर्क मैनुअल पर अमल नहीं किया, इसमें करीब 700 करोड़ से ज्यादा वित्तीय अनियमितता, इस मामले में यूपीआरएनएन ने अपने बोर्ड की मंजूरी मिलने का जिक्र किया है। ऐसा क्यों किया गया, इसका संतोषजनक तर्क नहीं। सिडकुल मामले में स्पेशल ऑडिट अभी जारी है।
खास बात ये है कि यूपीआरएनएन को दिए गए हर निर्माण कार्य के शासनादेश में प्रोक्योरमेंट नियमों का पालन करने की हिदायत दी गई है, लेकिन उत्तरप्रदेश की कार्यदायी संस्था के नाम पर उत्तराखंड के प्रोक्योरमेंट नियमों को लागू नहीं करने के मामले में राज्य की सरकारी मशीनरी भी सवालों के घेरे में है।
यूपीआरएनएन को सेंटेज में भी राहत दी गई, इससे करीब 100 करोड़ की अनियमितता बरती गई, 2012 से पहले यूपीआरएनएन सेंटेज में छूट देता रहा, लेकिन बाद में यह छूट समाप्त की गई। काम के एवज में लिए जाने वाले छह फीसद सेंटेज में दी जाने वाली छूट खत्म करने पर ऑडिट में सवाल खड़े किए गए हैं।
देहरादून इकाई एक, हल्द्वानी इकाई, श्रीनगर इकाई, विद्युत इकाई अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ इकाई, टिहरी इकाई व हरिद्वार इकाई ने योजनाओं स्वीकृत धनराशि से 4.37 करोड़ से ज्यादा खर्च किया।
11 परियोजनाओं के इस्टीमेट को दोबारा स्वीकृति से लागत में हुई 587.32 करोड़ की वृद्धि, योजनाएं समय पर पूरी करने की स्थिति में लागत में इजाफा नहीं होता।
निर्माण योजनाओं के लिए मिली धनराशि पर ब्याज से प्राप्त 32.89 करोड़ से ज्यादा राशि सरकार को नहीं दी, इनमें निम्न इकाइयां शामिल हैं। राशि करोड़ में-
हरिद्वार-1.31, देहरादून इकाई एक-4.98, देहरादून इकाई दो-2.78, देहरादून इकाई तीन-0.86, देहरादून इकाई चार-4.88, देहरादून इकाई पांच-6.15, टिहरी-1.74 व श्रीनगर-2.00, हल्द्वानी-1.78, रुद्रपुर-1.85, पिथौरागढ़-3.91, अल्मोड़ा-1.60, काशीपुर-0.38, विद्युत इकाई अल्मोड़ा-1.14, विद्युत इकाई श्रीनगर-0.76, विद्युत इकाई हरिद्वार-1.57, चमोली-0.21, पौड़ी गढ़वाल-0.56, रुड़की-0.42।
पूर्ण योजनाओं की अवशेष राशि 10.57 करोड़ से ज्यादा नहीं लौटाई, इनमें ये इकाइयां शामिल हैं।
हरिद्वार-0.60, देहरादून इकाई एक-1.02, देहरादून इकाई चार-2.06, टिहरी-3.31, श्रीनगर विद्युत इकाई-0.38, हल्द्वानी-0.73, रुद्रपुर-1.82, पिथौरागढ़-0.20, अल्मोड़ा-0.11, श्रीनगर इकाई-0.28। (इसमें अंतर्राष्ट्रीय खेल कॉम्प्लैक्स की अप्रयुक्त अवशेष 38.15 लाख भी शामिल)।
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