अभी तक हमने करीब ढाई लाख से ज्यादा लोगों को खो दिया हैं, पीड़ित लोगों की संख्या करोड़ों में है। अस्पतालों में बेड नहीं। ऑक्सीजन के हाहाकार ने रूला दिया है। जरूरी दवाओं की किल्लत है। सरकारें व्यापक प्रयत्नों में जुटी हैं, लेकिन हम अपने नागरिक कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकते।
कोरोना महामारी की तीसरी लहर के आने और उसके अधिक खतरनाक होने की बात की जा रही है। कोरोना वायरस के कितने और किस-किस तरह के वैरिएंट और आने वाले हैं, भले ही उन सब पर वैज्ञानिक गहन काम कर रहे हों लेकिन संभावित खतरों एवं संकटों को देखते हुए आम इंसान को भी जागरूक होना होगा, उसे अपनी जीवनशैली को कोरोना संक्रमण के हिसाब से ढालना होगा। यानी दूरी बरतना, लोगों के निकट संपर्क में नहीं आना, मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोते रहना, मनोबल बनाये रखना, खानपान की शुद्धि एवं पौष्टिकता, ध्यान एवं अध्यात्ममय जीवन, और हां बारी आने पर वैक्सीन जरूर ले लेना। बाजार, शापिंग मॉल, पर्यटन स्थल आदि से बचना होगा, शादी-ब्याह और अन्य सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन को कुछ समय के लिये टालना होगा। अन्यथा दूसरी लहर की तरह तीसरी लहर की देश को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
कोरोना महामारी के प्रभाव ने जीवनशैली में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है। वैसे भी युद्ध, महामारी और प्राकृतिक आपदायें जीवनशैली पर दुष्प्रभाव डालते हैं। भारत की जीवनशैली गतिशील और परिवर्तनशील होने के साथ स्वास्थ्यप्रद रही है, उसमें गजब की आत्म रूपांतरण शक्ति है, वह समय, काल, परिस्थिति के अनुरूप जीवनशैली में परिवर्तन कर लेती है। प्लेग, फ्लू, चेचक जैसी विश्वव्यापी महामारियों से जूझते हुए भारत ने विषम परिस्थितियों का धैर्यपूर्वक, पूर्ण मनोबल से सामना किया और उन्हें परास्त किया। अकाल की परिस्थिति भी भयानक थी, लेकिन भारत के लोगों ने धीरज नहीं खोया। आज कोरोना महामारी सृष्टि के इतिहास की सबसे भीषणतम एवं जानलेवा चुनौती है। हमने करीब ढाई लाख से ज्यादा लोगों को खो दिया हैं, पीड़ित लोगों की संख्या करोड़ों में है। अस्पतालों में बेड नहीं। ऑक्सीजन के हाहाकार ने रूला दिया है। जरूरी दवाओं की किल्लत है। सरकारें व्यापक प्रयत्नों में जुटी हैं, लेकिन हम सारी जिम्मेदारी सरकार पर डालकर अपने नागरिक कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकते। भयावह परिस्थिति का सामना जीवनशैली में बदलाव लाकर ही संभव है।
भारत में तेजी से कोरोना महामारी का दायरा बढ़ता जा रहा है, दवाओं व ऑक्सीजन की कालाबाजारी एक कलंक बनकर उभरा है। निस्संदेह यह संकट जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। ऐसे में सरकारों को दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी। कालाबाजारी करने वाले तत्वों पर सख्ती की भी जरूरत है। साथ ही संकट को देखते हुए तमाम चिकित्सा संसाधन जुटाने की जरूरत है। लेकिन इन सब उपायों के साथ आम व्यक्ति को अपनी जीवनशैली को दुरुस्त करना होगा। यदि मनुष्य अपने को सुधार ले तो समाज और राष्ट्र अपने आप सुधर जायेंगे। इसलिए परोपकार, परमार्थ की महिमा बताई गई है, निज पर शासन फिर अनुशासन का घोष दिया गया है। मनुष्यों के जीवन और कृत्य के परिष्कार के लिए उससे बढ़कर रास्ता हो नहीं सकता। अगर मनुष्य का आचरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग एवं संयम आदि पर आधारित होगा तो वह अपनी जीवनशैली में किसी प्रकार की बुराई एवं विसंगतियों की धुसपैठ नहीं होने देगा। जीवन एवं कर्म की शुद्धता ही कोरोना जैसी महामारी पर नियंत्रण की आधार-शिला है। अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए इनका अनुपालन जरूरी है।
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अनेक लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल को जीवनशैली का हिस्सा बनाया है तो तमाम ऐसे भी रहे जो असाधारण परिणाम देने वाले इन साधारण उपायों को भी नहीं स्वीकार करते। पुलिस, कानून का डर एवं थोपे गये अनुशासन जीवनशैली नहीं बदल सकते। इसके लिए स्वयं के प्रयास ही फलदायी है। कोरोना बचाव के नियमों एवं प्रशासनिक निर्देशों को जीवन अनुशासन का भाग बनाना होगा। इनका स्वतः स्फूर्त अनुपालन न केवल स्वयं बल्कि दूसरों के लिए जीवनदायी बनेगा।