आजकल लोग इस फोटो के बारे में पूछ रहे हैं कि क्या ये फोटो शिव पुराण से हैं और क्या ये कोरोना स्तोत्र, शिव पुराण में वर्षों पहले से लिखा हुआ है। पहले आपको, शिव पुराण के नाम से फैले इस पूरे कोरोना स्तोत्र के दर्शन कराते हैं, फिर इसके ऊपर अपनी बात रखेंगे कि ये शिव पुराण से है अथवा नहीं
कोरोनारक्षाकवचम्
त्वं करुणावतारोऽसि कोरोनाख्यविषाणुधृक् ।रुद्ररूपश्च संहर्ता भक्तानामभयङ्करः ।। ०१।।
मृत्यञ्जय महादेव कोरोनाख्याद्विषाणुतः ।मृत्योरपि महामृत्यो पाहि मां शरणागतम् ।।०२।।
मांसाहारात्समुत्पन्नाज्ज्गत्संहारकारकात् ।करुणाख्याद्विषाणोर्मां रक्ष रक्ष महेश्वर ।। ०३।।
चीनदेशे जनिं लब्ध्वा भूमौ विष्वक्प्रसर्पतः ।जनातङ्काद्विषोणोर्मां सर्वतः पाहि शङ्कर ।। ०४।।
बालकृष्णः स्मरंस्त्वां वै कालकूटं न्यपादहो ।न ममारार्भकः शम्भो ततस्त्वां शरणं गतः ।। ०५।।
समुद्रमथनोद्भूतात् कालकूटाच्च बिभ्यतः । त्वयैव रक्षिता देवा देवदेव जगत्पते ।। ०६।।
परक्षेत्रे चिकित्स्योऽयं महामारो भयङ्करः ।भीषयति जनान्सर्वान् भव त्राता महेश्वर ।।०७।।
वैद्या वैज्ञानिका विश्वे परास्ताश्च चिकित्सकाः ।आतङ्किता निरीक्षन्ते त्रातारं त्वामुमेश्वर ।।०८।।
रक्ष रक्ष महादेव त्रायस्व जगदीश्वर ।पाहि पाहि प्रपन्नं मां कोरोनाख्याद् विषाणुतः ।।०९।।
नान्यं त्वदभयं जाने भीतानां भीतिनाशकृत् ।अतस्त्वां शरणं यातं भीतं पाहि महेश्वर ।।१०।।
महायोगिन् महादेव कोरोनाख्यं विषाणुकम् । संविनाश्य जनान् रक्ष तव भक्तान् विशेषतः ।।११।।
मांसाहारान् सुरापानान् कामं संहरतादयम् ।कोरोनाख्यो विषाणुस्तु मा हिंस्याच्छिवसेवकान् ।।१२।।
भिक्षुयोगेश्वरानन्दकृतं द्वादशपद्यकम् ।जनः पठन् रक्षणीयः त्वयैव परमेश्वर ।।१३।।
ये पूरा किसी के पास नहीं पहुंचा पर फोटोशोप की हुई फोटो, शिवपुराण के नाम पर सबके पास पहुँच गयी। मजेदार बात देखिये कि लोगों के पास संस्कृत का अल्पज्ञान भी नहीं बचा है, जो इसको देखकर मान भी जाते हैं कि ये शिवपुराण से है। संस्कृत की रक्षा संस्कृत को पढने से ही हो सकती है पर लोग संस्कृत को पढना नहीं चाहते, पर उसकी तारीफ अवश्य करते रहना चाहते हैं, ऐसे पाखंडों और झूठ को सपोर्ट करते रहना चाहते हैं। देखिये, कितना आसान है, ये चेक करना कि ये स्तोत्र शिवपुराण से नहीं है।
जैसे इस स्तोत्र के चौथे पद्य में चीन देश का नाम है, जबकि पौराणिक काल में, किसी भी पुराण में चीन देश का नाम नहीं है हो भी नहीं सकता था क्योंकि तब चीन देश ही नहीं था भविष्य पुराण में भी इसका नाम म्लेच्छ देश के नाम से है। अतः ये एक शब्द ही स्पष्ट करने को काफी है कि इस स्त्रोत्र का शिव पुराण से कोई लेना देना नहीं है।
ऐसे ही पद्य ८ में, वैज्ञानिक शब्द आया है जबकि ये शब्द भी नया ही है, पौराणिक नहीं है। किसी पुराण में वैज्ञानिक शब्द नहीं है (विज्ञान हमारे यहाँ माया के ज्ञान को कहते हैं )
अंत में 13 वें पद्य में स्पष्ट लिखा है –
“भिक्षुयोगेश्वरानन्दकृतं द्वादशपद्यकम्” अर्थात भिक्षु य्गेश्वरानंद जी ने ये 12 पद्य लिखे हैं
ये सब पता करने के लिए, संस्कृत से पीएचडी करने की आवश्यकता नहीं है, अगर बेसिक भी आता होगा, तो आप ऐसी फेक पोस्ट को तुरंत पकड़ पायेंगे। संस्कृत की सिर्फ झूठी प्रसंसा मत कीजिये बल्कि उसको थोडा पढ़िए भी।
कसम खाइए कि आगे से व्हाट्सएप पर आई किसी भी अंड बन्ड पोस्ट को पौराणिक नहीं मानेगे इसलिए कि वो संस्कृत में है। ये एक पद्य है, शिव जी की स्तुति के साथ, उसे वैसे ही पाठ कीजिये। इससे पहले कि अन्य लोग भी इसे शिव पुराण का अंश मान कर फारवर्ड करें आप इस ख़बर को फॉरवर्ड कर सनातन संस्कृति को बचाने में सहयोग करें।?
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