प्रवासी मजदूरों के दिल की आवाज
बाट जोह रहे हैं सब मिल कर हमारी, काका-काकी, ताया-ताई।
मत रोको हमे अब,बस जाने दो विश्वास जो टूटा
तुम शहर वालों से वापिस लाने में समय लगेगा।
हम भी इन्सान हैं तुम्हारी तरह, वो बात अलग है हमारे तन पर
पसीने की गन्ध के फटे पुराने कपडे हैं,तुम्हारे जैसे उजले नही है कपडे।
चिन्ता मत करना बाबू तुम, विश्वास जमा तो फिर लौटूंगा।
जिंदा रहे तो फिर आएँगे लौट कर । जिन्दा रहे तो फिर आएँगे लौट कर ।
वैसे अब जीने के उम्मीद तो कम है अगर मर भी गए तो हमें इतना तो हक दे दो।
हमें अपने इलाके की ही मिट्टी मे समा जाने दो ।
आपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जो कुछ भी खाने दिया उसका दिल से शुक्रिया ।
बना बना कर फूड पैकेट हमारी झोली में डाले उसका शुक्रिया।
आप भी आखिर कब तक हमको खिलाओगे ।
वक्त ने अगर ला दिया आपको भी हमारे बराबर फिर हमको कैसे खिलाओगे ।
तो क्यों नही जाने देते हो हमें हमारे घर और गाँव ।
तुम्हे मुबारक हो यह चकाचौंध भरा शहर तुम्हारा।
हमको तो अपनी जान से प्यारा है भोला-भाला गाँव हमारा ।।
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