प्रवासी मजदूरों के दिल की आवाज 

जिंदा रहे तो फिर से आयेंगे बाबू
तुम्हारे शहरों को आबाद करने ।
वहीं मिलेंगे गगन चुंबी इमारतों के नीचे
प्लास्टिक के तिरपाल से ढकी झुग्गियों में ।
चौराहों पर अपने औजारों के साथ
फैक्ट्रियों से निकलते काले धुंए जैसे होटलों और ढाबों पर खाना बनाते ।
बर्तनो को धोते
हर गली हर नुक्कड़ पर फेरियों मे
रिक्शा खींचते।
आटो चलाते रिक्शा चलाते पसीने में तर बतर होकर तुम्हे तुम्हारी मंजिलों तक पहुंचाते ।
हर कहीं फिर हम मिल जायेंगे तुम्हे
पानी पिलाते गन्ना पेरते ।
कपड़े धोते , प्रेस करते , सेठ से किराए पर ली हुई रेहड़ी पर समोसा तलते या पानीपूरी बेचते ।
ईंट भट्ठों पर ,
तेजाब से धोते जेवरात को ,
पालिश करते स्टील के बर्तनों को ।
मुरादाबाद ब्राश के कारखानों से लेकर
फिरोजाबाद की चूड़ियों तक ।
पंजाब के हरे भरे लहलहाते खेतों से लेकर लोहा मंडी गोबिंद गढ़ तक।
चाय बगानों से लेकर जहाजरानी तक ।
अनाज मंडियों मे माल ढोते
हर जगह होंगे हम
बस सिर्फ एक मेहरबानी कर दो बाबू हम पर , इस बार हमें अपने घर पहुंचा दो ।
घर पर बूढी अम्मा है बाप है जवान बहिन है ।
सुनकर खबर महामारी की, वो बहुत परे
इस बार हमें अपने घर पहुंचा दो।

बाट जोह रहे हैं सब मिल कर हमारी, काका-काकी, ताया-ताई।

मत रोको हमे अब,बस जाने दो विश्वास जो टूटा
तुम शहर वालों से वापिस लाने में समय लगेगा।

हम भी इन्सान हैं तुम्हारी तरह, वो बात अलग है हमारे तन पर
पसीने की गन्ध के फटे पुराने कपडे हैं,तुम्हारे जैसे उजले नही है कपडे।

चिन्ता मत करना बाबू तुम, विश्वास जमा तो फिर लौटूंगा।

जिंदा रहे तो फिर आएँगे लौट कर । जिन्दा रहे तो फिर आएँगे लौट कर ।

वैसे अब जीने के उम्मीद तो कम है  अगर मर भी गए तो हमें इतना तो हक दे दो।

हमें अपने इलाके की ही मिट्टी मे समा जाने दो ।

आपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जो कुछ भी खाने दिया उसका दिल से शुक्रिया ।

बना बना कर फूड पैकेट हमारी झोली में डाले उसका शुक्रिया।

आप भी आखिर कब तक हमको खिलाओगे ।

वक्त ने अगर ला दिया आपको भी हमारे बराबर फिर हमको कैसे खिलाओगे ।

तो क्यों नही जाने देते हो हमें हमारे घर और गाँव ।

तुम्हे मुबारक हो यह चकाचौंध भरा शहर तुम्हारा।

हमको तो अपनी जान से प्यारा है भोला-भाला गाँव हमारा ।।

 

Credit: #SocialMedia

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