शिक्षा स्वास्थ्य रामभरोसे
बदहाल सड़कें,रोजगार के लिए दर-दर भटकते युवा
अधिकांश गांव के लिए बस सेवा नही,जीप चालकों की कट रही चांदी
अधिकतर सरकारी कार्यालय चल रहे निजि भवनों में

मंदाकनी नदी के किनारे बसा रूद्रप्रयाग बाजार और रूद्रप्रयाग जनपद के अंर्तगत आने वाले पहाड़ी आंचल में बसे छोटे-छोटे गांव आजादी के 75 वर्ष बाद भी विकास की राह देख रहे है। उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस क्षेत्र की जनता की आवाज पर टिहरी,पौडी चमोली के कुछ क्षेत्रों को जोडकर रूद्रप्रयाग को अलग जनपद का दर्जा दिया था। इस क्षेत्र की जनता की सोच यह थी कि हमारा अलग जिला तहसील और ब्लाक होगा। जिससे क्षेत्र की जनता को सुविधा होगी। यहां रहने वाले लोगों की पहाड़ जैसी जिन्दगी में कुछ सुधार होगा। क्षेत्रवासियों को अन्य क्षेत्रों का मुह नही दिखना पड़ेगा। जिला तो बन गया लेकिन अफसोस की बात है कि बरसों के बाद भी इस जिले का विकास राम भरोसे है।

जिला मुख्यालय रूद्रप्रयाग का यह हाल है कि बसों को खड़ा करने की समुचित जगह भी नही है। सरकारी विभागों के यह हाल है कि उनके कार्यालय आज भी प्राईवेट घरों से चल रहे है। मुख्यालय का यह हाल है कि सड़कें टूटी फूटी हैे। जबकि रूद्रप्रयाग से विश्वप्रसिद्ध धाम केदारनाथ व बदरीनाथ के लिए बसें चलती है। प्रत्येक वर्ष लाखों पर्यटक और श्रद्धालु रूद्रप्रयाग के होटल और धर्मशालाओं में ठहरते है और दोनों धामों के दर्शन के लिए निकलते है। 22 वर्षों में पूरा जनपद तो छोड़ो मुख्यालय के हाल रामभरोसे छोड़ा गया है। अब बात करते है रूद्रप्रयाग के गांवों और खेत खलियानों की। वहां के लोग किस हाल में रहते है,वहां की शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं कैसी है कोई देखने व पूछने वाला नही है। यहां की जनता हर पांच साल में विधायक चुनकर विधानसभा भेजती है। यह सोचकर की शायद हमारा विधायक उनकी समस्याएं विधानसभा पटल पर रख सकेगा। जिससे उनकी समस्याओं की गंूज विधानसभा तक पहंुचेगी। लेकिन विधायक चुनाव जीतने के बाद कुंभकरणी नींद में सो जाते है। जनता के सपनों को उनसे किए वादे सारे भूल जाते है। सिर्फ उन्हे याद रहता है कि पांच साल बाद भोली भाली जनता से क्या झुठे वादे किए जाएं।

पूरे जनपद रूद्रप्रयाग में शिक्षा का स्तर डगमगाया हुआ है। विद्यालय का भवन टूट रहा है। छात्र संख्या घट रही है किसी को कोई परवाह नही है। अस्पतालों में स्टाफ है दवाईयां है,अन्य सुविधाएं है या नही कोई देखने वाला नही। रूद्रप्रयाग जिला अस्पताल के हाल तो और भी बुरे है। न उनके पास अल्ट्राउंड और न ही सिटीस्केन की सुविधा और न ही विशेषज्ञ डॉक्टर। गरीब इलाज के लिए आते है। उन्हे या तो श्रीनगर या देहरादून रैफर कर अपना पल्ला झाड लिया जाता है। कोई बिमार हो जाए तो उसे अपनी जान बचाने के लिए देहरादून आना पड़ता है। कई बार प्रसवपीड़ा से महिलाओं की मौत हो जाती है। क्योंकि अधिकतर स्वास्थ्य केन्द्रो में महिला डॉक्टर नियुक्त ही नही है।

गांव के विकास की बात करें तो विकास सिर्फ कागजों में नजर आता है। जमीनी हकीकत शुन्य है। कोई अधिकारी पहाड़ के गांव में आने को तैयार नही है। ग्राम प्रधान क्या काम कर रहा है कोई देखने वाला नही। ब्लाक में योजनाएं बनती है और वहीं पर ग्राम प्रधान को एनओसी मिल जाती है। विकास कार्य हुआ या नही अधिकारियों को कुछ लेना देना नही। कमीशन मिल गया,जनता जाए भाड़ में हमे क्या पड़ी।

अधिकारियों का यह मानना है। जनपद रूद्रप्रयाग में पलायन तेजी से बढ़ रहा है। क्यों बढ़ रहा है सरकारी तंत्र को कोई लेना देना नही। पलायन का कारण हम भी जानते है और सरकारी तंत्र भी। शिक्षा का स्तर,स्वास्थ्य का स्तर और बेरोजगारी यही तीन कारण है पलायन के। हर मां बाप का सपना होता है कि उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। हर इंसान का सपना होता है कि वह जहां भी रहता है। वहां पर सुविधाएं व रोजगार मिले। अगर यह सभी जरूरत की चीजें इंसान को मिल जांए तो वह क्यों अपना आशियाना छोडकर कहीं और क्यों जाएगा। लेकिन राज्य गठन के 22 वर्षो बाद भी जनपद रूद्रप्रयाग विकास से कोसो दूर है।