देहरादून, 24 जुलाई : जन विरोधी भू कानून-2018 को तत्काल निरस्त करने और हिमाचल एवं अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही उत्तराखंड राज्य मे भी उसका अपना सशक्त भू कानून बनाए जाने की मांग को लेकर आज 16 संगठनों ने गांधी पार्क में भू-कानून संयुक्त संघर्ष मोर्चा के बैनर तले जबरदस्त धरना प्रदर्शन किया गया l

धरने में शामिल सभी संगठनों के जन-प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर अपना कड़ा आक्रोश जाहिर करते हुए एक स्वर में सरकार की आलोचना करी I संघर्ष मोर्चा के द्वारा घोषणा की गई कि सरकार द्वारा जिस तरह से माफियाओं व पूंजपतियों के हित मे आज तक यह जन विरोधी कानून 2018 को बरकरार रखा है व नए भू कानून को बनाए जाने के सवाल पर वह मौन साधे बैठी है उसे देखते हुए अब इस आंदोलन को पूरे उत्तराखंड में फैलाया जाएगा I

मोर्चे की सयोजिका कमला पंत ने घोषणा करी कि पहाड़ के अस्तित्व से जुड़े इस बेहद संवेदनशील मुद्दे पर आगामी 30 जुलाई को र्मोचे से जुड़े सभी संगठनों के प्रतिनिधियों की सामूहिक बैठक आहूत की जा रही है, जिसमें सभी के विचारों को सुन कर सर्वसम्मति से ही आगे के कार्यक्रम तय किए जाएंगे I

प्रदर्शन मे वक्ताओं ने इस बात पर भी रोष व्यक्त किया कि बरसात में जब जगह-जगह वृक्षारोपण किया जाता है तो सरकार अच्छी-खासी चौड़ी सहस्त्रधारा रोड पर अन्धाधुन्ध पेड़ों को कटवाने का कार्य कर रही है, वहीं दूसरी ओर गरीबों के घरों पर बुलडोज़र चलाकर उनके घरों को उजाड़ने में लगी हुई है I विकास के नाम पर की जा रही ऐसी असंवेदनशीलता पर गुस्सा जाहिर किया गया I साथ ही हेलंग में हुई महिला अपमान की घटना की सभी वक्ताओं ने घोर निंदा की l

मोर्चा के घटक संगठन (#जनविरोधी_भूकानून )

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सभा का संचालन करते हुए निर्मला बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड की महिलाओं के साथ यहां के पुलिस प्रशासन के रवैये को कतई बर्दास्त नहीं किया जा सकता है Iआंदोलनकारी मंच के जगमोहन नेगी ने कहा कि इस भू-कानून के चलते यहां के बच्चों के भविष्य को बर्बादी के कगार पहुँचाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है I हाई कोर्ट नेनीताल से आये वरिष्ठ अधिवक्ता बी.पी.नौटियाल ने विधान सभा सत्र के पहले दिन ही 2018 के कानून को खत्म कराने की बात पर जोर दिया l उन्होंने आंदोलन में कानूनी पहलुओं की जानकारियों को रखे जाने की सलाह भी दी l

अखिल गढ़वाल सभा के सचिव गजेंद्र भंडारी ने कहा कि गढ़वाली समाज जिस तरह से सारे पहाड़ में जमीनों व जंगलों की दुर्दशा हो रही है उससे वह बेहद आहत है I हिमाचल की तर्ज़ पर यहां भी भू कानून बने, गढ़वाल सभा की यही मांग है Iसंयुक्त नागरिक संगठन के सुशील त्यागी ने कहा कि भू कानून के और पर्यावरण के मुद्दे पर नागरिक संगठन पूरी तरह से मोर्चा के साथ खड़ा है और रहेगा I किसान सभा के सुरेंद्र सजवाण ने कहा कि भू-कानून के सवाल पर किसान सभा हर संघर्ष में साथ है I उन्होंने पहाड़ में खेती व वहां के किसान की दुर्दशा पर भी चिंता जाहिर की l


धरने में एसएफआई व जन संवाद समिति के साथियों ने भू-कानून के सवाल पर जनगीत गाकर लोगों मे उत्साह भरा I एसएफआई के नितिन ने कहा कि जन मुद्दों पल जागरूकता और संघर्ष के द्वारा ही हम हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैंI युवा शक्ति संगठन के मनीष पांडे ने कहां की हमें उत्तराखंड को बचाने के लिए एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा l सब लोग जब साथ मिलकर लड़ेंगे तभी हम तभी लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे l जगमोहन मेहंदीरत्ता ने भी एकजुट होकर लड़ने की जरूरत पर जोर दिया l भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट ने कहा कि हम उत्तराखंड के हक की लड़ाई के लिए जन विरोधी नीतियों के खिलाफ और जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए एकजुट हुए हैं और आगे भी रहेंगे I जन हस्तक्षेप के शंकर गोपालन ने जिस तरह से मजदूरों को बेघर किया जा रहा है उसके प्रति गुस्से का इजहार किया और भू कानून के संघर्ष में एकजुटता की बात कही l विकल्प सामाजिक संगठन के हरिद्वार से आई रेखा ने कहा कि पहाड़ों की महिलाओं को वनों की लड़ाई के लिए भी आगे आना होगा l कर्ण प्रयाग से आए उमेश खंडूरी पहाड़ी ने कहा कि इस लड़ाई को गांव-गांव तक पहुंचाना होगा l

प्रदर्शन में 300 से ऊपर पुरुष और महिलाओं ने बड़ी संख्या में भागीदारी की वक्ताओं में उक्रांद के लूसुन टोडरिया , समानता पार्टी संगठन के आर.पी.रतूड़ी अधिवक्त अब्बल सिंह नेगी, सरस्वती विहार विकास समिति के अध्यक्ष पंचम सिंह बिष्ट, सामाजिक कार्यकर्ता सुशील सैनी राजकीय पेंशनर संगठन के चौधरी ओमवीर सिंह, देवभूमि संगठन के आशीष नौटियाल , कुर्मांचल परिषद् के के कमल रजावर , उत्तरा पन्त बहुगुणा आदि कई वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए संयुक्त संघर्ष को मजबूत करने का संकल्प दुहराया I धरने के समापन पर प्रदर्शनकारियों द्वारा घंटाघर तक जोरदार नारों के साथ जुलूस निकालकर किया गया l इस बीच संयुक्त संघर्ष मोर्चा के ओर से निकाले गए पर्चों का वितरण भी किया गया l

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क्यों उठ रही है भू_कानून की मांग और क्या हैं इसके फायदे

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