दिल्ली में आधी रात को गिरफ्तारियां शुरू हो चुकी हैं….

मैं जब यह पोस्ट लिख रहा हूं तो चारों तरफ से पुलिस तमाम किसान नेताओं को उठा चुकी थी । इनमें ज्यादातर सेकंड लाइन वाले किसान नेता हैं ।

किसान नेता 24 दिनों में अपनी ट्रैक्टर रैली की रणनीति नहीं बना सके । 2 जनवरी को ट्रैक्टर रैली का ऐलान हुआ था । सरकार किसान और जनता के खिलाफ अपनी रणनीति रोजाना बनाती है । 26 जनवरी के अगले दिन गिरफ्तारी की जानी है,दिल्ली पुलिस एक हफ्ता पहले ही इसकी रणनीति बना चुकी थी ।

केन्द्र सरकार ने न सिर्फ इस आंदोलन को कुचला, बल्कि उसने हर उस खेल को खेला जिससे इस व्यापक किसान आंदोलन को खत्म किया जा सके ।

अब उन 30 जत्थेबंदियों के सरदारों को पकड़ा जा रहा है, जिन पर इस आंदोलन की जिम्मेदारी थी । जत्थेबंदियों के सरदारों की गिरफ्तारी का मतलब है, उनके साथ आए लोगों की अपने घरों को वापसी या पलायन ।

दिल्ली पुलिस ने 18 संगठनों और 37 नेताओं के नाम एफआईआर में डाले हैं । कल से अब तक अनगिनत एफआईआर दर्ज हो चुकी है । इसमें हत्या के प्रयास का आरोप भी शामिल है । योगेन्द्र यादव, मेधा पाटकर, टिकैत, बूटा, दर्शन पाल, संधू, कादियान, डाफर, मनसा, पन्नू के नाम पर ऐसी धाराएं लगाई गई हैं जिनमें दस साल तक की कैद हो सकती है ।

सरकार ने अभी तक अपने एजेंट दीप सिद्धू, बलबीर सिंह और लक्खा सधाना के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं किया है । सरकार और दिल्ली पुलिस की इनसे हमदर्दी क्यों है ? हालाँकि देर रात दिल्ली पुलिस के कुछ अफ़सरों ने बताया कि इनके खिलाफ भी केस दर्ज कर लिया गया है,लेकिन ये केवल जुबानी है दस्तावेजी नहीं ।

सरकार ने किसान संगठनों में फूट भी डलवा दी है । वी.एम. सिंह से लेकर राकेश टिकैत तक अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं । पूरा मीडिया सरकार के साथ है ।

सरकार अब किसान आंदोलन पर भारी है ।

सरकार आए दिन किसान नेताओं से बात करने का ढोंग भी करती थी और दिल्ली के पुलिस अफसरों को वो जरूरी निर्देश भी दे रही थी कि 26 जनवरी को इस आंदोलन को कैसे कुचलना है ।

लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है । सरकार को किसानों की एकजुटता से डर लगता है । यही उसकी कमजोर कड़ी है । अगर आप एकजुट हैं तो सरकार आपका कुछ भी उखाड़ नहीं सकेगी ।

याद कीजिए सीए-एनआरसी आंदोलन में कितने ही युवकों को पकड़ कर इस फासिस्ट सरकार ने जेल में डाल दिया लेकिन आंदोलन रुका नहीं । दिल्ली के जनसंहार 2020 में 53 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश मुस्लिम थे । क्या किसी हत्यारे को पुलिस या सरकार पकड़ सकी ?

शाहीनबाग आंदोलन को कोरोना जैसी आपदा में अवसर तलाश कर तोड़ा गया ।

आप लोगों की याददाश्त कमजोर है । जुमला आप लोग भूल गए । जुमला था – आपदा में अवसर । शाहीनबाग आंदोलन को खत्म करने के लिए कोरोना को अवसर में बदला गया ।

किसान आंदोलन को खत्म करने लिए 26 जनवरी को अवसर में बदला गया ।

लेकिन किसान एकजुटता से फिर से पहले से भी ज्यादा बड़ा और सशक्त आंदोलन खड़ा कर सकते हैं ।

याद रखिए…धर्म के नाम पर आपको तोड़ा जाएगा….आप आज तक धर्म के नाम पर ही ठगे जाते रहे हैं । ठग नई वेशभूषा में आ चुका है ।

उनके गिरोह गलियों में धर्म के नाम पर चंदा मांगने निकल पड़े हैं । यह आपके लिए धर्म और धार्मिक आस्था का नया ट्रैप (फंसने का खतरा) है । ये वो लोग है जो मानवता की रक्षा के लिए नहीं बल्कि इंसान, इंसान से लड़े इसके लिए ज्यादा उतावले रहते हैं और उसके लिए अवसर बनाते हैं ।

इस ट्रैप से बच निकलने का एक ही रास्ता है,वो है किसानों की एकजुटता और किसानों के लिए एकजुटता । अपने दुश्मन को अगर नहीं पहचान सके तो आपको बर्बाद होने से कोई बचा नहीं सकता ।

 

तीन घंटे भी न टिकी लालकिले पर झंडे फहराने की साज़िश !

साभार : एक पत्रकार मित्र की वॉल से

#किसानआंदोलन #किसान #किसानआंदोलन2020 #किसानविरोधीमोदीसरकार #किसानआंदोलनदिल्ली #किसानविरोधीसरकार #किसानबिल
#FarmersProtest #WeSupportFarmers
#wesupportfarmerschallenge