Nelang valley: People come from far away to see the beauty of this valley.

नेलांग घाटीः इस घाटी की खूबसूरती देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग

उत्तरकाशी जिले में स्थित नेलांग घाटी बेहद मनोरम और सुंदर है. इसकी खूबसूरती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस जगह के प्रेमी विदेशी भी हैं. इस जगह की कई और खघसियत हैं, जिन्हें जान कर आप भी यहां घूमना पसंद करेंगे। नेलांग घाटी की ऊंचाई समुद्र तट से 11,000 फीट ऊंची है, इस वजह से यहां साल भर बर्फ को देखा जा सकता है।1962 में भारत-चीन के बीच लड़ाई के बाद घाटी को हमेशा के लिए पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था।पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लगभग 52 साल बाद नेलांग घाटी को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. नेलांग घाटी ना सिर्फ सुंदर जगह है बल्कि भारत-चीन के बीच बहुत बड़ा व्यापारिक रास्ता हुआ करता था.पर्यटकों के अनुसार इसकी घाटी रोमांच पैदा करने वाली है इस घाटी की खघ्ूबसूरती को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां आने के बाद पर्यटकों को नेलांग घाटी में बना वुडेन ब्रिज देखने को मिल सकता है. इस ब्रिज की सबसे खघस बात है कि यह कभी भारत-तिब्बत के बीच व्यापार का केंद्र रहा था. पहाड़ी पेड़ों के अलावा यहां हिम तेंदुआ और हिमालयन ब्लू शीप देखने को मिल जाते हैं.पर्यटकों का कहना है कि घाटी को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह तिब्बत का ही प्रतिरूप हो. कई पर्यटकों का मानना है कि यह जगह लद्दाख से भी बेहतर है. भारत में कई ऐसी जगह हैं जो पर्यटन के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं. तेलांग घाटी उन्हीं जगहों में से एक है। 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था। पांच सौ मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। सन् 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद दस वर्षों तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। लेकिन, पिछले 40 वर्षों से गर्तांगली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिटने जा रहा है।
उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है। सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए व जादूंग अंतिम चौकियां हैं। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां कदम-कदम पर सेना की कड़ी चौकसी है और बिना अनुमति के जाने पर रोक है। लेकिन, एक समय ऐसा भी था, जब नेलांग घाटी भारत-तिब्बत के व्यापारियों से गुलजार रहा करती थी। दोरजी (तिब्बत के व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक को लेकर सुमला, मंडी, नेलांग की गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे। तब उत्तरकाशी में हाट लगा करती थी। इसी कारण उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि वस्तुओं को लेकर लौटते थे।