संजय पराते (उपाध्यक्ष ) अखिल भारतीय किसान सभा
भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों की सीमाओं के आर-पार सुनियोजित तरीके से युद्धोन्माद फैलाया जा रहा है। लोगों की भावनाओं को दांव पर लगाकर इस युद्ध का औचित्य साबित करने की कोशिश की जा रही है। युद्ध अंतिम विकल्प है। इससे बचने की कोशिश करना ही मानव धर्म है, क्योंकि कोई भी युद्ध समाधान नहीं देता, समस्या जरूर खड़ा करता है। बगैर युद्ध किए, किसी संभावित युद्ध को टालकर समस्या का समाधान निकालना सर्वोच्च कूटनीति होती है। कूटनीति की विफलता युद्ध को जन्म देती है। हमें यह कहते हुए कोई अफसोस नहीं कि भारत सरकार की कूटनीति असफल साबित हुई है।
दरअसल यह एक बाजारू युद्ध है, जिसमें जन भावनाओं का दोहन, बाजार का मुनाफा, विधानसभा चुनाव की रणनीति, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण — आदि-आदि सभी एक साथ काम कर रहे हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही को ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया है। इस नाम को देने का श्रेय परिधान मंत्री मोदी स्वयं ले रहे हैं। पहलगाम में विधवा हुई पर्यटकों को उनके सिंदूर का हवाला देकर युद्ध का औचित्य सिद्ध किया जा रहा है। गोदी मीडिया में पाकिस्तान पर पिछले दो दिनों से भारी बमबारी के बाद अब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ट्रेडमार्क का रजिस्ट्रेशन हासिल करने के लिए मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस ने आवेदन कर दिया है। इस युद्ध का अंतिम नतीजा चाहे जो हो, मोदी के मित्र अंबानी की तिजोरी को भरना तय कर लिया गया है। इसलिए यह केवल भारत और पाकिस्तान के बीच का ही युद्ध नहीं है, बाजार में मुनाफा बटोरने के कौशल के साथ आगे बढ़ने वाला युद्ध है। युद्ध का उन्माद जैसे-जैसे भड़केगा, गोदी मीडिया आम जनता का मनोरंजन करने और मुनाफा कमाने के लिए तैयार बैठा है। दूसरी ओर, हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय सौदागरों की आंख़ें भी चमक रही हैं और इनमें एक बड़ा सौदागर अमेरिका है। वह शांति की अपील भी करेगा और अपने हथियार भी बेचेगा : खरीदने वाला भारत हो या पाकिस्तान, युद्ध-युद्ध के इस खेल में उसके पौ बारह है।
यह युद्धोन्माद जितना लंबा खींचेगा, संघी गिरोह को विधानसभा चुनाव में उतना ज्यादा फायदा मिलने जा रहा है। परिधान मंत्री सरकार द्वारा आहूत सर्वदलीय बैठकों से ही गायब है। उनके लिए गली कूचों में जाकर पाकिस्तान को ललकारना प्राथमिकता है। जब अमेरिका हमारे देशवासियों की मुश्कें बांधकर, अपने सैनिक विमान से लाकर हमारी जमीन पर पटक रहा था, मोदी की घिग्घी बंधी हुई थी। आम जनता भी मजे से सो रही थी। लेकिन अब विपक्षी दलों को मालूम है कि आम जनता का राष्ट्रवाद जाग गया है और उसकी हिंसक भावना को भड़का दिया गया है, वह पाकिस्तान के साथ कुश्ती लड़कर ही संतुष्ट होना चाहती है। इसलिए वह पाकिस्तान के खिलाफ हर कार्रवाई को आंख मूंदकर समर्थन करने के लिए तैयार है। संघी गिरोह जानता है कि आम जनता को कब जगाना है और कब सुलाना है। विपक्ष तो यहां बड़े कमाल का है। वह आम जनता को जगाने जाती है और उसे जगाते-जगाते खुद सो जाती है। कभी कभी जनता भी उसे झिंझोड़कर जगाने की कोशिश करती है, लेकिन वह जागने का नाम ही नहीं लेती। सोते हुए विपक्ष ने जम्हाई भरकर संघी गिरोह को पाकिस्तान के खिलाफ अपने मन का करने को कह दिया है, न कोई सवाल, न कोई जवाब। डर केवल इतना कि कुछ कह दिया, तो जनता को भी जगाने का काम करना पड़ेगा। अब इतना पुरुषार्थ कौन करें कि खुद भी जागे और जनता को भी जगाए! रहा सवाल चुनावों का, तो भगवान राम सबका भला करेंगे। 15 साल भाजपा को देंगे, तो छत्तीसगढ़ जैसे एक बार कांग्रेस को भी मौका देंगे कि हिसाब-किताब बराबर कर लो! भले पांच साल बाद ईडी-सीबीआई के चक्कर खाते रहना, थोड़ा जेल वगैरह में भी तफरीह कर लेना। जब तक भगवान पर भरोसा कायम रहेगा, सत्ता में आने की आस भी बनी रहेगी। वरना जनता का क्या भरोसा, दोनों को ठुकराकर तीसरे को ले आएं।
संघी गिरोह जानता है कि इस युद्ध के तेज होने, लंबा खींचने से भले ही देश पीछे खिसके, हिंदू राष्ट्र की ओर उसके कदम कुछ और आगे तो बढ़ ही जायेंगे। भले ही कर्नल सोफिया कुरैशी ने पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों को मिट्टी में मिलाने का काम करके वतन की हिफाजत की हो, पोस्टर बॉय बनकर तो मोदी ही चमकेंगे, क्योंकि चुनावी सभा में आतंकियों को ‘मिट्टी में मिलाने’ की कसम तो उन्होंने ही खाई थी। पहले की कहावत थी — मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। शायद बुद्ध-वुद्ध के समय से चला आ रहा था। लेकिन अब ये मोदी राज का नया भारत है। नए भारत का नया नारा है — “लड़ने वाले से कसम खाने वाला बड़ा” होता है। मोदी की कसम के आगे सोफिया की बहादुरी क्या मायने रखती है!
भले ही टायर का पंक्चर बनाने वाली जमात की सोफिया पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दें, भले ही आतंकी हमलों से कश्मीरी जनता संघ भाजपा के नेताओं की जान बचा लें, भले ही वे अपने सीने पर आतंकियों की गोली खा लें, वे है तो बाबर और औरंगजेब की औलाद ही। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है, तो पाकिस्तान और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाना ही पड़ेगा। हिंदू राष्ट्र की नींव में सद्भाव का नहीं, नफरत का सीमेंट ही लगता है। वे इसी सीमेंट को लगाएंगे, फिर चाहे सच्चाई कुछ भी हो। मोदी के खून में व्यापार है, वे इस युद्ध को भी व्यापार में बदलकर ही दम लेंगे। उन्हें तब तक युद्ध का यह व्यापार भाएगा, जब तक जनता इसकी ग्राहक बनकर खड़ी है।
इस टिप्पणी को लिखते-लिखते यह खबर आई है कि मोदी सरकार ने प्रतिष्ठित वेब पोर्टल को “ब्लॉक” कर दिया है और इसके लिए सार्वजनिक रूप से कोई उचित कारण भी नहीं बताए हैं। अब यह साफ हो जाना चाहिए कि इस युद्ध का उपयोग घरेलू मीडिया और लोकतंत्र को भी कुचलने के लिए किया जा रहा है और सरकार के आलोचकों को या शांति की बात कहने वाले विवेकशील लोगों पर देशद्रोह का ठप्पा लगाने का काम बड़ी तेजी से किया जाएगा।
- दाता युद्ध दे, युद्ध दे, युद्ध दे तू! : राजेंद्र शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)
अब और कुछ हो या नहीं हो, कम से कम गोदी मीडिया को गोदी मीडिया बुलाना तो बंद हो ही जाना चाहिए। टेलीविजन वाले गोदी मीडिया को गोदी मीडिया बुलाना तो एकदम ही बंद हो जाना चाहिए। क्या आपको दिखाई नहीं दे रहा है कि बेचारे कब से गोदी से उतरे हुए हैं? और नहीं तो कम से कम बारह-तेरह दिन, बल्कि उससे भी ज्यादा हो गए हैं।
पहलगाम के आतंकवादी हमले के बाद जोश में जो गोदी से नीचे कूद पड़े थे, तो उसके बाद से तो बेचारे बराबर गोदी से दूर ही बने हुए हैं। और सिर्फ गोदी से दूर ही नहीं बने हुए हैं, वहीं से कूद-कूद कर युद्ध की डिमांड भी कर रहे हैं। कोई कश्मीर में पहाड़ों जंगलों में कूद रहा है, तो कोई रेगिस्तानी मैदानों में। और कोई समुद्र में ही कूद-कूद कर नौसेना के प्रहार की अटकलें लगा रहा है।
कूद-कूदकर और युद्ध मांग-मांग कर थक रहे हैं। पर हार नहीं रहे हैं, बल्कि छोटे-छोटे ब्रेक के बाद, और भी जोश से उछल-कूद कर रहे हैं। जुबान से दुश्मन पर गोले बरसा रहे हैं। जल, थल, वायु, सब से धावे करा रहे हैं। और तो और सिंधु जल प्रहार भी। बस इंतजार कराए जाने पर शिकायत नहीं कर रहे हैं। गोदी से उतर गए तो क्या हुआ, वे इतना तो समझते ही हैं कि इंतजार ही सही, अगर मोदी जी करा रहे हैं तो, कुछ सोचकर ही इंतजार करा रहे होंगे।
फिर भी युद्ध तो चाहिए ही चाहिए। गोदी मीडिया को भी और भगवा जोशीलों को भी। युद्ध से क्या होगा, क्या नहीं होगा, इससे मतलब नहीं है। युद्ध में क्या होगा, इससे भी कोई मतलब नहीं है। युद्ध में कौन मरेगा, युद्ध में किस पर मार पड़ेगी, युद्ध में किस का नुकसान होगा, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं है। पहले जब-जब युद्ध हुआ था, तब-तब क्या हुआ था, इससे उनका कुछ लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस युद्ध चाहिए।
और जब तक बाहर वालों के खिलाफ युद्ध शुरू नहीं होता है, तब तक टाइम पास के लिए वो घर के अंदर दुश्मन खोज कर, उनसे दो-दो हाथ कर लेंगे। जैसे कश्मीरी छात्र। जैसे कश्मीरी फेरीवाले। जैसे मुसलमान दुकानदार। जैसे अंदर खोजे गए दुश्मनों के खिलाफ युद्ध करने से रोकने-टोकने वाले। जैसे शहीद नौसैनिक नरवाल की विधवा, हिमांशी या आतंकवादी हमले में अपना पिता खोने वाली आरती मेनन, या आतंकियों के हाथों शहीद हुए किसी और का परिवार। बस एक फर्क है। अंदर खोजे गए दुश्मनों से लडऩे से रोकने-टोकने वाले अभी तक सिर्फ गरियाए जा रहे हैं और वह भी सोशल मीडिया पर। लाठी-डंडे अब भी बाकायदा अंदरूनी दुश्मनों के लिए ही सुरक्षित हैं।
और कश्मीर के कश्मीरी। उनके लिए तो स्पेशल ट्रीटमेंट सुरक्षित है यानी वह ट्रीटमेंट जो बाकी देश में भी कहीं नहीं है। मसलन, योगी जी और उनका अनुकरण करने वाले भगवाई सीएम अब तक, जिस पर शक हो, उसके घर पर बुलडोजर चलवाने तक ही पहुंचे हैं। पर कश्मीर में, आतंकवादी होने के शक में बंदों के घर बम से उड़ाए जा रहे हैं। युद्ध की टेक्नीक। मणिपुर के सीएम से बम मारने की कला शाह जी ने सीख ली लगती है। अब कश्मीरियों के घर बम लगाकर ढहाए जा रहे हैं। जो सैकड़ों कश्मीरी पकड़े जा रहे हैं, उसका तो खैर कहना ही क्या!
हम, हमारा देश, हमारी सरकार, हमारे शासक, सब के सब बहुलतावादी हैं। सो वक्त कटी के लिए जो अंदरूनी युद्ध हो रहा है, वह भी एक वचन में नहीं, बहुवचन में है। एक ही युद्ध में कई-कई युद्ध हैं। मसलन जो जयश्रीराम वाली भीड़ों के डंडे खा रहे हैं या जिनके दिल-दिमाग सनातनी वीरों की जुबान के चाबुकों से लहूलुहान किए जा रहे हैं, दुश्मन उनके सिवा और भी निकल आए हैं। सही पकड़े, यूट्यूब पर मोदी जी के मन की बात को छोड़कर, अपने मन की बात सुनाने वाले! तभी तो 4 पीएम नाम का तो चैनल ही बंद करा दिया गया। और गायिका नेहा सिंह राठौर से लेकर व्यंग्यकार डा. मेडुसा तक पर एफआईआर हो गयीं। इस तरह मुनादी कर दी गयी, जो कोई मोदी जी, शाह जी, डोभाल जी आदि-आदि से सवाल पूछता पाया जाएगा, सीधा जेल जाएगा। ऐसी कितनी एफआईआर हुई हैं, जाहिर है कि इसका सरकार के पास कोई डेटा नहीं है।
खैर! मोदी जी भी युद्ध की मांग करने वालों को निराश बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। सीमा पर न सही, सीमा के आस-पास सही, हमले पर हमले जारी रखे हुए हैं। आखिर, आतंकवादियों के हमले को भले नहीं रोक पाए हों, पर इसका एलान करने में मोदी जी ने कोई कोताही नहीं की कि आतंकवादियों को मिट्टी में मिला देंगे! बिहार की धरती से मोदी जी ने अंगरेजी में आतंकवादियों पर चेतावनी प्रहार किया! गोदी से नीचे उतरे हुए गोदी मीडिया को इसमें आतंकवादियों को उनकी ही भाषा में दिया गया जवाब भी दिखाई दे गया। लोग टेढ़े-मेढ़े सवाल पूछने लगे कि क्या आतंकवादी, किसी अंगरेजी बोलने वाले मुल्क से आए थे? सारे आतंकवादियों का संबंध आखिर में इंग्लैंड-अमेरिका से ही क्यों जुड़ जाता है? रही बात अंगरेजी की चेतावनी की तो, मोदी जी की अंगरेजी अमेरिका वालों ने कितनी समझी, यह तो पता नहीं, पर जो उनका रिएक्शन आया, वह मोदी जी की अंगरेजी न समझ पाने जैसा था। कहते हैं कि भारत भी ठीक है, पाकिस्तान भी ठीक है, बस झगड़ा ज्यादा न बढ़ाएं।
बिहार की धरती से चेतावनी देने के बाद, मोदी जी ने पाकिस्तान के पानी पर हमला कर दिया। कारोबार पर हमला। आवाजाही पर हमला। दूतावास के कर्मचारियों की कुल संख्या पर हमला। और भारत में आए हुए पाकिस्तानी नागरिकों पर रातों-रात वापस धकेले जाने का हमला। वैध दस्तावेजों से, वैध तरीके से, सीमा के उस पार से इस पार आए लोगों पर हमला। कम से कम दुनिया को लगना तो चाहिए कि इस इलाके में युद्ध चल रहा है। एक युद्ध का सवाल है बाबा! जो दे, जैसे दे, उसका भला।
- भागवत-मोदी मिलन : विष्णु नागर (कवि और स्वतंत्र पत्रकार )
देश का दुर्भाग्य कि जनता अब मुझ पर भी छोटी-मोटी जिम्मेदारी डालने लगी है। देश ने कहा कि गुरु, यह तो बताओ कि सेना प्रमुखों की बैठक के बाद प्रधानमंत्री से मिलने सर संघचालक मोहन भागवत प्रधानमंत्री निवास गए थे, तो उन दोनों में क्या बात हुई? अखबारों से तो कुछ पता नहीं चलता! जब देश की जनता ने इस छोटे से लेखक-पत्रकार पर यह महती जिम्मेदारी डाल दी, तो मोदी जी की तरह मैं भी उससे पीछे नहीं हट सकता था।
तो मैंने अपने विश्वस्त सूत्रों से पता करने की कोशिश की।उसमें से एक विश्वस्त सूत्र ने पहले तो कहा कि देखिए जनाब, पिछले ग्यारह साल में राजनीति इतनी अधिक बदल चुकी है कि फोन पर कुछ बताना खतरे से खाली नहीं है। आप भी फंसोगे और मैं भी और आपसे पहले मैं फंसूंगा, इसलिए कहीं मिलने का कार्यक्रम बनाओ। मुझे लंच या डिनर करवाओ। गर्मी का मौसम है तो कुछ बीयर- शीयर पिलवाओ। हमने कहा क्या यार, तुम अब सौदेबाजी करने लगे हो! देश की जनता ने मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है और तुम इसे मेरा व्यक्तिगत मामला समझ रहे हो! कभी देशहित में भी सोच लिया करो।
तो खैर, हम मिले। उन्होंने ही मुझे बीयर पिलाई और यह भी बताया कि जिस मोदी-भागवत वार्ता का इतना शोर था, दरअसल उसमें हुआ क्या!
उसके अनुसार, भागवत जी वहां गणवेश में पहुंचे थे। संघ के पुराने स्वयंसेवक से मिलना था, तो संघ की पुरानी ड्रेस में ही पहुंचे थे। पैंट की जगह खाकी निक्कर में थे।मोदी जी तो बार-बार ड्रेस बदलने के उस्तादों के उस्ताद हैं, तो वह भी एकदम नई, मगर ठीक उसी ड्रेस में थे। भागवत जी यह देखकर खुश हुए। दोनों मुस्कुराए। मोदी जी ने भागवत जी की जोरदार झप्पी ली। इतनी ज़ोरदार कि भागवत जी गिरते-गिरते बचे। भागवत जी को इससे गुस्सा आ गया। उन्होंने मोदी जी को आदेश दिया कि संघ प्रमुख के नाते मुझसे क्षमा मांगो।
मोदी जी को माफी मांगने की आदत है नहीं, तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। इतना ही कहा कि आइए, पहली बैठिए तो। वह भागवत जी का हाथ पकड़कर बैठाने लगे। संघ प्रमुख ने फिर कहा — आप नहीं मांगोगे क्षमा, तो मैं जाता हूं। मोदी जी ने कहा — जैसी आपकी इच्छा पर, आपके लिए मैंने खाने- पीने का लंबा-चौड़ा इंतज़ाम करवाया है। उसका ‘सदुपयोग’ करके फिर आराम से जाइए। इतना बढ़िया माल आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह मोदी की गारंटी है।
भागवत जी को व्यंजनों का देखकर मोह हो आया, फिर यह भी लगा कि यूं ही एकदम से चला जाऊंगा, तो बाहर तरह-तरह की अफवाहें उड़ेंगीं। उड़ेंगी नहीं, बल्कि यहां से उड़वाई जाएंगी। भलाई इसी में है कि गुस्सा थूककर व्यंजनों का आनंद लिया जाए, मगर ऐसा भी न लगे कि खाने-पीने के लिए रुके हैं, तो भागवत जी ने कहा — देश की सुरक्षा खतरे में है।
मोदी जी ने कहा — पहले कुछ लीजिए तो। बताइए क्या- क्या आपकी प्लेट में रखूं? आप तो जानते हैं, दिल्ली की मिठाइयां बहुत मशहूर हैं। देखिए गरमागरम केसर जलेबी है, रसमलाई है, रबड़ी फालूदा है, चमचम है, मिष्टी दोई है, राजभोग है, काजू कतली है, रसमलाई है, यहां कि बढ़िया बालूशाही है और कोई मिठाई आपको पसंद हो तो वह भी फ़ौरन हाजिर कर दी जाएगी। आप तो बस उसका नाम लीजिए। और हां नमकीन की भी बहुत-सी वेरायटीज हैं। गुजरात से खास मंगवाई हैं। बताइए कि आप क्या-क्या लेंगे?
भागवत जी ने कहा कि अधिक तो मैं नहीं ले पाऊंगा, सबका बस एक-एक पीस ही दे दो। एक प्लेट में न आए तो दो में दे दो, तीन में दे दो पर एक- एक पीस ही देना, अधिक नहीं। हां, आप चाहो तो जलेबी ज्यादा दे देना।उसे अधिक खाने से इनकार नहीं कर पाऊंगा।
तो मोदी जी ने स्वयं चुन-चुनकर एक-एक पीस उन्हें दिये, जलेबियां चार दीं। केसर जलेबी से भागवत जी ने अपना अखिल भारतीय खाद्य कार्यक्रम शुरू किया। खाते-खाते वह इतने मस्त हो गए कि भूल ही गए कि वह यहां क्यों आए हैं? अचानक याद आया तो बालूशाही का एक पीस मुंह में लेते- लेते भागवत जी ने कहा- भाजपा अध्यक्ष का मामला आप टालते जा रहे हो! यह ठीक नहीं है।
आप जूस कौन-सा पसंद करेंगे? बर्फ के साथ लेंगे या विदाउट बर्फ? और हां, आइसक्रीम लेंगे या कुल्फी? कुल्फी शायद आप ज्यादा पसंद करें।
मैं अध्यक्ष पद की बात कर रहा हूं।
पहले कुछ ठीक से खाइए-पीजिए तो!अभी तो आपने कुछ लिया ही नहीं।
लिया, एक-एक पीस लिया, आप ही ने तो दिया।
अभी आपके लिए और माल भी आ रहा है।
नहीं-नहीं, अब और नहीं। मेरा पेट फूट जाएगा।मुझे यहां से जिंदा भी जाना है।
इस पर दोनों खूब हंसे।
मेरे प्रधानमंत्री बनने के बाद आप पहली बार यहां आए हैं, यह मेरा अहोभाग्य है। आपको यहां से ऐसे ही नहीं जाने दूंगा। खाना तो सब पड़ेगा। मेरे विनम्र आग्रह को आप टाल नहीं सकते।
तो मोदी जी आग्रह करते रहे, भागवत जी आग्रह का सम्मान करते रहे। जब मोदी जी खिला-खिला कर संतुष्ट हो गए और भागवत जी खा-खाकर थक गए, तो मोदी जी ने भागवत जी से कहा कि इधर पास के रूम में आप आराम कर लीजिए, तब तक मैं एक-दो बैठकें और निबटाकर आता हूं। फिर आराम से बातें करेंगे।
गर्मी की दोपहर। मोदी जी की खिलाओ पालिटिक्स ने उन्हें ऐसा चित कर दिया कि न चाहते हुए भी उन्हें लेटना पड़ गया और नींद भी आ गई। एक घंटे बाद वह जागे, तो मोदी जी, उनके सामने हाजिर हुए। हाथ जोड़कर पूछा कि विश्राम तो आपने ठीक से किया न! किसी तरह की बाधा तो नहीं आई? तकलीफ़ तो नहीं हुई कोई? चाय तो आप पिएंगे ही?
भागवत जी ने सोचा इसी बहाने चलो, कुछ बात हो जाएगी। भागवत जी ने हामी भर दी। मोदी जी ने सेवक को बुलाया और कहा कि साहब के लिए इनकी मर्जी की बढ़िया-सी चाय लाओ। और जब ये साहब जहां जाने को कहें, वहां पूरे सुरक्षा इंतजाम के साथ सम्मान से छोड़ देना।
और भागवत जी यह मुलाकात बहुत अच्छी रही, बहुत ही सुखद रही। बहुत सार्थक बातचीत हुई। मनमुटाव दूर हुआ। हिन्दू एकता ही, देश की एकता है, आपका यह सुझाव बहुमूल्य है। आपने यहां आने का इतना कष्ट किया। अपने विचारों से मुझे इतना लाभान्वित किया, इसके लिए आपका शत-शत आभार। आगे भी इसी तरह हम दोनों के बीच संवाद का सिलसिला चलता रहना चाहिए। अगर कोई भूल-चूक हुई हो, तकलीफ़ हुई हो, तो हृदय से क्षमा मांगता हूं। बहुत- बहुत आभार आपका।
और भागवत जी कुछ कहें, इससे पहले मोदी जी ने नमस्कार किया और चल दिए।
भागवत जी अवाक। व्यंजनों के स्वाद का सुखद स्मरण करते हुए दुखी भागवत जी झंडेवालान पहुंच गए।