लोकतंत्र में जरुरी है कि आप अपना वोट देने से पहले यह जान कि जिसे हम वोट दे रहें हैं उसका समाज में क्या योगदान है । पिछले 5 सालों में वह जनता के बीच कितना सक्रिय रहा । अगर आप इन बातों को सही मानते तो ही आगे पढ़ें ।

विनाशकाले विपरीत बुद्धि अगर इस कहावत को सही तरह से समझना ही तो आप कोटद्वार जा कर समझ सकते हैं। पिछले 4 चुनावों में दस साल भाजपा और दस साल कांग्रेस ने यहाँ राज किया मगर आज की तारीख में वह सभी विधायक कांग्रेस में जा चुके हैं । राजनीति की प्रयोगशाला में भाजपा किस तरह के कोटद्वार के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करती है यह आप वहाँ जाकर देख भी सकते हैं। पिछली बार लोकतंत्र का मखौल उड़ा कर कांग्रेस से भाजपा में आये हरक सिंह रावत को कोटद्वार के भाजपाईयों पर किस तरह थोपा गया और किस तरह उन्होंने अपने कन्धों में बैठा कर उन्हें घुमना पड़ा, आज तक याद है। अब कार्यकर्ताओं के सामने वही स्थिति दुबारा खड़ी हो चुकी है ।

पार्टी द्वारा यमकेश्वर की विधायिका ऋतु खंडूड़ी को यहाँ लाकर जले पर नमक डालने का काम कर दिया। वैसे वह इच्छुक तो डोईवाला जैसी किसी मैदानी सीट से थीं, मगर वहां के संगठित कार्यकर्ताओं ने एक स्वर में किसी बाहरी व्यक्ति को टिकट देने पर प्रचंड विरोध की चेतावनी के चलते पार्टी प्रमुखों ने हाथ खड़े कर दिए, मजबूरन उन्हें कोटद्वार का रुख करना पड़ा। सनद रहे कि जिनके नाम के दम पर यह राजनीतिक रोटियां सेक रहीं हैं उनके पिता पूर्व सीएम भुवनचंद्र खंडूड़ी खुद वर्ष 2012 में इस सीट से चुनाव हार चुके हैं। उन्हें कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी ने 4623 मतों से हराया था। 2002 में भी विधायक रह चुके सुरेंद्र नेगी के 10 सालों के कार्यकाल में सिवाय अस्पताल के नाम पर एक भवन निर्माण के अलावा कुछ हुआ होता जो बताते, वह भी आज तक रेफ़र सेंटर से आगे कुछ खास नहीं बढ़ पाया । बाकी 2007 में भाजपा से जीत कर पहुंचे शैलेंदर रावत अब यमकेश्वर से कांग्रेस प्रत्याशी हैं ।

अब कोई इन पार्टी प्रमुखों से पूछे कि ऋतु पिछले 5 साल यमकेश्वर की विधायिका रहीं तो उनकी कोई उपलब्धि बता दें, तो मामला शून्य बटे सन्नाटा ही निकलेगा। पिछले चुनाव में मोदी लहर में सवार हो कर यमकेश्वर पहुंची ऋतु खण्डूरी ने अगर वहाँ की जनता के लिए कुछ किया होता तो वह उन्हें सर आँखों पर बैठाते। लेकिन पार्टी को पता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती, सो इस बार उन्होंने पिछली बार कोटद्वार में अपनाये गये फार्मूले को दुहराते हुए वहां की पुरानी कांग्रेसी नेता रेनू बिष्ट को पार्टी में शामिल कर वहां के कार्यकर्ताओं की छाती पर बैठा दिया कि चलो थोड़े उनके (कांग्रेसी) थोड़े अपने (भाजपाई) मिलकर किसी तरह गाड़ी खींच लेंगें। लेकिन वहां की प्रबुद्ध जनता इनके खेल को समझ चुकी है और वहां यूकेडी के प्रत्याशी शांति प्रसाद भट्ट के साथ लामबंद होने लगी है ।

अब कोटद्वार की जनता के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि वह पिछले 5 साल सत्ता की मलाई चाट रहे पीआरओ व 1994 के ऐतिहासिक उत्तराखंड आंदोलन के चंदाचोर की बात पर विश्वास करें या विगत कई वर्षों से उनके सुख दुःख में साथ रहने वाले धीरेन्द्र चौहान का साथ दें । साथ में सवाल यह भी है कि जिन्हें 5 साल पहले चुना था वह आज कहाँ हैं ? क्यों पार्टी ऐसे चेहरे को सामने ला रही है जिसके कर्मों से चलते यमकेश्वर सीट पर पार्टी को पूर्व कांगेसी (रेनू बिष्ट ) को ला कर टिकट देना पड़ा।

नतीजन 31 वर्षों से संघ के प्रचारक रहे महवीर प्रसाद कुकरेती को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा कमोवेश आज यही स्थिति कोटद्वार में भी आ खडी हुई अब देखना रोचक रहेगा वहां की प्रबुद्ध जनता राष्ट्रिय दलों के मोहपाश से बाहर निकल कर इतिहास रचेगी है या फिर अगले 5 साल इनकी जी-हजुरी में कटेंगे ।