आज अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है , जिसे मई दिवस के नाम से भी जाना जाता है, आज ही के दिन 1886  में अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने पूंजीवादी शोषण के खिलाफ और काम के घंटे निर्धारित किये जाने, यूनियन बनाने के अधिकार समेत तमाम मजदूर अधिकारों के लिए ऐतिहासिक हड़ताल की थी ! इस हड़ताल पर बर्बर दमन ढाया गया ! कई दिनों तक चले संघर्ष में कई मजदूर हताहत हुए और 8 मजदूर नेताओं को तो एक साल बाद नवम्बर 1887 में फांसी पर चढ़ा दिया गया ! 8 घंटे का कार्यदिवस जो पूरी दुनिया मे लागू हुआ उस अधिकार के लिए मजदूरों की कुर्बानियों के इतिहास का प्रतीक दिन है मई दिवस !
भारत में भी मजदूर अधिकारों के संघर्षों की लंबी परम्परा है, 8 घंटे काम की मांग को लेकर पहली हड़ताल मार्च 1862 में हावड़ा रेलवे स्टेशन के मजदूरों द्वारा की गई, इसमें 1200 रेलवे कामगार शामिल हुए, उसके बाद निरन्तर कपड़ा मिलों, जूट मिलों समेत तमाम कारखानों में मजदूर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे और हड़ताल को संघर्ष के सब से प्रभावी हथियार के तौर पर उपयोग में लाते रहे !

1908 में देश के मजदूरों ने पहली राजनीतिक हड़ताल की ! लोकमान्य तिलक को जून 1908 में अंग्रेजों ने राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया, इस गिरफ्तारी के खिलाफ हजारों मजदूर सड़कों पर उतर आए ! जुलाई के महीने में जब मुकदमें की कार्यवाही शुरू हुई तो मजदूरों का संघर्ष और तेज  हो गया ! रूस के क्रांतिकारी नेता कामरेड लेनिन ने इस हड़ताल का स्वागत किया और कहा कि तिलक की गिरफ्तारी के खिलाफ उभरा मजदूरों का यह संघर्ष और उससे पैदा हुए वर्ग चेतना अंग्रेजी साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर देगी !
1917 में अहमदाबाद टेक्सटाइल मिल के मजदूर अपनी पगार बढ़ाने और आगामी मई दिवस मनाने के लिए पहली बार इकट्ठे हुए थे ! इस तरह 1 मई 1918 को भारत के मजदूरों ने मई दिवस मनाने की परम्परा शुरू की ! आधुनिक अर्थों में पहले ट्रेड यूनियन की शुरुवात मद्रास में बी.पी.वाडिया ने मद्रास लेबर यूनियन 1918 में बना कर की ! वाडिया एनीबेसेंट के होम रूल आन्दोलन से जुड़े राजनीतिक नेता थे जिन्होंने बकिंघम-कर्नाटिक मिल के यूरोपी मालिकों के अत्याचारों के खिलाफ और मजदूरों की आर्थिक दशाओं के सुधार के लिए यह यूनियन बनाई थी ! यूनियन को राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन से जोड़ते हुए वाडिया ने कहा था – “बिना जनता के, सही मायनों में कोई जनतंत्र मुमकिन नहीं है ! जरूरी है कि मजदूर आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन के अभिन्न अंग के रूप में देखा जाये ̕̕̕̕ ! “यूनियन के नेतृत्व में हुई हड़ताल और मालिकों की जबाबी तालाबंदी पर मद्रास हाई कोर्ट ने यूनियन को व्यापारिक हितों के साथ गद्दारी के लिए बनाया गया गैर कानूनी संगठन बताया था ! (यह पैराग्राफ दो साल पहले लिखी कॉमरेड रामजी राय की पोस्ट से उद्धरित) !
भारत में 8 घंटे के कार्यदिवस और अन्य कई मजदूर हितकारी कानूनों के लिए डॉ. बी.आर.अम्बेडकर को भी याद किया जाना चाहिए वाइसराय की एग्जीक्यूटिव के लेबर मेंबर की हैसियत से वे मजदूर अधिकारों के कई प्रस्ताव लाये ! मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा- “हड़ताल, स्वतंत्रता के अधिकार का दूसरा नाम है ” !
मई दिवस और मजदूरों की कुर्बानियों के इतिहास के बीच यह भी गौरतलब है कि लड़ कर हासिल तमाम मजदूर अधिकारों का आज छीनने का दौर चल रहा है !

8 घण्टे काम का अधिकार हो या यूनियन बनाने का अधिकार, सब धीरे-धीरे खत्म किये जा रहे हैं ! जहां मजदूर इन अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, वहां उन पर बर्बर दमन ढाया जा रहा है ! बीते सालों में कोयम्बटूर की प्रिकॉल फैक्ट्री और मानेसर में मारुति के मजदूरों पर हुए दमन इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं ! वाइट कॉलर नौकरीपेशा लोगों की एक बड़ी जमात है, जो स्वयं को मजदूर कहलाना पसंद नही करती ,लेकिन पूंजी के शोषण की भरपूर मार झेलती है. मजदूर अधिकारों और श्रम कानूनों पर हमले के इस दौर में अथाह कुर्बानियों से हासिल इन अधिकारों को बचाने के लिए मजदूरों के एकताबद्ध संघर्ष ही एकमात्र रास्ता हैं !
दुनिया में मजदूर अधिकारों का संघर्ष और भारत मे मजदूर अधिकारों के संघर्ष का इतिहास बताता है कि, दुनिया भर में मजदूरों ने एक ही तरह से लड़ कर अपने अधिकार हासिल किए हैं, इसलिये आज जो मई दिवस को बाहरी बता रहे हैं , वे मजदूरों की कुर्बानियों के समूचे इतिहास को ही मिटा देना चाहते हैं ! वे मजदूरो के पक्षधर लोग नही हैं वे मजदूरों के जायज हकों पर डाका डालने वाले, सत्ता में बैठे बाउंसर हैं ! श्रम की लूट करने वाली बाहरी या भीतरी नही होता, वह सिर्फ लुटेरा होत है, उसी तरह मजदूर भी बाहरी या भीतरी नही होता,वह सिर्फ मजदूर होता है, इसलिए मजदूरों के कुर्बानियों के इतिहास में दरार पैदा करने की कोशिशों के खिलाफ मजदूरों की एकता के जरिये मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए ! दुनियाभर के मेहनतकशों की एकजुटता का आह्वान करने वाले कार्ल मार्क्स के  नारे को बुलन्द करें – दुनिया के मजदूरो एक हो !!!
                                                                                                                                                                  -इन्द्रेश मैखुरी