इस बार 21-22 वर्ष की दिशा रवि को बिना किसी तरीके की सुनवाई के सीधे 5 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। दिशा पर देशद्रोह, राष्ट्र के खिलाफ बगावत और न जाने कैसे-कैसे संगीन आरोप मढ़े गए हैं, अभी और कुछ आरोप गढ़े जाएंगे। कारपोरेट नियंत्रित मोदी मीडिया उन्हें और भी नमक-मिर्च लगाकर दोहरायेगा और पेड़,पौधे, नदी, पहाड़, धरती और प्रकृति के भविष्य की फिक्र को देश और दुनिया की चिंता में लाने वाली पर्यावरण एक्टिविस्ट को “राष्ट्र के लिए खतरनाक” करार देकर भीमा कोरेगांव के अभियुक्तों की तरह अनिश्चितकाल के लिए जेल में डाल दिया जायेगा।

दिशा पर टूलकिट साझी करके राष्ट्रद्रोह की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। इस आरोप की हास्यास्पदता को समझने के लिए यह समझना जरूरी है कि आखिर ये टूल किट है क्या बला, जिसकी वजह से पर्यावरण के सवाल पर दुनिया भर के साम्राज्यवादी देशों के सत्ताप्रमुखों को कठघरे में खड़ा करने वाली 19-20 वर्ष की ग्रेटा थनबर्ग की एक ट्वीट से थरथराई हुई है खुद को ब्रह्मा मानने वाले नरेन्द्र मोदी की सरकार और जिसके कथित इस्तेमाल के चलते 21-22 साल की दिशा रवि पहुंचा दी गई है दिल्ली के कारागार?

यह टांकी, हथौड़े, छैनी, पाना, आरी, रंदे और पेचकश वाले औजारों – टूल्स – की किट तो पक्के से नहीं है । छुरी, तलवार, तोप-तमंचे, बम-बन्दूक की किट भी नहीं है। सरल भाषा मे कहें, तो यह गूगल डॉक में जाकर बनाया जाने वाला वर्ड का एक ऐसा डॉक्यूमेंट – सीक्रेट नहीं, एक सार्वजनिक दस्तावेज या पर्चा – है, जिसमे किसी अभियान या आंदोलन का कार्यक्रम लिखा और साझा किया जाता है और उसमें मुख्य विषय पर हैशटैग लगाकर उस हैशटैग के जरिये उस विषय या अभियान से जुड़े लोगों, कार्यक्रमों की खोज को आसान किया जाता है।

हैशटैग # यह निशान होता है। इंटरनेट पर इसे मुद्दे विशेष को अलग से दिखाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। उदाहरण के लिए : जब हैशटैग लगाकर #किसानआंदोलन लिखा जाता है, तो जैसे ही कोई भी इंटरनेट पर किसान आन्दोलन पर जानकारी की तलाश करेगा, वैसे ही यह हैशटैग लगा लिखा भी उसकी नजर में आ जायेगा/आ सकता है। जब संयुक्त किसान मोर्चा या अखिल भारतीय किसान सभा अपने कार्यक्रम की घोषणा कर उसमे हैशटैग लगाते हुए बाकी नेटीजनों से कहती है कि वे इसे साझा करते और किसानआंदोलन लिखते समय हैशटैग यानि # लगायें, तीन कृषि कानून वापस लो – लिखते में हैशटैग लगाये वैसे ही यह संदेश टूलकिट की परिभाषा में आ जाता है।

इस ओपन वर्ड डॉक्यूमेंट को साझा करते समय कोई भी इसमें अपनी राय या सुझाव जोड़ सकता है। विकिपीडिया की तरह इसे भी एडिट किया जा सकता है। जैसा ग्रेटा थनबर्ग या दिशा रवि ने किसान आंदोलन के डॉक्यूमेंट पर यह लिखकर किया कि “हम किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं।”

क्या यह सरकार के डर और घबराहट का उदाहरण है? नहीं, जनता के जीवन और देश की आर्थिक प्रगति के हर पैमाने में आयी चौतरफा गिरावटों के बावजूद मोदी सरकार बिलकुल भी नहीं घबराई है। वह पूरी निर्लज्ज तल्लीनता के साथ देश की हर प्रकार की सार्वजनिक सम्पदा की सर्वग्रासी कारपोरेट लूट को अंजाम देने में लगी हुयी है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ भारत के किसानों के जबरदस्त उभार और आंधी की रफ़्तार से इसके पूरे देश में हो रहे विस्तार से भी वह बिल्कुल नही चेती है। चार लेबर कोड के खिलाफ मजदूरों के बीच व्याप्त असंतोष की भी उसे परवाह नहीं है।

इस तरह की जा रही बेहूदा गिरफ्तारियां लोकतंत्र, संविधान को निशाना बनाकर शुरू किये गए युद्ध का उसका अगला मोर्चा है। यह ऐसा युद्ध है, जिसका लक्ष्य मुट्ठी भर लोगों का समाज की समस्त आर्थिक सम्पदा पर पूर्ण वर्चस्व और अँगुलियों पर गिने जा सकने वाले चंद अभिजात्यों का सामाजिक व्यवस्था पर सम्पूर्ण प्रभुत्व है।

सूचना और संचार के बाकी सारे माध्यमों पर तकरीबन पूरी तरह कब्जा करने के बाद अब आरएसएस और भाजपा की मंशा यह है कि सोशल मीडिया के बचे-खुचे साधनों पर भी किसी भी तरह की असहमति नहीं दिखनी चाहिए। इसके लिए दुनिया में सबसे ज्यादा फर्जी और झूठी खबरें फैलाने वाली संघी आईटी सैल की दम पर हिंसा और अफवाहें फैलाने वाली जमात की सरकार एक तरफ सोशल मीडिया कंपनियों को उनके धंधे की धमकी देकर साध रही है, तो दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स को झूठे मुकदमे ठोक कर भयभीत करने की कोशिश कर रही है।

सफूरा जरगर या नताशा नरवाल की कुछ महीनों पुरानी बात पिछले महीने और आगे बढ़ी है। सिंघु बॉर्डर पर किसानों पर संघी हमले में पुलिस की मिलीभगत को अपने कैमरे में कैद करने वाले युवा पत्रकार मनदीप के समय ही पकड़ी गयी नौदीप कौर अभी जेल में ही हैं। दिशा के साथ अब उनकी युवा वकील निकिता भी लपेटे में ली गयी हैं। इस बार तो मृणाल पाण्डे, राजदीप सरदेसाई, जफ़र आगा और विनोद के जोसे जैसे नामी पत्रकारों तक को नहीं बख्शा गया। न्यूज़क्लिक पर ईडी का धावा और इसके एक्टिविस्ट निदेशक प्रबीर पुरकायस्थ तथा सम्पादक प्रांजल को टारगेट में लेना इसका सबसे ताजा उदाहरण है। अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना की सारी रोशनी गुल करने के बाद अब तानाशाह निज़ाम जुगुनुओं को कैद करता चाहता है।

यही है, जिसे कारपोरेटी-हिन्दुत्व कहा जाता है। छल-कपट-झूठ से लेकर हर दर्जे की साजिश तक इसके पैकेज का हिस्सा है। इसके लिए किसी भी सामान्य से मुद्दे को बहाना बनाया जा सकता है। तिल के सूक्ष्मतम फोटो का भी ताड़ और आभासीय राई का वास्तविक पहाड़ बनाया जा सकता है। दिशा रवि के मामले में यही हुआ।

कारपोरेटी-हिन्दुत्व सत्ता लोगों के तकनीकी अज्ञान या जानकारी के अभाव का फायदा उठाकर उन्हें और ज्यादा मूर्ख बनाने की धूर्तता कर रहा है। अडानी-अम्बानी की कारपोरेट लूट के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन करने की अपील को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा और देशद्रोह बताना चाहती है और इस तरह फर्जी राष्ट्रवाद का कुहासा फैलाकर अपने आकाओं की तिजोरी भरना चाहती है।

यही है संघी-भाजपाई “राष्ट्रवाद” – जो शुरू से ही इतना ही फर्जी है। अब यह सारे मुखौटे उतार कर फाइनली अपने असली घिनौने यथार्थ पर आ गया है, जिसमे राष्ट्र = अडानी, अम्बानी, अमरीकी कार्पोरेट्स बना दिया गया है और देशद्रोह का अर्थ इन दो देसी और बाकी विदेशी लुटेरों के खिलाफ बोलना कर दिया गया है।

तानाशाह अब पूरी निर्लज्जता के साथ पूंजी का चाकर बन लोकतंत्र और संविधान हड़पना चाहता है। मगर तानाशाह का एक सरल समीकरण होता है और वह यह है कि उसकी धूर्तता उसके डर की समानुपाती होती है। मतलब – वह जितना धूर्त होता जाता है, उतना ही डरपोक भी होता जाता है। तानाशाह अंदर-अंदर बहुत डरता है, जनता से तो बहुतई डरता है।

लिहाजा इस सबका सबसे उपयुक्त निदान है, इसे डराया जाय ।  ….. कैसे ? तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आन्दोलन और चार लेबर कोड के खिलाफ मजदूरों की जद्दोजहद को तेज से तेजतर करते हुए, उनकी हिमायत में आवाज उठाते हुए, उनके साथ खड़े होते हुए! संतोष की बात यह है कि इस वक्त पूरा देश लगभग यही काम कर रहा है।

आलेख : बादल सरोज (संयुक्त सचिव)

अखिल भारतीय किसान सभा

 

आख़िर टूलकिट होती क्या है ?

 

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