24 लोगों पर सफल परीक्षण के बाद अब इस टीके को विश्व भर में 30,000 लोगों पर आजमाया जायेगा .
जर्मन कंपनी ‘बायोनटेक’ और अमेरिकी कंसर्न ‘फ़ाइज़र’ ने दो जुलाई को बताया कि उनके साझे प्रयोग में अमेरिका में अब तक जिन सीमित लोगों पर एक टीका आजमाया गया है, उनमें से 24 को टीके के दो-दो इन्जेक्शन दिये गये थे. चार सप्ताह बाद देखा गया कि उनके शरीर में सार्स-कोव-2 से लड़ने वाले एन्टीबॉडी बन गये थे. इस परीक्षण में 18 से 55 वर्ष की आयु के कुल 45 स्वस्थ लोगों को शामिल किया गया था. इनमें से 24 लोगों को टीके के दो इंजेक्शन लगाये गये, 12 को एक और नौ लोगों को एक दिखावटी टीका यानी प्लेसिबो लगाया गया.
जिन 24 लोगों को दो-दो इंजेक्शन दिये गय़े थे, उनमें से कुछ को टीके वाली दवा बाकियों से कुछ अधिक मात्रा में दी गयी थी. और जिन 12 लोगों को टीके का इंजेक्शन एक बार ही लगाया गया उन्हें भी दवा की मात्रा थोड़ी ज्यादा दी गई थी. तुलना के लिए नौ सदस्यों वाले एक दूसरे ग्रुप को असली की जगह केवल दिखावटी दवा वाले दो-दो इंजेक्शन लगाये गये. असली टीके वाले दोनों इन्जेक्शनों के बीच में तीन सप्ताह का अंतर भी रखा गया था.
देखने में आया कि टीके का दूसरा इंजेक्शन देने के सात दिन बाद, दो-दो इन्जेक्शन पाने वाले सभी 24 लोगों में ऐसे एन्टीबॉडी बन गये थे, जो प्रयोगशाला में उनका सामना सार्स-कोव-2 वायरस से करवाने पर उन्हें निष्क्रिय करने में सफल रहे. इन लोगों के रक्त में बने एन्टीबॉडी की मात्रा भी उन लोगों की अपेक्षा अधिक पायी गयी, जो स्वस्थ नहीं थे, बल्कि पहले से ही इस वायरस से संक्रमित थे. जिन लोगों को टीके की कम मात्रा वाला इन्जेक्शन लगा था, उनके रक्त में वायरस को निष्क्रिय कर सकने वाले एन्टीबॉडी का औसत 1.8 गुना अधिक था, और जिन्हें अधिक मात्रा वाला इन्जेक्शन लगा था, उनके रक्त में यह औसत 2.8 गुना अधिक था.
दोनों कंपनियों का कहना है कि टीके के कोई गंभीर उपप्रभाव (साइडइफेक्ट) नहीं देखने में आये. केवल इतना ही देखने में आया कि जिन लोगों को दो-दो बार टीके के इन्जेक्शन लगाये गये, उन्हें सुई चुभाने वाली जगह पर प्रायः हल्का-सा या हल्के से कुछ अधिक दर्द हुआ. इस टीके को फ़िलहाल BNT 162b1 नाम दिया गया है. जर्मन कंपनी ‘बायोनटेक’ के सहसंस्थापक उगुर साहीन ने इन आरंभिक परिणामों को बहुत उत्साहवर्धक बताया है. उन्होंने यह भी कहा है कि वे कुछ दूसरे संभावित टीकों के साथ जर्मनी में भी परीक्षण कर रहे हैं. अमेरिकी कंपनी ‘फ़ाइज़र’ की वरिष्ठ उपाध्यक्ष कैथरीन जान्सन ने इन आरंभिक परिणामों को आशावादी बताया.
जर्मनी में मारबुर्ग विश्वविद्यालय के वायरस विज्ञानी प्रो. स्तेफ़ान बेकर ने इस तथ्य को रखांकित किया कि इस टीके से बने एन्टीबॉडी की सघनता उन लोगों के मामले में मिलने वाली सघनता से कहीं अधिक है, जिनके मामले मे संक्रमण के बाद शरीर स्वयं एन्टीबॉडी बनाता है. तब भी, अब तक के परिणाम यह नहीं दिखाते कि यह संभावित टीका कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा सकता है. इसे जानने के लिए अभी हज़ारों लोगों को यह टीका लगा कर देखना होगा कि रोज़मर्रा वाली परिस्थितियों में भी वह लोगों को बीमार होने से बचा सकता है या नहीं.
‘बायोनटेक’ और ‘फ़ाइज़र’ का अगला क़दम यही होगा. यह जानने के लिए कि टीके वाली दवा की सही मात्रा कितनी होनी चाहिये, व्यापक टीकाकरण से क्या समस्याएं पैदा हो सकती हैं और टीका कितने समय तक प्रभावी सिद्ध होगा, दोनों कंपनियां मिल कर विश्वव्यापी स्तर पर 30,000 लोगों पर परीक्षण करने की योजना बना रही हैं. सरकारी अनुमतियां मिलने पर एक-डेढ़ महीने में यह अभियान शुरू हो सकता है. इस अभियान के बाद टीके को बाज़ार में उतारने की अनुमति के लिए आवेदन करना होगा. दोनों कंपनियों का अनुमान है कि यदि सब कुछ योजनानुसार सुचारु रूप से चला, तो इस वर्ष के अंत तक BNT 162b1 की 10 करोड़ इंजेक्शनों लायक और अगले वर्ष के अंत तक एक अरब 20 करोड़ इंजेक्शनों लायक मात्रा उपलब्ध की जा सकती है.
जर्मनी के ही में ब्राउनश्वाइग के शोधक सार्स-कोव-2 से लड़ने वाले किसी टीके के बदले एक दवा बनाने में लगे हैं. वे ऐसे विशेष एन्टीबॉडी (प्रतिजन) प्रमाणित करने में सफल रहे हैं, जो कोरोना वायरस को हमारी कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोकते हैं. वैज्ञानिक शोध संस्था ‘हेल्महोल्स संस्थान’ के ब्राउनश्वाइग स्थित संक्रमण शोध केंद्र के वायरसविद लूका सिसीन-साइन के अनुसार, शोधकों ने मानवीय एन्टीबॉडी जैसे 6000 हज़ार कृत्रिम रूप से बने एन्टीबॉडी की पहचान की है, जिनमें से क़रीब साढ़े सात सौ ऐसे हैं, जो कोरोना वायरस से चिपक जाते हैं. वायरस की रोकथाम की यही पहली शर्त है. वे इन एन्टीबॉडी की सहायता से एक ऐसी दवा बनाना चाहते हैं, जिस से कोविड-19 के गंभीर रोगियों का इलाज किया जा सके. इस अकर्मक (पैसिव) रोगप्रतिरक्षण (इम्यूनाइज़ेशन) का प्रभाव तुरंत शुरू हो जाता है. इसके एन्टीबॉडी, वायरस को शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने के अक्षम बना देते हैं. इस समय इन एन्टीब़ॉडी की कार्य-कुशलता परखी जा रही है. सर्दियों में इस दवा से पहली बार रोगियों का उपचार किये जाने की योजना है.
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