- जो कौम अपने शहीदों को भूल जाती हैं वो नष्ट हो जाती हैं।
- सरकारी नौकरी पाने वाले आंदोलनकारियों को धिक्कार है।
देहरादून के कचहरी परिसर में कल राज्य निर्माण के लिए आंदोलनरत रहे आंदोलनकारियों ने धिक्कार दिवस मनाया। सरकार को जी भर कोसा। न्याय न मिलने की बात कही। फिर आंदोलन की बात उठी। हुंकार, गर्जना और मुठ्ठियां तनीं। यह सब देख सभा से पांच कदम दूर
शहीदों का एक छोटा सा मंदिर और उसमें शहीदों की फोटो विद्रुप सी हंसी हंस रही थी। शहीदों की ये फोटो कह रही थी कमीनो ! हम मर गये तुम्हारे लिए और तुम मजे लूट रहे हो। ये भी नहीं दिख रहे कि हमारी फोटो तक धुंधली हो गयी हैं। बस एक और दो सितम्बर को फूल चढ़ाने आ जाते हो या फिर दो अक्टूबर या नौ नवम्बर तक सिमट गये हो। बताओ, ये राज्य किसको और किसलिए मिला। हमारी शहादत बेकार चली गई, कमीनो।
शहीद ठीक कह रहे हैं। उनका मंदिर बदहाल है और शहीदों के लेमिनेटिड फोटो बुरी स्थिति में हैं। हद है, क्या राज्य आंदोलनकारी इतने गरीब हैं कि अपने शहीदों की देखभाल के लिए भी सरकार का मुंह ताकें। यदि ऐसा है तो मैं तुम्हें लानत भेज रहा हूं आंदोलनकारियो। खासकर उन्हें जिनका चिन्हीकरण हो चुका है। पेंशन लेते हो तो क्या साल में एक बार 500-500 रुपये भी नहीं दे सकते, शहीदों की देखभाल के लिए। पहले तो शहीदों के परिवारों और गरीब आंदोलनकारियों के परिवारों को भी देखते। और सुनो आंदोलन के बाद सरकारी नौकरी हासिल करने वाले आंदोलनकारियों, तुम पर तो सचमुच का धिक्कार है और तुम्हारा जीवन किसी कीड़े-मकोड़े जैसा हो गया, क्योकि तुम अपनी उस जड़ को भूल गये हो जो तुम्हे अपनी मिट्टी से जोडे़ रखती है। तुम सब भूल चुके हो। यदि हर साल तुमने शहीदो के नाम से अपने वेतन से साल में एक हजार रुपये भी दिये होते तो एक साल में पांच लाख 70 हजार जमा होते और 19 साल में लगभग एक करोड़। यह राशि आंदोलनकारियों के भले के लिए इस्तेमाल होती, और यह राशि शहीदों के मुकदमों को लड़ने के काम आती। छिः छि: कितने स्वार्थी हो गये हो तुम, जिन पर हमें नाज था, और कितनी नीचे गिर गये हैं। हां, चिन्हित आंदोलनकारियो मैं तुम्हें लानत भेज रहा हूं। साथ ही जनता भी। जरा शहीदों को याद तो करो।
हम लड़े हैं इसलिए कि प्यार जग में जी सकें, आदमी का खून कोई आदमी न पी सकें।।
साभार – गुणानंद जखमोला ,वरिष्ठ पत्रकार व् राज्य आन्दोलनकारी
फोटो-राज्य आन्दोलनकारी जयदीप सकलानी