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फ़र्ज़ कीजिये आपकी माँ या पत्नी अथवा घर में किसीने भी खीर बनायी है…इतनी बनायी है कि लंच के समय भरपेट खाने के बाद भी भरपूर मात्रा में शाम के लिए भी बच जायेगी जिसे फ्रिज पर रखा जाएगा।। जब आप लंच करने बैठते हैं तो पेट भर जाने के बाद भी आपकी और इच्छा होती है ठूंस ठूंस कर खाने की। जबकि आपको मालूम है बाद में खीर पच जायेगी और जब दुबा फिर उपलब्ध हो जायेगी। .आपने अक्सर कहते हुए लोगों को सूना होगा कि आज खाना ज्यादा खा लिया यार क्योंकि अच्छा बना था.. क्यों ?? क्या कारण है कि आप अच्छा खाने के लिए असामान्य रूप से भयानक लालची हो जाते हियँ।।यद्यपि आपकी आर्थिक परिस्थिति अभावगस्त नहीं हैं, तथापि आप अच्छे भोजन के लिए भुक्कड़ों की तरह व्यवहार करते हैं क्यों??
अब 30 हज़ार साल पहले के अपने किसी भोजन खोजी पुरखे की परिस्थिति की हैं…..
भोजन खोजते हुए उसे कोई पके हुए मीठे फलों पेड़ दिख गया..हमारा पुरखा झटपट पेड़ पर चढ़ा होगा और इससे पहले कि कोई बंदरों का झुण्ड या अन्य भोजन खोजियों का दल वहाँ पहुँच जाए, अधिक से अधिक जबरदस्त कैलोरी से भरे मीठे फल ठूंसने लगा होगा।उसने अपने पेट की सामर्थ्य से कहीं अधिक फल ठूंस लिए होंगे। कारण ??? ये असुरक्षा कि आगे इतनी पौष्टिकता वाले फल जाने कब उपलब्ध हों। उस काल में मीठा भोजन दुर्लभ होता था। उसका एक ही जरिया था मीठे फल..जो साल के कुछ ही दिनों में और जीवों की उनपर निर्भरता के सापेक्ष अत्यंत कम…और ज्यादातर भोजन अपेक्षाकृत काम स्वादिष्ट उपलब्ध रहता था…अतः तत्कालीन भोजन खोजी मानवों में मीठे के प्रति दीवानगी रहती थी……
वैज्ञानिकों का मानना है कि आज भी अच्छा खाने के प्रति हमारी दीवानगी हमारे पूर्वजों की अभाव से उत्पन्न जीजीविशा के ही अवयव हैं..अच्छे खाने को ठूंस-ठूंस कर खाने की आज भी यह प्रबृत्ति उसी असुरक्षा का प्रतिफल है..कुलमिलाकर यह हमारा आदम गुण है जोकि हमारे जीन में घुस गया…
इस तरह के हमारे कई गुण, सामुदायिक प्रबृत्तियाँ जो हममें और हमारे समाज में आज भी मौजूद हैं, वस्तुतः हमारे और हमारे समाज की आदम बिरासतें हैं….
भूआकृति विज्ञान में एक सूत्र है…present is the key of past…यानी कि आज की प्रबृत्तियों को समझ कर अतीत का आंकलन किया जा सकता है….
आगे हम आज की अपने समाजों की प्रवृत्तियों और उनमें आ रहे बदलावो को समझ कर अतीत की बात करेंगे।
जारी …
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