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मित्रमंडली की दिक्कत यह है कि वे इस श्रृंखला को दार्शनिक दृष्टि से देखने लग जा रहे हैं…इसको सिर्फ तथ्यात्मक रूप में लें।

सन 1958 में यूरोप के एक प्रसिद्द फुटबॉल क्लब खिलाड़ी एक प्लेन क्रैश में मारे गए। इस दुर्घटना से हाहाकार मच गया, परन्तु अगले साल अविश्वश्नीय तरीके से उसी क्लब ने वही टूर्नामेंट जीत लिया जिस टूर्नामेंट को खेल कर जाते हुए खिलाड़ी मारे गए थे।
अब प्रश्न उठता है कि जब क्लब के सभी खिलाड़ी मारे गये थे तो फिर क्लब कहाँ से रहा। जो अगले साल उसी क्लब ने फिर टूर्नामेंट जीत लिया। ये कैसे हुआ कि सब खिलाड़ी मर गए और क्लब ज़िंदा रहा। वो किस कोने में दुबका रहा ? दिखा क्यों नहीं है ? फिर क्लब क्या है ?
चलो एक दूसरे प्रश्न से समझने का प्रयास करते हैं ।
दो देश हैं, भारत और पाकिस्तान जो आपस में एक दूसरे के जानी-दुश्मन हैं। मसलन हम पाकिस्तान को अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं और मारना चाहते हैं। तो हम किसको मारें कि पाकिस्तान मर जाये ।
पाकिस्तान के नक़्शे को ?
भला निर्जीव भूमि के टुकड़े को कैसे मारा जा सकता है ? तो फिर वहाँ के नागरिकों को?
पहली बात इतने सारे नागरिक तो मारना असंभव है और जब हम दोनों देशों के नागरिक कहीं भी मिलते हैं तो एकदम मारने को थोड़ी दौड़ते हैं । मुझे 2016 में दक्षिण अफ्रीका भ्रमण के दौरान एक पाकिस्तानी ड्राइवर मिला ।उसने मेरी बहुत मदद की 2011 में मेलबोर्न ऑस्ट्रेलिया में के पाकिस्तानी मुझे अपने घर ले गया और अपने ख़ास मित्र की तरह मेरी खातिरदारी की। कहने का मतलब है कि हमारे नागरिक भी आपस में एकदम गलाकाट शत्रुता का व्यवहार भी नहीं करते हैं ।
तो फिर वहाँ की सरकार हमारी सबसे बड़ी शत्रु है यानि कि वहाँ के प्रधानमंत्री और मंत्री।परन्तु वो भी हमारे सरकार के नुमाइंदों को कहीं मिलेंगे तो सहजता से मिलते हैं , और कभी मैंगो डिप्लोमेसी तो कभी बिरियानी डिप्लोमेसी के नाम पर मिलते ही तो रहते हैं । चलो माना पूरी सरकार ही हमने मार दी तो क्या फिर पाकिस्तान ख़त्म हो जाएगा ?  यूरोप के क्लब की तरह सभी खिलाड़ी मरने पर भी क्लब तो ज़िंदा रहा।
तो क्या उनके सैनिक और हमारे सैनिक ही आपस में दुश्मन हैं।वे बेचारे तो आपस में एक दुसरे को जानते भी नहीं फिर दुश्मन क्या होंगे। सैनिक ही दुनिया में ऐसे तंत्र के हिस्से हैं जो एक दुसरे को जानते नहीं है फिर भी एक तंत्र से संचालित होकर एक दुसरे को मारते रहते हैं और सैनिकों को मारने से देश का मर जाना हास्यास्पद होगा।
तो फिर ये क्लब अथवा ये देश ये क्या चीज है ,जो दिखता तो नहीं है परन्तु मानवीय तंत्र सभी इस अदृश्य से संचालित होता है ।
असल में मानव सभ्यता के विकास के दौरान घटित संज्ञानात्मक क्रान्ति के ही ये प्रतिफल हैं जो केवल अवधारणाएं हैं, मूर्तरूप में कहीं नहीं हैं परन्तु सम्पूर्ण मानवतंत्र को संचालित कर रहे हैं। क्लब, राष्ट्र , कंपनी, धर्म, सरकार, जैसी अनगिनत तंत्र जो कि मूर्तरूप में कहीं नहीं हैं। .आप उनको स्पर्श नहीं कर सकते हैं परन्तु सम्पूर्ण मानवजगत उन्हीं से संचालित होता है……जारी।

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साभार – डॉ0 एस. पी. सती