डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

जाने माने समाजसेवी एवं पद्मश्री से सम्मानित अवधेश कौशल का मंगलवार तड़के यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे । कौशल की पुत्रवधु रूचि कौशल ने बताया कि वह लंबे समय से बीमार थे और सोमवार से उनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, उन्होंने तड़के पांच बजे अंतिम सांस ली।

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ। कौशल ने कई वर्षों तक उत्तराखंड के मसूरी में सिविल सेवकों की प्रसिद्ध अकादमी में सार्वजनिक प्रशासन पढ़ाया। हाल ही में उन्हें ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना नरेगा की निगरानी के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया गया थाअवधेश कौशल एक शैक्षणिक, और एक कार्यकर्ता हैं जिन्हें भारत सरकार द्वारा कई नीति समीक्षा कार्यों पर नियुक्त किया गया था।।इससे पूर्व 80 के दशक में भी अवधेश कौशल की तूती बोलती थी। उन्होंने देहरादून मसूरी के बीच चूना भट्टा खदानों को बंद कराने में भी अहम भूमिका निभाई थी। जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पर्यावरण सहित शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। समय समय पर वह कई मंचों पर सम्मानित भी होती रहे।

गैर सरकारी संगठन ‘रूरल लिटिगेशन एंड एनलाइटनमेंट केंद्र'(रूलक) के संस्थापक कौशल ने मानवाधिकारों और पर्यावरण के लिए जीवन भर काम किया। कौशल को अस्सी के दशक में मसूरी में खनन पर रोक लगवाने का श्रेय जाता है, इससे वहां पर्यावरण को हो रही क्षति पर लगाम लगी। उन्हें घुमंतू जनजाति गुज्जरों का मसीहा भी माना जाता है जिन्होंने उनके अधिकारों के लिए एक लंबी प्रशासनिक और कानूनी लड़ाई लड़ी। गुज्जरों के लिए संघर्ष करते हुए उन्हें 2015 में जेल भी जाना पड़ा।भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले कौशल कुछ वर्ष पूर्व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास सहित दी जाने वाली अन्य सुविधाओं पर होने वाले व्यय की वसूली के लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय तक गए थे।

वयोवृद्ध समाजसेवी पद्मश्री अवधेश कौशल ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों की मिलने वाली सुविधाओं को हाई कोर्ट में चुनौती दे कर बंद कराने में भी उनका योगदान रहा है । जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, अंतिम समय तक तमाम मुकाम हासिल कर अनवरत जारी रही । आज अगर देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। वर्ष 1972 में तमाम गांवों का भ्रमण करने के बाद जब अवधेश कौशल ने पाया कि बड़े पैमाने पर चकराता क्षेत्र में लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है तो वह इसके खिलाफ खड़े हो गए।

उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बंधुआ मजदूरी का सर्वे करवाया। सरकारी आंकड़ों में ही 19 हजार बंधुआ मजदूर पाए गए। इसके बाद वर्ष 1974 मैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को बंधुआ मजदूरी से ग्रसित गांवों का भ्रमण कराया। जब सरकार को स्थिति का पता चला तो वर्ष 1976 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया।इसके बाद भी जब बंधुआ मजदूरों को समुचित न्याय नहीं मिल पाया तो इस लड़ाई को अवधेश कौशल सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए और दबे-कुचले लोगों के लिए संरक्षण की राह खोलकर ही दम लिया। हालांकि, जनता के हितों के संरक्षण का उनका अभियान यहीं खत्म नहीं हुआ और पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील दूनघाटी में लाइम की माइनिंग के खिलाफ भी अस्सी के दशक में आवाज पी आइ एल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट बुलंद की।

माइनिंग से मसूरी के नीचे के हरे-भरे पहाड़ सफेद हो चुके थे। इसके खिलाफ भी कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और संवेदनशील क्षेत्र में माइनिंग को पूरी तरह बंद कराने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।विकास से उपक्षित वन गूजरों के अधिकारों को संरक्षित करने का बीड़ा भी अवधेश कौशल ने उठाया था उसके लिए लंबी लड़ाई के बाद केंद्र सरकार वर्ष 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेल्स एक्ट में वन गूजरों को संरक्षित किया गया। अलग-अलग आयाम से यह लड़ाई अंतिम समय तक जारी रही । गूजरों के परिवारों के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूल संचालन, महिला अधिकारों और पंचायतीराज में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अवधेश कौशल रूलक संस्था के माध्यम से अंतिम समय तक प्रयासरत रहें हैं। वे सदैव अपनी जीवटता के लिए जाने जाएँगे ।

2005 में फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल सोसाइटी द्वारा चलाए गए एकल विद्यालय के कामकाज की समीक्षा के लिए कौशल को नियुक्त किया गया था, और आदिवासी क्षेत्रों में नफरत फैलाने वाले एकल विद्यालय पर उनकी रिपोर्ट का पालन करते हुए, एमएचआरडी ने ऐसे स्कूलों के वित्त पोषण को वापस ले लिया। उनके कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा हैं। उनका एक एनजीओ है जिसका नाम ‘रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटेलमेंट केंद्र’ RLEK है। अवधेश कौशल को द वीक पत्रिका द्वारा वर्ष 2003 के लिए मैन ऑफ द ईयर भी नामित किया जा चुका है। सामाजिक हितों को लेकर सदैव संघर्षशील रहे प्रसिद्ध समाजसेवी पद्मश्री से अलंकृत श्री अवधेश कौशल जी पुण्यात्मा को ईश्वर अपने श्रीचरणों में स्थान एवं शोक संतप्त परिजनों को यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।

यह लेखक के निजी विचार हैं।

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