23 दिसंबर, 1971 को कानून बना। जिसके अंतर्गत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या संविधान या उसके किसी भी भाग का अपमान करने पर 3 साल की कैद जुर्माना या फिर दोनों सजाएं एक साथ दी जा सकती है।
भारत का राष्ट्रीय झंडा देश के हर नागरिक के गौरव और सम्मान का प्रतीक है। जब भी कोई तिरंग को फहराता है तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है। लेकिन कई बार झंडे के प्रयोग और इससे जुड़े कानूनी प्रावधानों से अंजान होकर कई बार गलतियां भी कर दी जाती हैं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले कई महीनों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन में पंजाब सहित कई प्रदेशों के किसान भाग ले रहे हैं। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के पीलीभीत के 32 साल के बलविंदर भी इस आंदोलन में भाग लेने 23 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे थे और वहां से लापता हो गए। इसके बाद वे दिल्ली के हॉस्पिटल में मृत पाए गए। 1 फरवरी को बलविंदर के परिवार वालों को दिल्ली पुलिस ने यह जानकारी दी कि सड़क दुर्घटना में भगंदर की मौत हो गई है। 2 फरवरी को बलविंदर की बॉडी उसके परिवार वालों को सौंप दी गई। 3 फरवरी को परिवार वालों ने बलविंदर का अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार के दौरान उनकी बॉडी तिरंगे से लिपटी हुई थी। बलविंदर की पत्नी और उसके भाई पर तिरंगे के अपमान पर उत्तर प्रदेश की पुलिस ने केस दर्ज किया। यूपी पुलिस के अनुसार बलविंदर की पत्नी जसवीर कौर भाई गुरूविंदर और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशन ऑनर एक्ट के सेक्शन 2 के तहत मामला दर्ज किया गया है। दर्ज एफआईआर में लिखा है कि शव पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा रखकर अंत्योष्टि के लिए ले जाया गया। ये जुर्म राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण 1971 के तहत आता है, जिसके तहत 3 साल की जेल, जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं। मृतक के परिवार को न तो इसका पता है और न ही उस शख्स के बारे में जिसने शव को तिरंगे में लपेटा।
मामले को लेकर गुरूविंदर ने कहा कि बलविंदर की बॉडी को तिरंगे में लपेटने के पीछे एक कारण था। हमारा मानना है कि जैसे सैनिक देश के लिए बॉर्डर पर लड़ रहे हैं वैसे ही किसान देश के लिए लड़ रहे हैं। अंतिम संस्कार एक पवित्र प्रक्रिया है। यह देश भक्ति का भाव था। इससे पहले 26 जनवरी को आईटीओ पर ट्रैक्टर पलटने में मारे गए किसान के शव को तिरंगे में लपेटकर प्रदर्शनकारियों ने विरोध जताया था।
क्या है प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशन ऑनर एक्ट
23 दिसंबर, 1971 को कानून बना। जिसके अंतर्गत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या संविधान या उसके किसी भी भाग का अपमान करने पर 3 साल की कैद जुर्माना या फिर दोनों सजाएं एक साथ दी जा सकती है। अपमान का अर्थ यहां जलाने या मूल स्वरूप को बिगाड़ने फाड़ने या गंदा करने सहित किसी भी अपमानित करने से आशय है। इसी सेक्शन के 4डी में लिखा है कि राजकीय अंतिम संस्कारों और आर्म्ड फोर्स पैरामिलिट्री फोर्स को छोड़कर किसी भी अंतिम संस्कार में भारतीय राष्ट्रध्वज इस्तेमाल करना अपमान माना जाएगा।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का किसी प्रतिमा या स्मारक या वक्ता की डेस्क या वक्ता के मंच को ढकने के लिए उपयोग करना या ध्वज को जमीन या भूतल को स्पर्श करने देना या पानी में ले जाना।
राष्ट्रीय ध्वज को किसी भवन को ढकने के लिए उपयोग करना।
राष्ट्रीय ध्वज के केसरिया रंग का नीचे की ओर प्रदर्शन करना।
राष्ट्रगान के गायन को रोकना।
भारतीय ध्वज संहिता, 2002 में सभी नियमों और औपचारिकताओं व निर्देशों को एक साथ लाने के प्रयास किया गया है। झंडा संहिता भारत के स्थान पर भारतीय झंडा संहिता 2002 को 26 जनवरी 2002 से लगू किया गया। सुविधा के लिए भारतीय झंडा संहिता को तीन भागों में बांटा है। संहिता के भाग 1 में राष्ट्रीय ध्वज के सामान्य विवरण शामिल हैं। भाग-2 में आम लोगों, शैक्षिक संस्थाओं और निजी संगठनों के लिए झंडा फहराए जाने से संबंधित दिशा-निर्देश दिए गए हैं। संहिता के भाग-3 में राज्य और केंद्र सरकार तथा उनके संगठनों के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं।
फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया, 2002 के सेक्शन 3.22 जो राष्ट्रीय ध्वज के कानून प्रावधान और इसके प्रयोग से जुड़ा है। जिसके अनुसार राज्य / सैन्य / केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अंतिम संस्कारों के अलावा किसी अन्य को इसमें लपेटने के रुप में इस्तेमाल किय़ा जा सकता है।
सेक्शन 3.58 के अनुसार राज्य / सैन्य / केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अंतिम संस्कार के अवसरों पर ध्वज को अर्थी या ताबूत के ऊपर रखा जाएगा जिस पर केसरिया सिरा सिर की ओर रहेगा। झंडे को कब्र में नहीं रखा जाएगा या चिता में जलाया नहीं जाएगा।
अंत्योष्टि में ध्वज का प्रयोग
झंडे का इस्तेमाल केवल अंतिम संस्कार के दौरान किया जा सकता है, अगर इसे राजकीय दर्जा दिया गया हो। पुलिस और सशस्त्र बलों के अलावा, राजकीय अंतिम संस्कार जैसे राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री का पदभार संभालने या रखने वाले लोग गुजर जाते हैं।
पुलिस, सशस्त्र बलों और सरकारी गणमान्य लोगों के बाहर राजकीय सम्मान से विदाई पाने वाले नाम में ताजा मामला भारत के रॉकेट कार्यक्रम को सफलता की राह दिखाने वाले प्रोफेसर रोडम नरसिम्हा का नाम है। साल 2013 में देश का दूसरा शीर्ष सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पाने वाले प्रोफेसर रोडम को राजकीय सम्मान से विदाई दी गई थी। इसके अलावा अभिनेत्री श्रीदेवी और फिल्म अभिनेता शशि कपूर को भी अंतिम कुछ इसी प्रकार ही दी गई थी।
2015 में दादरी में अखलाक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार हुए रवि सिसोदिया की मौत 2016 में हुई। उस वक्त फ्रीजर वाले ताबूत में रखे रवि के शव पर तिरंगा लपेटा गया। बताया गया कि किडनी फेल होने से रवि की मौत हुई। 26 जनवरी को आईटीओ पर ट्रैक्टर पलटने में मारे गए किसान के शव को तिरंगे में लपेटकर प्रदर्शनकारियों ने विरोध जताया था।
अब आपको झंडे से जुड़ी कुछ और जानकारी देते हैं।
भारत के लिए झंडा बनाने की कोशिशें हालांकि पहले भी हो चुकी थी। लेकिन तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने की थी। उनकी चर्चा महात्मा गांधी ने 1931 में अपने अखबार यंग इंडिया में की थी। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उन्हें झंडों में बहुत रूचि थी। गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा। वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर लाल औऱ हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा। इस बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। बाद में गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया। हालांकि तब झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था।
कैसे बना देश का झंडा
देश के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। इस झंडे को भारत की आजादीकी घोषणा के 24 दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपनाया। देश की स्वतंत्रता के बाद पहले उप राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चक्र के महत्व को समझाते हुए कहा था कि झंडे के बीच में लगा अशोक चक्र धर्म का प्रतीक है। इस ध्वज की सरपरस्ती में रहने वाले सत्य और धर्म के सिद्धांतों पर चलेंगे। चक्र गति का भी प्रतीक है। भारत को आगे बढ़ना है। ध्वज के बीच में लगा चक्र अहिंसक बदलाव की गतिशीलता का प्रतीक है।
आधिकारिक झंडा निर्माता
कर्नाटक के हुबली में स्थिक कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संमुक्त संघ (केकेजीएसएस) ही भारतीय तिरंगे का आधिकारिक निर्माता है। वैसे तो केकेजीएसएस में खादी के कपड़े बनाए जाते हैं लेकिन सबसे ज्यादा खास चीज जो यहां बनाई जाती है वो है हमारे देश का तिरंगा। कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संमुक्त संघ की शुरुआत 1 नवंबर 1957 को खादी के कपड़ों को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। पिछले पंद्रह वर्षों में केकेजीएसएस ने 5 करोड़ से भी ज्यादा भारत के तिरंगे मैन्युफैक्चर किए हैं। देश में कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल होता है तो यहीं के बने झंडे की सप्लाई की जाती है।
18 बार होता है क्वालिटी चेक
केकेजीएसएस में बनने वाले तिरंगे की क्वालिटी बीआईएस द्वारा चेक की जाती है। जरा सी भी कुछ खामी रहने पर इसे रिजेक्ट कर दिया जाता है। हर अनुभाग पर 18 बार तिरंगे की गुणवत्ता की जांच की जाती है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग और भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तय रंग के शेड से तिरंगे का शेड अलग नहीं होना चाहिए। केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाईचचौड़ाई में जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए। अशोक चक्र की छपाई अगले-पिछले भाग पर समान सी होनी चाहिए। फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के अनुसार झंडे की मैन्युफैक्चरिंग में रंग, आकार या धागे को लेकर किसी भी तरह की खामी एक गंभीर अपराध है और इसमें जेल/जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।-
साभार – अभिनय आकाश
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