दिवाली की सफाई

हम छोटे थे तो दिवाली महोत्सव में अपने मिटटी पत्थर के घर में चूने से पुताई, मिट्टी से लिपाई किया करते थे, घरेलु जानवरों की साफ़ सफाई कर उन्हें मिक्स अनाजों का पकवान बनाकर खिलाते थे मगर आज भ्रष्टाचार, झूठ व लूट से कमाई दौलत से एक वर्ग ने दिवाली महोत्सव को दिखावे का पर्व बना दिया है जिसकी देखा देखी मेहनतकश, मजदूर, किसान, जवान जैसे आम नागरिक भी सामाजिक दबाव के चलते उस फूहड़पन का हिस्सा बन गए हैं और जाने अनजाने अपने ही हाथों न सिर्फ अपनी वित्तीय स्थिति बिगाड़ रहे हैं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी में भ्रष्टाचार, लूट व झूठ से दौलत कमाने वालों की श्रेणी में खड़े हो गए हैं! अकेले दीवाली महोत्सव में प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी, पटाखों फुलझड़ियों के प्रदूषण से अगली पीढ़ी के लिए कितनी बड़ी चुनौती खड़ी होती है इसपर गंभीरता से चिंतन की आवश्यकता है! सोचिये दिवाली महोत्सव में घरों में साफ़ सफ़ाई हो रही है या उल्टा धरती को दूषित कर धरती के संसाधनों व साँस ले रहे प्राणियों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है?

नोट: जिन्हें पोस्ट से एतराज हो वो कृपया इसपर मुसलमान- ईसाई घुसेड़ कर मूल चिंतन से भटकाने का प्रयास न करें, बात धरती की सेहत की है जो हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है!

 

साभार  भार्गव चंदोला