बात 1952 की है। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्य मीरा बहन ने ‘हिमालय में कुछ गलत हो रहा है’ शीर्षक से लिखे लेख में कहा था-‘उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में बांज की जगह चीड़ के पेड़ लगाना सामाजिक नजिरये से तो अन्यायपूर्ण है ही, पर्यावरण की दृष्टि से मूर्खतापूर्ण भी। 67 साल बाद उनकी यह बातें उत्तराखंड में पूरी तरह दृष्टिगोचर हो रही हैं। 71 फीसद वन भू-भाग वाले उत्तराखंड में वन विभाग के अधीन 2586318 हेक्टेयर वन क्षेत्र में चीड़ ने 15.25 फीसद में कब्जा कर लिया है, जबकि बांज के जंगल सिमटकर 14.81 फीसद पर आ गए हैं। जैव विविधता के साथ ही जल संरक्षण में सहायक बांज के जंगलों में चीड़ की घुसपैठ से वन महकमे के साथ ही पर्यावरणविदें के माथों पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बांज पर इस आघात को देखते हुए चीड़ पर अंकुश लगाने को ठोस कदम उठाने के साथ ही बांज को बढ़ावा देना होगा। यदि इसकी और अनदेखी की गई तो सिमटते देर नहीं लगेगी।

पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक मात्रा में पाए जाने वाले बांज, मोरू, खरसू, बुरांश, काफल, अगिंयार, फनियाट के जंगलों में चीड़ के पेड़ों की बढ़ती संख्या से इन पेड़ों पर खतरा मंडरा रहा है। यदि समय रहते चीड़ के पौधों के विस्तार पर रोक नहीं लगाई गई तो इन उपयोगी वनों पर संकट छा सकता है। इनकी प्रजाति समाप्त भी हो सकती है।जानकार बताते हैं कि वरुणावत और दयूड़ी डांडा में हो रहा भूस्खलन का मुख्य कारण चीड़ के जंगल रहे हैं। कर्णप्रयाग ब्लाक के जाख, कलियाड़ी, भटग्वाली, नंदासैंण, जखेट, खेती, पिंडवाली, बडेत, छांतोली आदि क्षेत्रों के जंगलों में लगातार चीड़ के पौधों की संख्या बढ़ रही है। चीड़ की पत्तियों से निकलने वाले पीरूल के कारण चीड़ के पेड़ों के नीचे नई वनस्पतियां जम नहीं पाती हैं। चीड़ के पेड़ से जंगलों में आग लगने का खतरा भी बना रहता है। पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि चीड़ की बेहताशा बढ़ोतरी ने पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचाया है। जंगलों में खाली स्थानों पर बांज के पौधे लगाने चाहिए। नई पीढ़ी को जागरूक होकर चौड़ी पत्ती वाले वनों की उपयोगिता को समझना होगा।

       बांज की खूबियां
-सदाबहार बांज जल संरक्षण में सहायक

-बांज के जंगलों में लगातार रहती है नमी
-अग्निकाल में सुरक्षित रहते हैं बांज के जंगल
-जैव विविधता के संरक्षण में सहायक
-पर्वतीय क्षेत्र में कृषि उपकरण बांज की लकड़ी से ही बनते हैं
-बांज की पत्तियां पशुओं के लिए अच्छी क्वालिटी चारा
-भीमल के बाद बांज की पत्तियों में मिलता है सबसे ज्यादा प्रोटीन
-बांज के जंगल भू-क्षरण रोकने में सहायक
-बांज की सूखी लकड़ी सबसे अच्छा ईंधन

       चीड़ से नुकसान

-धरती को अम्लीय बना रहा है चीड़

-इसकी पत्तियां (पिरुल) और फल (छ््यूंती) वनाग्नि फैलाने में सहायक
-चीड़ के जंगलों के नीचे नहीं पनप पाती दूसरी वनस्पतियां
-जैव विविधता को पहुंचा रहा भारी नुकसान
-चीड़ के जंगल वाले क्षेत्रों में सूख रहे हैं जलस्रोत
-पिरुल के कारण बरसात का पानी भूमि में रिसने की बजाय तेज गति से बह जाता है।