जब मानव पशुओं की तरह झुण्ड बनाकर जंगलों में भोजन खोजियों के रूप में रहता था बिना भाषा के संकेतों के माध्यम से वे आपस में सम्प्रेषण अधिकतम 250 की जनसंख्या तक ही सुचारु रूप से कर सकते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से लगभग 80000 साल पहले भाषा याने कि मानव के बोलने की क्षमता विकसित हुई. यह मानव विकास की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण सोपान सावित हुआ। सम्प्रेषण में आई इस अभूतपूर्व क्रांति के साथ ही मानव का पशुता से उत्तरोत्तर अलग होना प्रारम्भ हो गया।
अब यहां एक रोमांचक कल्पना करते हैं. भाषा के माध्यम से सम्प्रेषण करने की प्रक्रिया में मानव ने सबसे पहला झूठ क्या बोला होगा। हम यहां से भी शुरू कर सकते हैं कि पहले पहल मानव ने किस शब्द का उच्चारण किया होगा ? चलिए पहला शब्द अनायास भी निकल सकता है। परन्तु झूठ का आविष्कार तो बिना कल्पना के नहीं हो सकता। जो घटित ही नहीं हुआ वह कल्पना के तारों को जोड़े बिना हो ही नहीं सकता था।
जिस झूठ को हम वर्तमान सन्दर्भों में एक नकारात्मक प्रबृत्ति समझते हैं, मानव सभ्यता के विकास में उसकी भूमिका सत्य से कहीं कहीं अधिक है। झूठ के विकास के साथ ही झूठ को सच के रूप में मनवाने और इस तरह के झूठ गढ़ने, और उसके इर्द-गिर्द बहुत बड़ा तंत्र बुनने के असीम संभावनाओं के द्वार खुल गए। मसलन हैलोसिनेसन जैसा मानसिक विकार का जन्म होना। समूहों के लिए आराध्य याने कि कुल देवताओं की अवधारणा स्थापित करना और, औरों का इस पर विश्वास करना। काल्पनिक बातों के माध्यम से मानव विशेष को अन्य से श्रेष्ठ स्थापित करना। आगे चल कर ऐसी संकल्पनाएं स्थापित करना जो कहीं मूर्त रूप में नहीं हैं परन्तु मानवो का बड़ा समूह उसी से संचालित होना । आगे चल कर ये ही संकल्पना धर्म, राष्ट्र, कंपनी, आदि असंख्य रूपों में मानव समाज को एक जटिल तंत्र के तौर पर स्थापित कर गयी. मानव सभ्यता के विकास में इसे संकल्पना क्रांति (COGNITIVE REVOLUTION)के तौर पर माना गया.

     आगे राष्ट्र की अवधारणा का विकास, मतलब धर्म आदि इन पर वैज्ञानिक रोशनी डालूंगा। परन्तु यह मित्रों की जिज्ञासा पर निर्भर करेगा। शर्त यह है कि इसको विचारधारा विशेष के नज़रिये से मुक्त होकर पढ़ना होगा ।

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साभार – डॉ0 एस. पी. सती