आजकल उत्तराखंड में आत्मसम्मान बहुत हिलोरे मार रहा है कारण है, भाजपा का एक बद्जुबान “चैम्पियन” विधायक का वायरल हुआ वीडियो जिसमें वह पूरे राज्य का तिरस्कार करते हुए अपशब्दों का प्रयोग कर रहा है, चलो चंद लोग ही सही मगर कहीं से आवाज तो निकली मतलब थोड़ी बहुत “गैरत” बाकी है ।
इन आवाजों से मुझे कुछ वर्ष पूर्व का एक वाकया याद आ रहा है जब सत्ता के “शौकीन” एक मंत्री के सरकारी आवास पर भव्य भोज का आयोजन किया गया था और उसी आयोजन में “शेरे-उत्तराखण्ड” के नाम से विख्यात राज्यमंत्री श्री विवेकानंद खण्डूरी को इसी बद्जुबान के तमंचे से घायल हो कर अस्पताल का रास्ता देखना पड़ा था, मगर मजाल कि कहीं से कोई आवाज आयी हो। और तो और जिसके गोली लगी वह भी खामोशी की चादर ओढ़ कर शांति से लेट गया। अब चूँकि मामला राष्ट्रीय दलों के बीच का था और उनकी नजरों में उस राज्यमंत्री की हैसियत जो भी रही हो ! मगर वह राज्य मंत्री उत्तराखंडी समाज में बड़ी शान औऱ सम्मान की नजर से देखा जाता था। अब उस राज्यमंत्री की खामोशी की वजह जो कुछ भी रही हो मगर उस घटना ने एक संदेश तो स्पष्ट कर दिया था कि अब उत्तराखंडी उस बदजुबान के सामने नतमस्तक की मुद्रा में है। एक औऱ घटना का जिक्र भी मैं यहाँ करूँगा जब ग्राम्य विकास अधिकारी श्री विक्रम नेगी के सुपुत्र जिसे सुबह टयूशन जाते हुए एक बड़ी गाड़ी की टक्कर से गंभीर रूप से घायल कर दिया था और जांच के बाद जैसे ही ये बात सामने आई कि टक्कर मारने वाली गाड़ी इन्हीं बद्जुबान के पिता जी के नाम पर थी प्रशासन के हाथ- पाँव फूल गये । मुझे नहीं पता कि उस मामले में क्या हुआ मगर मैंने ये दो मामले मैंने इसलिए बताये क्योंकि यहाँ कानून का उलंघन प्रत्यक्ष रूप से हुआ था केस दर्ज करके मय सबूतों के, कोर्ट में मजबूती से पैरवी भी हो सकती थी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ ! क्यों ?
आज फिर उक्त बद्जुबान ने पूरे राज्य के बारे में कुछ अपशब्द कह दिये हैं तो उनका आत्मसम्मान फिर से उबाल मारने लगा। कौन हैं ये सिरफिरे लोग जो उस बद्जुबान की सत्ता के “सरूर” में ख़लल डाल रहे है क्योंकि अपशब्द सार्वजनिक रूप से तो कहे नहीं गये। आप भी बंद कमरे में किस-किस की माँ-बहन की करते रहते हो ये आपका व्यक्तिगत मामला है अब चोरी से कोई रिकॉर्डिंग कर के जनता को दिखा दे तो ये “निजता का उलघन” भी माना जा सकता है।
वैसे ऐसा ही मामले को हम पहले से देख चुके हैं….
“मैं बाद में टॉपअप कर दूंगा ” (याद है !) । क्या हुआ उनका ? और फिर अब तो “शौकीन” मंत्री जी और श्याम जाजू भी कह रहे हैं पुराना विडियो है तो तुम भी मान लो ! बाकी सत्ता के इरादे तो कल महिला मंच जो प्रमुख रूप से गैरसेंण के मुद्दे पर जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचा था उनसे ज्यादा लाव लश्कर तो पुलिस वालों का दिखा।
त्याग और बलिदान से मिले उत्तराखण्ड की दुहाई देने वाले साथियों से निवेदन है कि कृपया सोच कर देखना कि पिछले 19 सालों में हमारी सरकारों ने कौन बात आज तक “शहीदों के अरमानों” के अनुरूप करी है ? जिस दिन पहाड़ी राज्य की मांग में हरिद्वार औऱ उधमसिंह नगर जोड़ खत्म किया जा रहा था तब कितने लोगों में उबाल आया ? समूह ग की भर्ती में मूल निवास के स्थान पर स्थानीय निवास में तब्दील किया गया तब कितनों का खून खौला ? ये तो बानगी भर है ऐसे तो सैकड़ों मामले हैं जब हमारे अपने ही लोग ने हमारी भावनाओं को रौंद कर दूसरों को तवज्जो दी।
जल ,जंगल,जमीन,पलायन,परिसीमन,रोजगार,शिक्षा, राजधानी जैसे मुद्दों पर हमारी सरकारों ने भी तो हमें बड़ी ही खामोशी के साथ वहीं बैठा रखा है जहाँ वह “बद्जुबान” राज्य को रख रहा है और पिछले सवा साल से 10 % क्षैतिज आरक्षण से प्राप्त “सम्मान” भी अब भीख सी महसूस होने लगी है । अरे ! भूल गए 2 अक्टूबर का मुजफ्फरनगर कांड , 25 साल होने को हैं उसका जवाब आज तक नहीं दिया गया
वैसे देखा जाये तो उस बद्जुबान की उक्त टिप्पणी हमारे सांसद और मुख्यमंत्री समेत अपने सभी सहयोगियों पर भी पूर्णतः समान रूप से लागू होती है मगर उन्होंने तो अब तक एक शब्द भी उसके खिलाफ नहीं बोला फिर तुम्हे क्यों मिर्ची लग रहीं हैं ! ऐसी क्या बात है जो उसकी बातें सुनकर हमारे माननियों के कान पर तो जूं तक नहीं रेंगी और तुम सड़कों पर चीख़ -चीख़ कर अपना रक्तचाप बड़ा रहे हो ।उस बद्जुबान को तो शौक है इस तरह की छिछोरी हरकत कर के सुर्ख़ियों में रहने का।ये भी हो सकता है कि ये सरकार की ही कोई चाल हो हमें गैरसेंण औऱ पिथोरागड़ के छात्रों के ज्वलंत मुद्दे से भटकाने के लिए ।आगे कई मौके मिलेंगे इस बदजुबान को जवाब देने के। पहले अपने मुद्दे-अपनी लड़ाई पर फोकस करो।
इस समस्या का स्थाई समाधान तो ये है कि जिन लोगों ने यहाँ अपनी छोटी-मोटी राजनीतिक दुकाने खोल रखीं हैं इन्हें तुरंत बंद किया जाये। इन दुकानों में बैठ कर, इन राष्ट्रीय दलों से मुकाबला करने की ग़लतफ़हमी को दिमाग से निकाल दो। अब भी समय है राज्य के सवालों को लेकर अपना “एक” तम्बू खड़ा करो, ध्यान रखना उस तम्बू के नीचे किसी भी राष्ट्रीय दल का पैरोकार और ना ही कोई विभीषण वहाँ पैदा न हो पाए। धीरे-धीरे मुद्दों का दायरा औऱ तम्बू का क्षेत्रफल बढ़ाते जाओ ।
यकीं मानो जिस दिन हम एक हो गए ,ये जितने भी भेड़िये यहाँ शेर की खाल में घूम रहें हैं … सब निपट लेंगे।
अन्यथा हमारे ओजस्वी मुख्यमंत्री राज्य के चहुंमुखी विकास के नाम हमें गुप्ताओं के “गू” को पर्यटन की चाशनी में लपेट कर , हमारे तीर्थस्थलो में शराब की फैक्टरी को रोजगार के नाम पर खोलने के बाद थाईलैंड वाला कुटीर उधोग भी यहाँ स्थपित कर दें तो क्या कर लोगे ?