हल्द्वानी,9 जून: भीम आर्मी ने सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपते हुए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं सिलसिलेवार तरीके से हो रही हैं, वह बेहद अफसोसजनक है। इससे अधिक निंदनीय, उनमें शासन और प्रशासनिक मशीनरी की भूमिका है, जो किसी भी तरह इस तरह के उत्पात और उन्माद को रोकने की कोशिश नहीं करती, जिनके निशाने पर राज्य में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं।
इस संदर्भ में पुरोला का घटनाक्रम चिंताजनक और हैरत में डालने वाला है। पुरोला में दो व्यक्ति, एक नाबालिग बच्ची के साथ थे। आरोप है कि ये दोनों लोग नाबालिग को भगा कर ले जा रहे थे। आरोपियों में एक मुस्लिम और एक हिंदू हैं, दोनों की गिरफ्तारी हो गयी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को मौका मिल गया कि वे खुल कर उन्माद फैलाने की राजनीति कर सकें। घटना और उसमें कार्यवाही हुए आधा महीना हो चुका है, लेकिन उसके बावजूद पुरोला और पूरी यमुना घाटी में तनाव का माहौल बनाए रखने के प्रयास निरंतर जारी हैं। आरोपियों का किसी तरह का बचाव न किए जाने के बावजूद, निरंतर उग्र माहौल बनाए रखना और इसके लिए विभिन्न बाजारों को बंद रखना, एक सुनियोजित कार्यवाही प्रतीत होती है, जिसके निशाने पर अलसंख्यक समाज के वे लोग भी हैं, जिनका कोई अपराध नहीं है. सभी अल्पसंख्यकों की दुकानों पर दुकान खाली करने का पोस्टर चस्पा करना, असंवैधानिक,गैरकानूनी और आपराधिक कृत्य है। इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। इससे पहले भी भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने में उत्तराखंड सरकार, प्रशासन और पुलिस का रवैया बेहद लचर रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि नफरत भरे भाषण के मामले में पुलिस स्वतरू संज्ञान लेकर कार्यवाही करे। पुरोला की घटना की बाद भी अल्पसंख्यकों की संपत्ति को क्षति पहुंचाने की कार्यवाही एवं आह्वान हुए, अखबारों में इस आशय के बयान भी नाम सहित प्रकाशित हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों को मकान न देने और उन्हें भगाने के आह्वान भी सार्वजनिक तौर पर हो रहे हैं, लेकिन यहां भी पुलिस का कार्यवाही न करने वाला रुख कायम है। यह उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना है।