डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

संत शिरोमणि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। संत रविदास जी के पिता का नाम संतोष दास था, वही माता का नाम कर्मा देवी था। उनके दादाजी का नाम श्री कालूराम जी वही दादी जी का नाम श्रीमती लखपति जी था। रविदास जी की पत्नी का नाम श्रीमती लोना जी और पुत्र का नाम श्री विजय दास जी है।

कवि रविदास जी चमका कुल से वास्ता रखते हैं जो कि जूते बनाते थे। दरअसल, रविदास जी के पिता चमड़े का व्यापार करते थे, वह जूते भी बनाया करते थे। उन्हें यह कार्य करके बहुत खुशी होती थी। वह बड़ी लगन और मेहनत के साथ अपना कार्य करते थे। जब रविदास जी का जन्म हुआ उस समय उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था और हर तरफ अत्याचार गरीबी भ्रष्टाचारऔर अशिक्षाका माहौल था। उस समय मुस्लिम शासकों का प्रयास रहता था कि वह ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं को मुस्लिम बनाएं। रविदास जी की ख्याति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे। जिसमें हर जाति के लोग शामिल थे। इसको देखकर एक परिद्ध मुस्लिम सदना पीर उनको मुस्लिम बनाने आया था। उसका मानना था कि यदि उसने रविदास जी को मुस्लिम बना लिया तो उनसे जुड़े लाखों भक्त भी मुस्लिम बन जाएंगे। मुसलमान बनाने को लेकर हर प्रकार का दबाव रविदास जी पर बनाया गया, लेकिन संत रविदास जी तो संत थे। उन्हें किसी धर्म से मतलब नहीं था उन्हें तो सिर्फ मानवता से मतलब था।

संत रविदास जी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। रविदास जी के करीब 40 पद सिख धर्म के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित किए गए हैं। बताया जाता है कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्ति धारा के महान संत हैं, वह रविदास जी के शिष्य थे। रविदास जी को संत कबीर का गुरभाई भी माना जाता है। कबीर दास जी द्वारा खुद रविदास जी को संतन में रविदास कहकर मान्यता दी गई है। राजस्थान की मशहूर कृष्ण भक्त मीरा बाई भी, उनकी शिष्य रह चुकी है।

कहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी भी उनके शिष्य रह चुकी है। चित्तौड़गढ़ में संत रविदास जी की छतरी भी बनी हुई है कहा जाता है कि vah चित्तौड़गढ़ में ही स्वर्ग रोहन कर गए थे। इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वाराणसी में 1540 ईसवी में उन्होंने अपना देह छोड़ दिया था। वाराणसी में संत रविदास जी का एक भव्य मंदिर और मठ है जहां हर जाति के लोग दर्शन करने जाते हैं वही वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क भी है जो उनकी याद में बनाया गया था। महापुरुष अपना सर्वस्व समाज के लिए सौंप देने तथा सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए संघर्षरत रहने के कारण ही एक व्यक्ति से उठकर सामाजिक संस्था के रूप में स्थापित हो जाते हैं, वे समष्टि के उद्घोषक थे- “प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी। प्रभु जी तुम दीपक हम बा वहीं दूसरी ओर, उन्होंने साक्षर और शिक्षित में भी अंतर को रेखांकित किया था। बाबा साहब ने भी साक्षर और शिक्षित में अंतर किया है। संत रविदासजी कहते हैं कि केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है, अपितु जो मनुष्य सही शिक्षा प्राप्त करने केबाद जन-कल्याण का प्रयत्न करता है, वही वास्तविक ज्ञानी है। संत रविदासजी ने जन्म के आधार पर होने वाले भेद-भावों की घोर उपेक्षा की। मनुष्यों ने जातियों के भीतर अनेक जातियां बना दीं, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है। जब तक यह जाति का भेद-भाव रहेगा, तब तक मनुष्य एक दूसरे से नहीं जुड़ पाएंगे। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि अर्थात जन्म के आधार पर कोई मनुष्य ऊँचा या नीचा नहीं होता है, अपितु, मनुष्य का व्यवहार ही उसे ऊंचा या नीचा बनाता है।

वे औपचारिक शिक्षा से रहित थे लेकिन विद्या, ज्ञान और भक्ति के मामले में वे संत समाज सुमेरू के समान थे। उनका निराकार ब्रह्म घट-घट वासी था। रविदास जी के जीवन दर्शन का वैशिष्ट्य है। वे कहते हैं- “ऐसा चाहूं राज में जहां मिले सबन को अन्न, छोट बड़े सब सम बसें रैदास रहे प्रसन्न।” एक बूंद से सब जग उपजया मंत्र के अर्चक संत रविदास ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में उसी परमात्मा का अंश विद्यमान है, फिर किस आधार पर किसी को ऊंचा और किसी को नीचा समझा जाए। उनकी अनन्य भक्ति का यह भजन दृष्टव्य है- “प्रभुजी! तुम चंदन हम पानी जाकी अंग-अंग बास समानी। प्रभुजी! तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन राती। प्रभुजी! तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहीं मिलत सुहागा।”वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पढ़े-लिखे सभ्य समाज की यह विडंबना है कि आज भी दलितों के प्रति अस्पृश्यता का अभिशाप समाज के लिए कलंक है।

देश में प्रतिदिन कहीं ना कहीं दलितों के प्रति शोषण, अन्याय, अनाचार और महिलाओं के विरूद्ध अपराध, हत्याएं आदि की ह्रदयविदारक घटनाएं घटती रहती हैं। कहने को हमारा देश अनेक धर्माचार्योंं, अवतारों, संतों और महात्माओं का देश है जहां पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, जीव-जंतु और यहां तक कि पत्थरों की भी पूजा की जाती है किंतु यह कैसा विचित्र विरोधाभास है कि मानव को मानव छूने से अपवित्र और अस्पृश्य हो जाता है।नि:संदेह संत शिरोमणि रविदास जी का समग्र चिंतन केवल किसी वर्ग विशेष का ही नहीं वरन् वह समूची मानवता के कल्याण की उन्नयन की धरोहर है। अतः राष्ट्र की एकता ही नहीं वरन राष्ट्र के समग्र विकास और स्वस्थ समाज के लिए सामाजिक समरसता के सपनों को साकार करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। जन्म आधारित भेदभाव को तिलांजलि देनी होगी और कानूनों का सख्ती से पालन व सामाजिक चेतना जागृत करनी होगी। जैसा कि संत रविदास ने कहा है- “रैदास जन्म के कारणे होत न कोई नीच, नर को नीच करि डारि हैं ओछे कर्म की कीच।”उनके उपदेश सार्वदेशिक, सर्वकालिक और सार्वभौमिक हैं।

ऐसे दिव्य महात्मा के श्रीचरणों में कोटिश: नमन।

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