छः लाईन की बसीयत लिख मौत से लड़ने टिहरी चल दिये थे गढवाली………
आज चन्द्रसिंह गढवाली जी की 39 वीं पुण्यतिथि है। गढवाली को लोग पेशावर काण्ड के नायक के रूप में ही ज्यादा जानते हैं। लेकिन उनका योगदान कालापानी की सजा भुगतने के बाद भी जारी रहा। एबटाबाद, डेराइस्माइल खां सहित अंग्रेज भारत की छः जेलों में वे 11 साल, 3 महिने और 18 दिन तक रहे। 1941 में जेल से छूटे तो देश की आजादी के आन्दोलन में फिर कूद पड़े।
देश आजाद हुआ और टिहरी राजा का ही गुलाम रह गया तो वहां भी पहुंच गये। 11 जनवरी 1948 के दिन कीर्तिनगर में राजा की पुलिस की गोली से नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी शहीद हुए तो उनके लाशें राजा की गाडी में रखकर टिहरी कूच करने वालों का नेतृत्व करने वालों में गढवाली भी थे। जानते थे कि टिहरी पहुंचते ही मारे जा सकते हैं। समय नहीं था, इसलिये नोट बुक से पन्ना फाड़ बस छः लाइन की वसीयत लिख कर स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रसिंह रावतजी के हाथों अपनी पत्नी भागीरथी देवी को भिजवादी । बहुत लोग इस बारे में नहीं जानते हैं, ये लिखा था, गढवाली ने वसीयत में —-
“आज मैं इस खत को अपने साथी नगेन्द्रदत्त सकलानी और साथी भोलूसिंह की मृत्यु की साया के बीच में बैठकर लिख रहा हूँ। इस खत को मैं अपने साथी ठाकुर चन्द्रसिंह रावत वकील, कांग्रेस-प्रधान के हाथ अपने गढ़वाली भाइयों, स्त्री भागीरथी देवी और बेटी माधवी तथा ज्वाला के नाम भेज रहा हूँ। मैं अपनी राजी-खुशी, होश-हवास के साथ अपने साथी सकलानी के जनाजे को लेकर पं0 त्रिलोकीनाथ के साथ उन्हीं के नेतृत्व में जा रहा हूँ। मैं अपने तन-मन-धन से अहिंसात्मक शान्त प्रदर्शन को लेकर जा रहा हूँ। अगर मैं टेहरी के लिए मर गया, तो मेरी प्रबल इच्छा कि मेरे गढ़वाली भाई मेरी अन्तिम माँगों (इच्छा) को स्वीकार करेंगे।
 1. टेहरी आन्दोलन का पूरा भार लें, 
2. चाँदपुर तहसील का मेरा काम अधूरा न रखें,
 3. पेशावर कांड को न भूलें। गढ़वाल और देश की जय।”

15 जनवरी को शहीदों की लाशें टिहरी पहुंची। राजा की पुलिस फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया। चन्द्रसिंह गढवाली ने ही घोषणा की थी – अब टिहरी स्वतंत्र है……………..।
  यह पूरा विवरण गढवाली की जीवनी में दर्ज है। जीवनी लिखी है – महाज्ञानी महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने ।
साभार :- महिपाल नेगी ,नई टिहरी ।