केंद्र सरकार दो साल पहले सेना द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक को पराक्रम पर्व के तौर पर मना रही है.यह कार्यक्रम 28 सितंबर से शुरू हो कर 30 सितंबर तक चलेगा. देश भर में विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों को भी यह सर्जिकल स्ट्राइक दिवस मनाने का आदेश दिया गया.
इस नए दिवस या पर्व को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं. जैसे एक सवाल सोशल मीडिया पर लोगों ने उठाया कि पिछले साल यह दिवस या पर्व नहीं मनाया गया तो क्या इस बार,2019 में आसन्न चुनाव को देखते हुए,चुनावी लाभ के लिए इस “पर्व” का आयोजन किया जा रहा है ? प्रश्न तो यह भी है कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कोई कार्यवाही,क्या प्रचारात्मक उपयोग के लिए, किसी भी समय में प्रयोग की जानी चाहिए ? पाकिस्तान पर आम तौर पर भारत का आरोप रहता है कि वह भारत में अवैध घुसपैठ करवाता है. लेकिन जब भारत सरकार यह ऐलान कर दे कि हमारी फौज,दूसरे देश की सीमा में घुस कर कुछ ठिकानों को नष्ट कर आई तो क्या सिर्फ अपने प्रचार के लिए, यह स्वयं को पाकिस्तान की श्रेणी में खड़ा करना नहीं है ?
सर्जिकल स्ट्राइक के इस दिवस या पर्व को यदि मनाया जा रहा है तो यह तो मापना ही चाहिए कि वह सर्जिकल स्ट्राइक अपने उद्देश्य में कितनी सफल रही. इस के लिए यह याद करना होगा कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई क्यूँ थी. 2016 में उड़ी में भारत के 19 सैनिकों की हत्या का बदला लेने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की गयी थी. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सैनिकों की हत्या का बदला लेने के अलावा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की कमर तोड़ने का दावा भी केंद्र की सरकार ने किया था. तो सैनिकों के मारे जाने और आतंकवादी वारदातों के घटित होने के पैमाने पर ही सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता को मापा जाना चाहिए.
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही यदि याद करें तो हर हफ्ते-पंद्रह दिन में सैनिकों के आतंकवादियों के हमले का शिकार बनने की खबर आती ही रहती हैं.कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं का होना और आम नागरिकों का मारा जाना भी आए दिन की खबर है. स्वयं सरकारी आंकड़े भी केंद्र सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक पर अपनी पीठ ठोकने की पोल खोलने वाले हैं. संसद में दिये गए जवाबों से यह साफ है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वाले वर्षों में भी सैनिकों के मारे जाने,आतंकवादी हमलों और नागरिकों का उनका शिकार बनने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.
इस वर्ष 7 अगस्त को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराम गंगाराम अहीर ने जो आंकड़े दिये वे तो साफ बता रहे हैं कि कश्मीर में हालात सर्जिकल स्ट्राइक के पहले जैसे थे,वैसे ही उसके बाद भी हैं. अपने जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने बताया कि 2016 में आतंकी हिंसा की घटनाओं की संख्या 322 थी तो 2017 में यह संख्या 342 हो गयी और 2018 में तो 29 जुलाई तक आतंकी हिंसा की घटनाओं की संख्या 308 हो चुकी थी. इसी तरह मुठभेड़ों की संख्या के बारे में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने बताया कि 2016 में 101 मुठभेड़ें,2017 में 133 और 2018 में तो 29 जुलाई तक 90 मुठभेड़ें हो चुकी हैं. केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के इसी जवाब में सैनिकों के शहीद होने की संख्या का ब्यौरा दिया. उस ब्यौरे के अनुसार 2016 में 82,2017 में 80 और 2018 में 29 जुलाई तक 49 सैनिक, आतंकवादी हमलों में प्राण गंवा चुके हैं.  वेबपोर्टल लाइवमिंट में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि सर्जिकल स्ट्राइक के अगले साल यानि 2017 में आम नागरिकों की आतंकी घटनाओं में मारे जाने की संख्या में 166 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी. यही रिपोर्ट बताती है कि घुसपैठ की घटनाएँ जो 2016 में 371 हुई तो 2017 में 406 हो गयी.
    7 अगस्त 2018 को ही लोकसभा में एक अन्य प्रश्न के जवाब में गृह राज्य मंत्री हंसराम गंगाराम अहीर ने कहा कि कश्मीर में कुल 300 आतंकवादी सक्रीय हैं. कुल 300 आतंकवादी सक्रीय हैं,लेकिन कश्मीर में साल-दर-साल आतंकी घटनाओं में वृद्धि हो रही. आंकड़े बता रहे हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद नागरिकों और सैनिकों के आतंकी वारदातों का शिकार बनने की तादाद में इजाफा हुआ है.
तो सरकार बहादुर यह बताओ कि यह सर्जिकल स्ट्राइक का पर्व,बढ़ी तादाद में मरने वाले नागरिकों और सैनिकों की मृत्यु का उत्सव है ? या फिर नागरिक मरें,सैनिको मरते रहें, यही आपके प्रचारात्म्क उत्सव को खाद-पानी देता है ?
-इन्द्रेश मैखुरी