देहरादून: आशा हेल्थ वर्कर को निकाले जाने का विरोध करते हुए #वामपंथी पार्टियां व जनवादी विकाशील साथी जिलाधिकारी कार्यालय देहरादून में #चंपावत में 264 आशाओं को निकाले जाने के आदेश व अन्य जनपदों में निकालने की तानाशाही तैयारी के खिलाफ ज्ञापन देंगे।

साथियों कोरोना महासंकट के दिन हों या आम दिन #आशा_हेल्थ_वर्कर #आंगनबाड़ी #पीआरडी #भोजनमाता #होमगार्ड किसी मोटी मोटी तनख्वा सुखसुविधा लेने वाले किसी भी #कलैक्टर से कम मेहनत नहीं करते हैं बल्कि 10 गुना ज्यादा मेहनत करते हैं फिर वेतन भत्ते अवकाश माँगों के लिए सौतेला व्यवहार क्यों? अरे भई क्लेक्टरी बराबर नहीं तो मिनिमम वेतन तो दो, बेशर्मी की हद्द तो तब हो गई कि #चम्पावत जिला प्रशासन द्वारा 264 #आशा हेल्थ वर्कर को निकालने के आदेश दे दिए और अन्य जनपदों में निकालने की धमकी दी जा रही है, प्रशासन क्यों भूल जाता है वो अवाम के करों से वेतन लेने वाले सेवक हैं मालिक नहीं? उन्हें व्यवस्था बनाने को रखा गया है निरंकुश होकर तानाशाही करने को नहीं!

हम प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार से माँग करते हैं कि
आशा हेल्थ वर्करों को निकलने का आदेश तत्काल निरस्त किया जाये.
आशाओं को निकालने की धमकी नहीं उनकी माँग पूरी करते हुए काम का दाम दिया जाये.

“आशाओं को मातृ- शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए नियुक्त किया गया था लेकिन आशाओं पर फालतू काम का बोझ तो डाल दिया जाता है लेकिन उसका भुगतान नहीं किया जाता। कोरोना #लॉकडाउन काल में आशाओं ने फ्रंट लाइन वर्कर्स की भूमिका का निर्वहन बखूबी अपनी जान को जोखिम में डालकर भी किया है, लेकिन उसके लिए उनको कोई भी भत्ता नहीं दिया गया है, इसलिए आशाएँ लॉकडाउन भत्ते की हकदार हैं। इस सब पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना तो दूर रहा अपनी न्यायसंगत मांगों को उठाने वाली आशाओं के खिलाफ कार्यवाही करने की बात की जा रही है। चम्पावत जिला प्रशासन ने 264 आशाओं को निकालने के आदेश जारी किए हैं और उधमसिंहनगर जिले में भी ऐसी आशाओं की लिस्ट तैयार हो रही है जो अपने काम का मेहनताना मांग रही हैं। अन्य जिलों में भी आशाओं को निकालने की लिस्ट तैयार करने की बात सामने आ रही है। यह सरासर अन्याय है। आशाओं को उकसाने वाली यह कार्यवाही बंद की जाय। आशाएँ सिर्फ अपने काम का दाम मांग रहे हैं लेकिन यदि उत्पीड़न की कार्यवाही की गई तो इसके खिलाफ पूरे प्रदेश की आशाएँ एकजुट होकर लड़ेंगी। अगर एक भी आशा को निकाला गया तो यूनियन उग्र आंदोलन को बाध्य होगी।”

“आशाओं ने हमेशा ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित किये गए सारे कार्य स्वास्थ्य पूरी निष्ठा से किये हैं, यहां तक कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन में भी सारे काम आशाएँ कर रही हैं लेकिन बिना मानदेय, बिना लॉकडाउन भत्ता, बिना कर्मचारी का दर्जा पाए आशाएँ कैसे और कब तक काम करेंगी? ”

क्या माँग रही हैं आशा हेल्थ वर्कर

उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन पूर्व में 3 जुलाई को अपनी माँगों के संबंध में विरोध दिवस कार्यक्रम आयोजित कर विभिन्न स्थानों में धरना प्रदर्शन करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को नौ सूत्रीय ज्ञापन भेज चुकी है जिसमें मांग की गई कि, चम्पावत जिला प्रशासन ने आशाओं को निकालने के आदेश जारी किए हैं और उधमसिंहनगर जिले में भी ऐसी आशाओं की लिस्ट तैयार हो रही है, अन्य जिलों में भी यह बात सामने आ रही है। यह वाली कार्यवाही तत्काल बंद की जाय। ऐसे आदेश तत्काल वापस लिए जाय, आशाओं को राज्य कर्मचारी का दर्जा देते हुए 18000 रुपये न्यूनतम वेतन दिया जाय,आशाओं को कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन भत्ता दस हजार रुपए मासिक की दर से भुगतान किया जाय,आशाओं को बिना किसी भत्ते के चलने वाले सर्विलांस ड्यूटी वाले फैसले को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाय, आशाओं का मासिक प्रोत्साहन राशि व अन्य बकाया राशि का भुगतान तत्काल किया जाय, जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया जाय, आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया जाय, सेवा(ड्यूटी) के समय दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी होने की स्थिति में आशाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियम बनाया जाय और न्यूनतम दस लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान किया जाय।

यूनियन ने साफ़ चेतावनी दी थी कि यदि मांगों पर कार्यवाही न की गई तो यूनियन अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार को बाध्य होगी, जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन द्वारा आशाओं की की जा रही उपेक्षा की होगी, फिर भी सरकार सुध लेने को तैयार नहीं है!

साभार- भार्गव चंदोला

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