एक संत जंगल से गुजरते हैं और एक आदमी को प्रार्थना करते देखते हैं, गड़रिया, गरीब आदमी, फटे चीथड़े पहने हुए, भगवान से प्रार्थना कर रहा है. महीनों से नहाया नहीं होगा, ऐसी दुर्गन्ध आ रही है ! अब भेड़ों के पास रहना हो तो नहा-धो के रह भी नहीं सकते ! चारों तरफ़ भेड़ें मिमिया रही हैं. और वो बैठा वहीं प्रार्थना कर रहा है. वो क्या कह रहा है, वो भी बड़े मजे की बात है ! संत ने खड़े होके सुना. वो बहुत हैरान हुए. उन्होंने बहुत प्रार्थना करने वाले देखे थे ! ऐसा आदमी नहीं देखा. वो भगवान से कह रहा है – हे भगवान ! तू एक दफ़े मुझे बुला ले. ऐसी तेरी सेवा करूँगा कि तू भी खुश हो जाएगा. पाँव दबाने में मेरा कोई सानी नहीं. पैर तो मैं ऐसे दबाता हूँ, तेरा भी दिल बाग-बाग हो जाए. और तुझे घिस-घिस के नहलाऊँगा और तेरे सिर में जुएँ पड़ गए होंगे तो उनको भी सफाई कर दूँगा !
संत तो बर्दाश्त के बाहर हो गया कि, “ये आदमी क्या कह रहा है ! मैं रोटी भी अच्छी बनाता हूँ, शाक-सब्जी भी अच्छी बनाता हूँ. रोज भोजन भी बना दूँगा. थका-माँदा आएगा, पैर भी दाब दूँगा, नहला भी दूँगा. तू एक दफ़े मुझे मौका तो दे ! संत ने कहा, “अब चुप ! चुप अज्ञानी ! तू क्या बातें कर रहा है ? तू किससे बातें कर रहा है भगवान से ?” और उस आदमी की आँख से आँसू बह गए. वो आदमी तो डर गया.
   उससे कहा -“मुझे क्षमा करें. कोई गलत बात कही ?”
संत ने कहा -गलत बात ! और क्या गलती हो सकती है भगवान को जुएँ पड़ गए ! पिस्सू हो गए ! उसका कोई पैर दबाने वाला नहीं ! उसका कोई भोजन बनाने वाला नहीं ! तू भोजन बनाएगा ? और तू उसे घिस-घिस के धोएगा ? तूने बात क्या समझी है ? भगवान कोई गड़रिया है ?     वो गड़रिया रोने लगा. उसने संत के पैर पकड़ लिए. उसने कहा –मुझे क्षमा करो ! मुझे क्या पता, मैं तो बेपढ़ा-लिखा गँवार हूँ. शास्‍त्र का कोई ज्ञान नहीं, अक्षर सीखा नहीं कभी, यहीं पहाड़ पर इसी जंगल में भेड़ों के साथ ही रहा हूँ, भेड़िया हूँ, मुझे क्षमा कर दो ! अब कभी ऐसी भूल न करूँगा. मगर मुझे ठीक-ठीक प्रार्थना समझा दो !
 संत ने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई. वो आदमी कहने लगा – ये तो बहुत कठिन है. ये तो मैं भूल ही जाऊँगा. ये तो मैं याद ही न रख सकूँगा. फिर से दोहरा दो ! फिर से संत ने दोहरा दी. वो बड़े प्रसन्न हो रहे थे मन में कि एक आदमी को राह पर ले आए भटके हुए को ! और जब संत जंगल की तरफ़ अपने रास्ते पे जाने लगे, बड़े प्रसन्न भाव से, तो उन्होंने बड़े जोर की आवाज में गर्जना सुनी आकाश में और भगवान की आवाज आई — महात्मन ! मैंने तुझे दुनिया में भेजा था कि तू मुझे लोगों से जोड़ना, तूने तो तोड़ना शुरू कर दिया ! अभी गड़रिए की घबड़ाने की बात थी, अब संत घबड़ा के बैठ गए, हाथ-पैर कँपने लगे.
 उन्होंने कहा – क्या कह रहे हैं आप, मैंने तोड़ दिया ! मैंने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई !
परमात्मा ने कहा — ठीक-ठीक प्रार्थना का क्या अर्थ होता है ?  ठीक शब्द ?  ठीक उच्चारण ? ठीक भाषा ?
 ठीक प्रार्थना का अर्थ होता है.हार्दिक भाव ! वो आदमी अब कभी ठीक प्रार्थना न कर पाएगा. तूने उसके लिए सदा के लिए तोड़ दिया, उसकी प्रार्थना से मैं बड़ा खुश था ! वो आदमी बड़ा सच्चा था. वो आदमी बड़े हृदय से ये बातें कहता था, रोज कहता था. मैं उसकी प्रतीक्षा करता था रोज कि कब गड़रिया प्रार्थना करेगा ! ऐसे तो तेरे जैसे बहुत लोग प्रार्थना करते हैं. उनकी प्रार्थना की मैं प्रतीक्षा नहीं करता. वो तो बँधी-बँधाई, पिटी-पिटाई बातें हैं. वो रोज वही-वही कहते रहते हैं ! ये आदमी हृदय से कहता था. ये आदमी ऐसे कहता था जैसा प्रेमी कहता है. और फिर बेचारा गड़रिया है, तो गड़रिए की भाषा बोलता है ! तू वापिस जा, उससे क्षमा माँग. उसके पैर छू, और उसे राजी कर कि वो जैसा करता था वैसा ही करे. तेरी प्रार्थना वापिस ले ! इससे फर्क नहीं पड़ता कि हमारे शब्द क्या हैं ! इससे ही फर्क पड़ता है कि हम क्या है. हमारे आँसू सम्मिलित होने चाहिए हमारे शब्दों में ! जब हमारे शब्द हमारे आँसूओं से गीले होते हैं, तब उनमें हजार-हजार फूल खिल जाते हैं !!