पुरानी टीरी की यादें

नियति ने क्यों लिखा था ,तुम्हारी किस्मत में डूबना
और मेरे भाग्य में विस्थापन.
तुम्हे बसाया था गढ़पति सुदर्शनशाह ने .
श्रीनगर से शिकार खेलने आया था राजा
जिसके घोड़े के आगे दौड़ रहे कुत्तों पर
टूट पड़ा था आक्रामक होकर एक जंगली खरहा .
तब उसके राजज्योतिषी ने कहा था
राजन यह भूमि उपयुक्त है नई राजधानी के लिए
और भिलंगना के किनारे बसी
उस धुनारों की बस्ती में बसी तुम ,
गुमानी पन्त ने जिसको पुकारा कहकर त्रिहरी
कालांतर में वो बन गया टिहरी
प्रसिद्ध थी जिसकी सिंगोरी और नथें,
जो बसा था गंगा ,भिलंगना और घृत नदी के संगम पर
घृत नदी को न जाने किसने देखा था
न जाने कब विलुप्त हो गई थी वह
और हम कहते थे उसे,जुग्याणा का खाला
उस नगर में थे बद्री-केदार,सत्येश्वर महादेव,लक्षमी-नारायण
पञ्चमुखी हनुमान,राज- राजेश्वरी,दक्खिन काली के मंदिर
गणेश-प्रयाग में थे राजाओं के पितर-कुडे
वहाँ जन्मा था तंत्रशास्त्र का धुरंदर आचार्य महीधर डंगवाल ,
वहां पधारे थे स्वामी विवेकानंद ,रामतीर्थ और दयानंद सरस्वती
राजा के ज़माने में आए थे मुस्लिम, सहारनपुर के पास के जैन
कुमाऊ से पन्त –पांडे, हिमाचल से पछमी,वाल्मीकि, सीमापार पाकिस्तान से पंजाबी फिर बनी एक मस्जिद ,गीताभवन,गुरुद्वारा और जिनालय,उस शहर में रहता था अपनी मौत का नाटक करनेवाला,

बड़ा मजाकिया एक वकील देवीप्रसाद घिल्डियाल,
जो होली का नबाब बनकर उल्टा बैठता था गधे पर
महेन्द्रू हलवाई की दुकान और हमारे बाप -दादा के ज़माने में
साहित्यकार महावीर प्रसाद गैरोला,गढ़वाली के पहले कथाकार मोहनलाल नेगी,

कामरेड विद्यासागर नौटियाल, क्रन्तिकारी परिपूर्णानंद पैन्यूली,

पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा
और बांध विरोधी विरेन्द्र दत्त सकलानी की कर्म भूमि था वह
वहीँ देखा था हमने पहाड़ के गाँधी को नुमायशों में शिरकत करते
स्वामी बलबीर शाही को चरखेवाला झंडा लेकर बाजार में भाषण देते
गांव के लोगों को वसंत पंचमी पर गंगा नहाते
हाथ में प्लासटिक की कंडी लिए, पैरों में हवाई चप्पल पहने
चूड़ियाँ, बिंदियाँ, नाले-फोंदणी,गोब्भी की भुज्जी लेते
बच्चों को रंगीन चश्मे,गुब्बारे ,बाजे,सेल् –पकोड़ी के लिए जिद करते
वहां खड़ा था समय का साक्षी एक घंटाघर
टेहरी के मुक्तिदाता अमरशहीद श्रीदेवसुमन पर हुए अत्याचारों
और 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद , उनकी मौत का गवाह
कुछ अजीब से नाम थे लोगों के उस शहर में
गुजराती मिस्त्री,अमेरिकन, जर्मन और बम्बईया जैसे
वहां के छोकरों ने,कहते हैं बौलाया था सांड .
जो डरते थे राणा झल्ला को देखकर,शहर में तेली आने की खबर सुनकर,
रात के अँधेरे में बाघ की डर से घर जाने में डरते थे,
संगम रोड पर या बद्रीनाथ की तरफ भूत की डर से जाने में कतराते थे ,
चना जोर गरम और मलाई बरफ खाते थे
नत्थू की टीन पर रात में फेंकते थे पत्थर कालेज की सड़क से
टपाते थे घंटाघर में टिपरीवालों की ककडीयां,
चुपके से खिसक जाते थे,किसी होटल से फ़ोकट की चाय पीकर,
नुमायस में खा –पी कर हाथ की सफाई दिखाकर, रिंग फेंकते
और फिर चल देते थे दरबार की तरफ या रानीबाग, खेती में
मिस्त्री की साईकिलें लेकर जाते थे सिमलासू,नंदगाव–बडकोट तक ,
मिटटीवाले अंधे सुंदरु को पारू की बई कहकर चिढाते और खूब गाली खाते
वो छेड़ते थे पागल चन्दन सिंग को भी ,
उससे सुनते थे “ मै रंगीला प्यार का राही—– ” वाला गीत.
इब्राहिम से सुनते थे उसके खयाली मामू दिलिप कुमार के किस्से,
हाफिजी से बाल कटाते ,महंतजी का पान खाते
शिवरात्रि –जन्माष्टमी पर रातभर उधम मचाते,
तोड़ते अमरुद,गन्ने चुराते ,दुकानदारों की पेटियां जलाते.
कभी वो मदारी के कबूतर उड़ाते, कभी बहुरूपिये के पीछे जाते,
रामलीला-कृष्णलीला में छौंदाड़ी – छौंदाड़ी चिल्लाते,
राजमाता कॉलेज के कार्यक्रमों में शोर मचाते,
राजमाताजी को खुंदक दिलाते,
रीजनल रैली में रात में झंडे टपाते ,ट्रैक गन्दा करते
या फिर रात के सांस्कृतिक कार्यक्रम में बोर –बोर चिल्लाते,
कुछ ऐसे की तंग करते विकास प्रदर्शनी में भी लोक-कलाकारों को.
डायनामाईट फोड़कर मच्छी पकड़ते लड़के
सिगरेट का धुआं उड़ाते बेफिक्र लड़के,
गिल्ली-डंडा, भांचो-पाला खेलकर बड़े हुए लड़के
गेंद-ताड़ी, कांच की पिल्ला –दाणी और छुलबुल खेलते लड़के
सिगरेट की खाली डिब्बों से ताश खेलते लड़के
सड़क पर रबर या लोहे का टायर चलाकर घूमने वाले लड़के
कपिल साहब की मार खानेवाले लड़के
पर लड़के इतने भी बुरे नहीं थे, उन्होंने भाग लिया था
कई चक्के- जाम, धरना-प्रदर्शन और हड़तालों में.
विश्वविद्यालय आन्दोलन रहा हो या फिर टेहरी-बांध का विरोध
या पृथक पर्वतीय राज उत्तराखंड का आन्दोलन.
धीरे –धीरे ख़तम हो रहा था सब कुछ,
थापर और जयप्रकाश कंपनी के बुलडोजरों के शोर में ,
धूल और मिट्टी के गुबार में सन जाता था सहर
सुबह –सुबह निकलती थी प्रभात फेरी बहुगुणाजी की अगुआई में
“ उठ जग मुसाफिर भोर भयो ” के भजन के बाद
लगता था नारा “ कोई नहीं हटेगा, बांध नहीं बनेगा ”
और कई बार रुका भी था बांध का काम
और जब एकदिन जेपी और थापर की सुरंग में ,
किसी पालतू सांप की तरह घुस गई गंगा और भिलंगना
फिर टूट गया लोगों का भरम कि “ बांध नहीं बनेगा ” ,
अब तो सिर्फ एक दिवार ही बननी बाकी थी
गफलत में डूबे लोग,नींद से जागकर ,
काटने लगे पुनर्वास दफ्तर के चक्कर,
हाथ में कागज लिए, दौड़ने लगे ईधर –उधर
खोज रहे हैं पुराने रिकॉर्ड में अपना या बाप –दादा का नाम ,
पहले एक फाईल बननी थी,आबंटित होना था प्लाट और मिलना था मुआवजा.
कुछ ने ले लिया ,जो मिला ,ये सोचकर कि कौन जाएगा नई टेहरी,
वहां तो बहुत ठण्ड है ,बेच दिया प्लाट भी औने-पौने दाम पर
किसी ने नपवा लिया बेनाप भी,तो किसी ने सड़क का पुस्ता
सरकार ने अपनाई बांटो और राज करो की नीति ‘
एक तरफ भूस्वामी दूसरी तरफ किरायेदार
किश्तों में शुरु किया लोगों को बरगलाना
पहले कुछ सरकारी दफतर हिले फिर उठे कोर्ट और स्कूल
किराय पर रह रहे वकीलों को कर आवास,उनका कर दिया पुनर्वास
नजीबाबाद और बिजनौर वालों को भी मिल गए घर
किरायदारों को मिल गए फ्लैट और दुकानें, देखते रह गए मकान –मालिक
और नई व पुरानी टेहरी के बीच बरसों से झूलते,चक्कर काटते लोग
मजबूर हो गए शहर छोड़ने को , खाली करने लगे घर
छत तोड़कर मकानों का कब्ज़ा देने लगे,मच गई अफरा–तफरी
फिर भी कुछ गिने –चुने लोग फिर भी डटे रहे पुरानी टेहरी में
दिन में खाली शहर में चक्कर काटते
बैठक करते और रात में मशाल जलूस निकालते
और फिर एक दिन बरसात में ,
सरकार ने मौका देखकर रात में चुपके से छोड़ दिया
मनेरी बांध का पानी और ख़तम कर दी
पुरानी टेहरी की 200 साल पुरानी कहानी.
फिर भी छाया है अभी तक उन लोगों के दिलो –दिमाग में
जो कभी रहते थे वहां ,जिया था उसके हर पल को
अब तो कोई बस यही बता पाएगा ,
कि कभी पुरानी टेहरी में रहता था मै .

 

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