डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

सोचने से मिलते नहीं तमन्नाओं के शहर, मंजिल को पाने के लिए चलना भी जरूरी है।’

इन पंक्तियों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो उत्तराखंड जिसका 70% भूभाग वनक्षेत्र में आता है। वन विभाग और राज्य सरकार ने लंबी प्रतीक्षा के बाद मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के प्रयास में, हाथियों की बेरोकटोक आवाजाही के लिए तीन फ्लाईओवर बनाये कदम भी बढ़ाए ! सोचा था इससे संघर्ष कम होगा। लेकिन दो वर्ष बीतने के बावजूद वह मंजिल तक नहीं पहुंच। बात हो रही है उत्तराखंड में गुलदार व हाथियों के व्यवहार में दिख रही आक्रामकता को मद्देनजर रखते हुए इसके अध्ययन की।

सितंबर 2020 से गुलदार व हाथियों पर रेडियो कालर लगाने का काम शुरू हुआ। हरिद्वार समेत विभिन्न स्थानों पर एक के बाद एक, आठ गुलदार, चार हाथियों पर कालर लगाए गए। इसके जरिये इनके व्यवहार, मूवमेंट आदि का अध्ययन किया जाना था।फिर इसके आधार पर कदम उठाए जाने थे, लेकिन यह अध्ययन रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आ पाई है। और तो और कोई इसे लेकर कुछ भी बोलने से बच रहा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड के जंगलों में फल-फूल रहे वन्यजीवों के कुनबे पर शिकारियों व तस्करों की गिद्धदृष्टि गड़ी हुई है। समय-समय पर होने वाली वन्यजीवों की खाल व अंगों की बरामदगी इसकी तस्दीक करती है। ऐसे में वन्यजीवों पर खतरा भी बढ़ गया है।

इन्हीं वन्यजीवों में एक है बज्रकीट यानी पेंगोलिन। विश्वभर में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से दो भारत में हैं। राज्य के जंगलों में इंडियन पेंगोलिन पाया जाता है। यह दुर्लभ स्तनधारी वन्यजीव दिखने में दूसरे स्तनधारियों से एकदम अलग है। इसका शरीर कठोर व चौड़े शल्कों से ढका होता है और दूर से यह छोटे डायनासोर की तरह नजर आता है। वैज्ञानिकों के अनुसार तस्करी और शिकार के कारण विश्वभर में बज्रकीट की संख्या लगातार घट रही है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में इसके संरक्षण व सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। असल में वन्यजीवों विशेषकर गुलदारों के आतंक को लेकर अब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है। यद्यपि, मानव-गुलदार संघर्ष थामने को अब तक कई अध्ययन हो चुके हैं, लेकिन रणनीतिक तौर पर धरातल पर ठोस उपाय अभी तक नहीं उतर पाए हैं।

अब समय आ गया है कि ऐसी कार्ययोजना धरातल पर उतारी जाए, जिससे मनुष्य व वन्यजीव दोनों सुरक्षित रहें। उत्तराखंड में गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष के बीच भालू भी नई मुसीबत बनकर उभरे हैं। राज्य में गुलदार के बाद भालू के हमले सर्वाधिक हैं। अब तो स्थिति ये हो चली है कि सर्दियों में शीत निंद्रा के लिए गुफाओं में चले जाने वाले भालू निरंतर ही आबादी वाले क्षेत्रों के आसपास घूमते दिखाई पड़ रहे हैं। फिर चाहे वह चमोली जिले का जोशीमठ क्षेत्र हो अथवा अन्य पर्वतीय जिलों के दूसरे इलाके, सभी जगह भालू का आतंक चिंता का विषय बना है। इस सबको देखते हुए पता लगाना आवश्यक है कि आखिर भालू के व्यवहार में बदलाव क्यों आ रहा है।इसे लेकर पूर्व में वन विभाग ने अध्ययन कराने का निश्चय किया, ताकि समस्या के समाधान को कदम उठाए जा सकें। बावजूद इसके, सालभर से ज्यादा समय गुजरने के बावजूद इस अध्ययन रिपोर्ट का कहीं कोई अता-पता नहीं है और न कोई इस बारे में कुछ बोल ही रहा।