बहुत छोटा था मैं

जब थमा था हाथ उसने मेरा,

कुछ बड़े हुवे,

कुछ ज़माना बदला,

बदलते ज़माने के साथ ,उसका भी जा़यका बदला,

मैं हैरान था,

कुछ परेशान था,

उलझने भी बहुत थी,

उम्मीदें फिर भी उसने बहुत थी,

फिर बरसात एक ऐसी हुई,

पूरी जिंदगी भीगती गई,

दामन हर एक गीला था,

जैसे सावन का महीना था,

एक फिर फिर आस थी,

जैसे अमावस की रात थी,

फिर एक सवेरे आएगा,

जीवन मेरा भी लहरायेगा.,

कुछ स्वप्न फिर हक़ीक़त होंगे,

कभी हम दोनों एक संग होंगे…