विश्वम्भर दत्त चन्दोला (1879-1970): ग्राम थापली, पट्टी कपोलस्यूं, गढ़वाल। गढ़वाल में पत्रकारिता के पितामह। निर्भीक और स्वाभिमानी पत्रकार। जिनके दिल में देशभक्ति की भावना और पत्रकारिता इतनी प्रबल थी कि उन्होंने क्लर्की की नौकरी छोड़ कर 1903 में देहरादून में कतिपय जागरूक, शिक्षित प्रवासी गढ़वालियों ने ‘गढ़वाल हितैषणी सभा’ या ‘गढ़वाल यूनियन’ की स्थापना की। 1930 के ऐतिहासिक रवांई काण्ड (टिहरी रियासत) की तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रकाशित करने पर रियासत के तत्कालीन दीवान और इस काँड के उत्तरदायी चक्रधर जुयाल ने इन पर झूठा समाचार प्रकाशित करने का आरोप लगा दिया। घोर स्वाभिमानी विश्वम्भर दत्त चन्दोला जी ने सम्पादकीय उत्तरदायित्व की उच्चतर परम्परा का निर्वाह करते हुए न संवाददाता का नाम बताया, न ही समाचार प्रकाशित करने का क्षोभ प्रकट किया और न ही माफी मांगी। इनके खिलाफ मुकदमा चलाकर न्यायालय द्वारा इन्हें एक वर्ष कारावास की सजा सुना दी गई। 31 मार्च 1933 से 3 फरवरी 1934 तक इन्होंने जेल जीवन बिताया पूरा कारावासी जीवन इन्होंने देहरादून में ही बिताया। सनद रहे कि किसी सम्पादक को जेल की सजा हो जाने का ऐसा दूसरा दृष्टान्त सिवाय ‘केसरी’ के सम्पादक लोकमान्य तिलक के और कोई नहीं है।


देहरादून, 21 फरवरी : 1970 में विश्वम्भर दत्त जी की मृत्यु के बाद उनकी पुत्री ने अपने पिता की ऐतिहासिक धरोहर को देहरादून में विश्वम्भर दत्त चन्दोला ‘शोध संस्थान’ के माध्यम से आगे बढाया जिसका उद्देश्य ‘गढ़वाली’ और चन्दोला जी की सात दशकों की पत्रकारिता के आयामों की अधिकाधिक जानकारी आम जनता/शोधार्थियों तक पहुचना है। गढ़वाल भवन में एक कक्ष से लेकर चंदोला जी की विरासत को आम आदमी तक पहुँचाने का बीड़ा उन्होंने अकेले उठाया। बहुत सारे शोध छात्रों ने ललिता जी द्वारा बनाई गई इस लाइब्रेरी का फायदा उठाया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में गढ़वाली समाचार पत्रों में लिखे गए लेखों में उस समय के समाज और राजनीति के अक्स उभरते थे। ललिताजी इस शोध संस्थान को बृहद रूप देना चाहती थीं। इसके लिये उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। अंततः उन्हें सहस्त्रधारा रोड (धरना स्थलके बगल में) पर संस्थान के लिए सरकार ने 4 बीघा भूमि का आवंटन कर दिया किन्तु स्वाभिमानी महिला ने यह कह कर कि उनकी जरुरत सिर्फ एक बीघा की है इसलिए 3 बीघा वापस कर अपने निजी खर्चे से एक बीघा में बाउंडरी वाल कर एक छोटा सा भवन भी वहाँ खड़ा कर दिया। मई 2012 में जीवट व्यक्तित्व की धनी ललिता चंदोला वैष्णव (102 साल की उम्र में) इस दुनिया से गुपचुप तरीके से विदा ली। मीडिया हॉउस में तब्दील हो चुकी आज की पत्रकारिता के किसी भी संपादक ने उनकी मृत्यु पर अफ़सोस जाहिर करने तक की कोशिश नहीं की। ख़ैर ये सब अब इतिहास है छुपाया तो जा सकता है मगर बदला नहीं जा सकता।


ललिता जी मृत्यु के बाद शोध संस्थान को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी उनके भाई दीपेन्द्र चंदोला, सुमेन्द्र चंदोला, बार एशोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष ओपी सकलानी, अनुपमा चंदोला आदि ने संभाली। कोरोना के चलते विगत २ वर्षों से तो संस्थान की गतिविधियां थम सी गईं हैं, केवल महत्वपूर्ण तिथियों पर ही कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा था। गत 12 फ़रवरी 2022 को संस्थान के एक और स्तंभ दीपेन्द्र चंदोला की मृत्यु के बाद दिनांक 21 फ़रवरी उनकी तेहरवीं का आयोजन शोध संस्थान में आयोजित किया गया । जहां देख कर बेहद अफ़सोस हुआ की शोध संस्थान तक पहुँचने वाले मार्ग जो कि नगर निगम की जमीन है, पर भी भू माफियाओं ने दीवार लगा कर कब्ज़ा कर लिया है । आस-पास लोगों से पूछने पर पता चला कि संस्थान के साथ लगी हुई भूमि नगर निगम की है जिस पर पार्षद के ही किसी रिश्तेदार द्वारा कब्ज़ा किया हुआ है जिसका संभवतः कोर्ट में केस भी चल रहा है ।

गत माह शासन- प्रशासन जब विधानसभा चुनाव करवाने में व्यस्त था तो भू माफियाओं ने पुरानी दीवार के साथ एक और नई दीवार खड़ी कर रास्ते का अतिक्रमण कर डाला ।

इसी तरह पुल के दूसरी ओर नजर डालने पर खलंगा स्मारक के पीछे का हिस्सा नजर आता है जो कि नगर निगम की जमीन है उस पर भी बड़ी तादाद में झोपड़-पट्टी बस चुकी है। अब यह पुनीत कार्य भू माफियाओं की दभंगई के चलते हो रहा है या किसी सोची समझी साजिश के तहत, ये तो स्थानीय पार्षद, विधायक और मेयर साब ही बता सकते है आखिर ट्रिपल इंजन का मामला जो ठेरा ।

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