ऋषिकेश, 21 जनवरी : खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग उत्तराखंड की ओर से आयोजित ईट राइट मिलेट मेला का कैबिनेट मंत्री धन सिंह ने उद्घाटन किया। इस दौरान बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी को कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत ने सम्मानित किया। मंत्री ने मेले में लगाए गए विभिन्न स्टॉल का निरीक्षण करने के साथ-साथ किसानों से भी बात की।
कौन हैं विजय जड़धारी
विजय जड़धारी भारत के संरक्षणवादी कार्यकर्ता हैं। वे 'बीज बचाओ आन्दोलन' के प्रणेता हैं। बड़े शहरों में रहते हुए लोगों को शायद इस बात का कोई अंदाजा न हो कि 'बीज' हमारे लिए कितने जरूरी होते हैं। मगर, उत्तराखंड में रहने वाले विजय जड़धारी भारतीय बीजों की अहमियत को अच्छे से जानते और समझते हैं। यही कारण है कि कई दशकों से इस बुजुर्ग ने 'बीजों के संरक्षण' के लिए आंदोलन छेड़ रखा है। बीजों को बचाने के लिए विजय ने 1986 में 'बीज बचाओ आंदोलन' शुरू किया था, जोकि अब तक जारी है। ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि विजय जड़धारी का 'बीज बचाओ आंदोलन' क्या है और वो कैसे इसकी मदद से देश के बीज बचाने में जुटे हुए हैं। उन्होने 'बारहनाजा' नामक एक पुस्तक की रचना की जिस पर उन्हें गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली द्वारा सन् २००७ का 'प्रणवानन्द साहित्य पुरस्कार' प्रदान किया गया। वे चिपको आन्दोलन से भी सम्बद्ध रहे हैं।
मुनिकीरेती के गढ़वाल मंडल विकास निगम के गंगा रिसार्ट में आयोजित इस मेले में बड़ी संख्या में पर्वतीय क्षेत्र के कृषक, जड़ी बूटी उत्पादक शामिल हुए हैं। कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत ने कहा कि मोटे अनाज से माटी का प्रेम जुड़ा है। मंडवा और झंगोरा को हमने प्रोत्साहन देने की कोशिश की है। मंडवे की ब्रांडिंग के लिए हमने भारत सरकार को पत्र
हमारा मडवा पूरे भारत में सभी सरकारी कार्यक्रमों में जाएगा। 36 रूपया 50 पैसे प्रति किलो उसका समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। इस तरह के मेले जहां भी आयोजित होंगे हम उसमें सहभाग करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने टीबी मुक्त उत्तराखंड बनाने का संकल्प लिया है। 2024 तक इस लक्ष्य को पूरा करना है। 10,000 रोगियों को अब तक गोद लिया जा चुका है।
अपर आयुक्त खाद्य संरक्षा एएस चौहान ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस वर्ष को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। मेले में किसान और पादप होटल व्यवसाई सभी को एक मंच प्रदान करने की कोशिश की गई है। आदमी के स्वास्थ्य से संबंधित खानपान की जो आदते हैं उन्हें बदलने की जरूरत है। पहाड़ी अनाज लाभकारी साबित हो रहे हैं और बड़ी संख्या में लोग इन्हें अपना रहे हैं।
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