फूलों की घाटीः धरती पर आलोकिक प्राकृतिक नजारा
ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और आरएल होल्डसवर्थ उत्तराखंड में स्थित इस फूलों की घाटी की सुंदरता पर मोहित हो गए थे। फूलों की इस खूबसूरत घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने वर्ष 1931 में लगाया था। वह अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इस घाटी की खूबसूरती पर वे इस कदर मोहित हुए कि एक बार फिर 1937 में यहां लौटे। बाद में उन्होंने वर्ष 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया। माना जाता है कि इस घाटी में अलग-अलग फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं। फूलों की घाटी में पुष्पाती नदी बहती है। यूनेस्को ने नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। यह उद्यान 87.50 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। फूलों की घाटी को सन 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट 275 किमी दूर है। जोशीमठ से गोविन्दघाट की दूरी 19 किमी है। यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी लगभग 13 किमी है जहाँ से पर्यटक 3 किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं। मान्यता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध में घायल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी खोजते हुए हनुमान यहां तक आ गए थे। उन्हें संजीवनी बूटी यहीं के पहाड़ों पर मिली थी।