-संस्कृत शिक्षा के उन्नयन के लिए किए विशेष प्रयास
देहरादून, डा. वाचस्पति मैठाणी स्मृति मंच और उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से शिक्षाविद् स्व. वाचस्पति मैठाणी के 70वें जन्मदिवस के मौके पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर संस्कृत के उन्नयन का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम में स्व. मैठाणी द्वारा स्थापित प्राथमिक संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दी गईं।
उत्तरांचल प्रेस क्लब सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं द्वारा शिक्षाविद स्व. डा. वाचस्पति मैठाणी का भावपूर्ण स्मरण किया गया। वक्ताओं द्वारा संस्कृत शिक्षा के उन्नयन के लिए डा. मैठाणी द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला गया। इस मौके पर पूर्व विद्यालयी शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथाणी ने कहा कि संस्कृत शिक्षा के उन्नयन की दिशा काफी कार्य किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षा के उन्नयन के लिए उन्होंने प्रदेश में 1000 संस्कृत विद्यालय खोले जाने का संकल्प लिया है। श्री नैथाणी ने कहा कि डा. मैठाणी के प्रयासों से ही प्रदेश में संस्कृत शिक्षा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिला। देहरादून में जो एकमात्र संस्कृत प्राथमिक विद्यालय संचालित हो रहा है उसे उन्होंने आठवीं तक मान्यता दिए जाने की मांग की। कार्यक्रम में संस्कृत प्राथमिक विद्यालय के बच्चों द्वारा सांस्कृति प्रस्तुति के साथ-साथ योग क्रियाओं का भी शानदार प्रदर्शन किया गया। संगोष्ठी में शिक्षा निदेश आरके कुंवर, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव गिरधर सिंह भाकुनी, पूर्व विधायक भीमलाल आर्य, पूर्व आईएएस चंद्र सिंह, लाल चंद शर्मा, संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति देवी प्रसाद त्रिपाठी, अपर शिक्षा निदेशक कमला पंत, प्रेमचंद शास्त्री, कैलाशपति मैठाणी आदि ने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रेमचंद शास्त्री ने की।
स्वर्गीय डॉक्टर वाचस्पति मैठानी का जन्म 28 अगस्त 1949 को टिहरी जिले के सेन्दुल ग्राम में हुआ था। खराब आर्थिक स्थिति एवं विद्यालय घर से दूर होने की वजह से उन्हें कक्षा तीन में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने पर्वतीय नवजीवन मंडल संस्थान आश्रम सिल्लयारा मैं कताई बुनाई का प्रशिक्षण लिया। इस दौरान उन्होंने ग्रामीण स्वच्छता, अस्पृश्यता, उन्मूलन, नशाबंदी, पर्यावरण एवं बाल विवाह के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम किया। वर्ष 1965 में उद्योग साला किंग्सवे कैंप दिल्ली से कार्पेंट्री में आईटीआई की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। घर की माली हालत ठीक न होने की वजह से उन्होंने मसूरी में कार्पेंट्री के साथ सब्जी बेचने का काम भी किया। इन सबके बावजूद उन्होंने प्राइवेट तौर पर पढ़ाई जारी रखते हुए कक्षा 5 से लेकर एम०ए०, बी०एड्० भी किया। गढ़वाल के प्रमुख देवताओं की सामाजिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि विषय पर उन्होंने दीपिल की उपाधि हासिल की। इस दौरान शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े टिहरी गढ़वाल में प्राथमिक शिक्षा से लेकर डिग्री कॉलेज स्तर तक की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में अपना योगदान दिया।
डॉक्टर मैठानी मैं शिक्षा के अलावा अनौपचारिक शिक्षा, मद्य निषेध कार्यक्रम, स्वास्थ्य शिक्षा प्रसार कार्यक्रम, पल्स पोलियो आदि राष्ट्रीय एवं सामाजिक महत्व के कार्यक्रमों में जुड़े रहे। इसके फलस्वरूप उन्हें उल्लेखनीय कार्यों के लिए विभिन्न प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए और अनेक पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया। डा० मैठानी ने संयुक्त शिक्षा निदेशक के पद पर रहते हुए प्रदेश में सभी विद्यालयों में श्रीदेव सुमन निर्वाण दिवस के अवसर पर 25 जुलाई को वृक्षारोपण अभियान चलाया। अगर आप 10 जनवरी 2005 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने उनकी पुस्तक गढ़वाल हिमालय की देव संस्कृति का विमोचन किया। डा० मैठानी को शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हेतु वर्ष 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण तथा वर्ष 2016 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया।भले ही 16 अप्रैल 2017 को उनकी जीवन यात्रा का अवसान हो गया लेकिन समाज और शिक्षा के लिए जो योगदान उन्होंने दिया वह कभी ना भुलाए जा सकने वाला है। आज भी वे अपने विद्यार्थियों शिक्षकों एवं समाज के हर तबके के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए।